अनाड़ी जी, नैट के इस युग में किसी के पास आज बात करने का भी समय नहीं है, क्या पुराने दिनों की वापसी की कोई आशा है?
– आनन्दी जैन, नई दिल्ली
इन दिनों परस्पर
इतनी बातें हो रही हैं
जितनी कभी नहीं हुईं इतिहास में,
हज़ारों मील दूर का दोस्त भी
चौबीस घंटे रहता है पास में।
स्काइप, वाट्सएप, ब्लर्ट
वाइबर या वी-चैट करिए,
गूगल, याहू, ट्विटर, फेसबुक
अपने मोबाइल पर सैट करिए!
फिर देखिए
इतनी बात करेंगे कि
दूसरे कामों के लिए
समय ही नहीं मिलेगा,
बुरी बातें होंगी तो मन मुरझाएगा
अच्छी होंगी तो हृदय-कमल खिलेगा।
हम स्वयं को सदा
भविष्य की ओर बढ़ाते हैं,
पुराने दिन कभी वापस नहीं आते हैं।
नए भवन को बनाने के बाद उस पर सूप, झाड़ू और जूते क्यों टांगते हैं?
इंशा इराकी, जहानाबाद (बिहार)
सूप इसलिए टांगते हैं
कि भवन बना रहे
अन्न का भंडारी,
झाड़ू इसलिए कि
हम गंभीरता से समझें
स्वच्छता अभियान की जि़म्मेदारी,
और जूते इसलिए कि
कारोबार-रोज़गार के लिए
भवन से बाहर
जाना-आना रहे जारी।
अनाड़ी जी, आप हमेशा पत्नियों के ही सवालों का जबाव देते हैं, पतियों के सवालों का जवाब नहीं देते। पतियों के साथ यह नाइंसाफी क्यों?
संजना निगम, जिला कानपुर (उ.प्र.)
मैं पतियों के
सारे सवाल जानता हूं
क्योंकि मैं भी एक पति हूं,
नारी पतियों के सवाल
समझ नहीं पातीं
इसलिए मैं उनके लिए
एक विश्वसनीय मति हूं।
इस पुरुषवादी समाज में
पतियों की
बहुत सारी बातों के लिए
कोई माफी नहीं है,
इसलिए उनकी अनदेखी करने में
कोई नाइंसाफी नहीं है।
आजकल पुरस्कार वापसी का चलन का$फी बढ़ गया है। आप तो अपने पुरस्कार नहीं लौटाने वाले?
अनीता, गांधीनगर, जम्मू
पुरस्कार या सम्मान
ईर ने ईर तरीके से पाया था,
बीर ने बीर तरीके से पाया था,
फत्ते ने तीन तरीके से पाया था,
हम क्यों लौटाते भला
हमारे पास तो हर सम्मान
अपने आप आया था।
संघर्षों का नाम है नारी, चुनौतियों से न कभी हारी, फिर भी सब कहते बेचारी, क्यों? राज बताएं मिस्टर अनाड़ी?
रेणु श्रीवास्तव, पटना (बिहार)
मन से संकोचों को दूर कर,
बेचारी कहने वाले को
देखो जरा घूर कर।
कठोर दृष्टि देख कर
वह सहम जाएगा,
और भविष्य में
बेचारी कहना थम जाएगा।
अक्सर लड़ाई के वक्त बिल्ली की पूंछ फूल जाती है और पति का मुंह सूज जाता है, ऐसा क्यों?
संगीता नेमा, नरसिंहपुर (म.प्र)
इस मामले में मेरा ये खयाल है,
कि लड़ाई
जो एक अनावश्यक बवाल है,
उसमें पति के लिए
जो मूंछ का है
बिल्ली के लिए पूंछ का सवाल है।
मूंछ में इतने बाल नहीं होते
कि फूल जाएं,
और बिल्ली की क्षमता को
हम कैसे भूल जाएं।
अनाड़ी जी, मन का काला आदमी सही होता है अथवा तन का काला आदमी?
रागिनी देवी निगम, कानपुर (उ.प्र.)
बिना बात अनाड़ी से जूझती हैं,
जब आपको मालूम है
तो फिर क्यों पूछती हैं?
भला किसे भाएगा मन का काला,
लेकिन श्याम सुहाता है मुरली वाला!
