Spiritual Thoughts: धर्म को विषाद से, आत्म उत्पीड़न से हटाकर आनंद का एक उत्सव बनाना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि जीवन हंसे और ऐसा हंसे कि हजार-हजार फूल बरसें। जीवन में कुछ भी नहीं है जो निंदा के योग्य है। और जीवन में ऐसा कुछ नहीं है जिसे छोड़कर भागने की जरूरत है। हां, जीवन में ऐसा बहुत कुछ है, जो छुपे हुए खजाने की तरह है। या ऐसा है, जैसे खदान से निकाला हुआ सोना हो। उसकी सफाई की जरूरत है, उस पर निखार लाना है, उसको चमक देनी है। और धर्म और जीवन दो विपरीत आयाम ना हो बल्कि एक ही संयुक्त धारा हो। धर्म नाच सके, हंस सके, गीत गा सके।
Also read : ओशो ने मेरी समझ को विकसित किया है: Osho Lessons
मैं तुम्हें इस विराट अस्तित्व के एक अंग की तरह जुड़ा हुआ देखना चाहता हूं, लहरें उठती हुई देखना चाहता हूं। निंदा का स्वर समाप्त हो, और निंदा का युग समाप्त हो। दमन की परंपरा समाप्त हो और जीवन का उल्लास हमारा भविष्य बने।
मैं तुम्हें संसार के प्रति प्रेम से भरना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि तुम्हारे हृदय में संसार के निषेध की जो सदियों-सदियों पुरानी धारणाओं के संस्कार है, वे आमूल मिट जाएं, उन्हें पोंछ डाला जाए। वही तुम्हें रोक रहे हैं परमात्मा को देखने और जानने से। नाचो, तो तुम पाओगे उसे। नृत्य में वह करीब से करीब होता है। गुनगुनाओ, गाओ, तो वह भी गुनगुनाएगा तुम्हारे भीतर।
मैं गीत सिखाता हूं। मैं संगीत सिखाता हूं। मेरा संदेश एक ही है- आनंद, उत्सव, महोत्सव। और उत्सव-महोत्सव को सिद्धांत नहीं बनाया जा सकता, केवल जीवनचर्या हो सकती है। तुम्हारा जीवन ही कह सकेगा। होठों से कहोगे, बात थोथी और झूठी हो जाएगी। प्राणों से कहनी होगी। श्वासों से कहनी होगी।
और जहां आनंद है वहां प्रेम है, और जहां प्रेम है वहां परमात्मा है।
मैं एक प्रेम का मंदिर बना रहा हूं। तुम धन्यभागी हो कि उस मंदिर के बनाने में तुम्हारे हाथों का सहारा है।
