हमेशा से शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही अनामिका छाबड़ा ने उस वक्त दिव्यांग बच्चों के लिए काम करने का मन बना लिया, जब उन्हें खुद अपने बेटे को बोलना सिखाने में थोड़ी मेहनत करनी पड़ी। उन्हें एहसास हुआ कि जब उन्हें सिर्फ बोलना सिखाने में इतनी मेहनत करनी पड़ रही है तो जो दिव्यांग बच्चों के लिए जागरूक नहीं हैं, उन्हें कितनी दिक्कतें आती होंगी। यहीं से उन्होंने मन बनाया कि दिव्यांग बच्चों के लिए काम करेंगी।
लोगों में जागरुकता लाने का है प्रयास
अपने काम के बारे में बात करते हुए अनामिका कहती हैं, आम बच्चों के विकास में भी अभिभावक कभी उन्हें समझ नहीं पाने की स्थिति से गुजरते हैं तो सोचिए दिव्यांग बच्चों के लिए चीज़ें कितनी चुनौतिपूर्ण होती होंगी। मैं इनके लिए इनके अभिभावकों को सही प्रशिक्षण देने की राह में काम करती हूं। जो गरीब हैं, अभाव में जीवन व्यतीत कर रहे हैं उन्हें काउंसलिंग के साथ-साथ कपड़े, किताबें व दूसरी तरह से भी मदद मुहैया करवाती हूं।
बेहतर जीवन पर है सबका अधिकार
‘आज में जियो और इसका सर्वश्रेष्ठ संभव इस्तेमाल करो, ताकि इस दुनिया को हर व्यक्ति के लिए एक बेहतर स्थान बनाया जा सके।” यही उनके जीवन का मूल मंत्र है। एक शिक्षक होने के नाते वे हमेशा से बच्चों से जुड़ी रही हैं। स्कूल में इंटर्नशिप के दौरान ही उन्होंने जाना कि उनका जीवन ‘अंकों और शब्दों के दायरे से कहीं अधिक विस्तारित है।
लोग कहते हैं कि अनामिका बड़ी ही आसानी से कुछ खास शिक्षा देती हैं, लेकिन उनका मानना है कि उन्हें हर दिन कुछ नया सीखने को मिलता है। उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, ‘जब हम जागरूक नहीं होते, समाज के प्रति संवेदनशील नहीं होते हैं तो हम भी अपंग हो जाते हैं। मेरी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा लोग समाज के जरूरतमंद लोगों के प्रति संवेदनशील होकर आगे आएं। अपनी बात को रखने के लिए अनामिका मंच की तलाश करते हुए मिस इंडिया क्वीन ऑफ सब्सटेंस 2019 से भी जुड़ी और बतौर फायनलिस्ट अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और बेस्ट ट्रडेशनल कॉस्ट्यूम का खिताब भी जीता।
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