जब तक इस मिथ्या दृष्टिकोण का निरसन नहीं होगा तब तक समाज की समस्या का समाधान नहीं होगा। हमें सत्य को खोजना होगा। सत्य को खोजे बिना, सत्य को उपलब्ध किए बिना हमारी समस्याएं नहीं सुलझ पाएंगी।
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काम का आचरण – आचार्य महाप्रज्ञ
ध्यान यदि विफलता का सूत्र होता तो यहां बड़ी भीड़ लग जाती। सब के सब लोग ध्यानी बन जाते। स्वर्ग में अपार भीड़ हो जाती। ध्यान सफलता का सूत्र है इसीलिए उसे सभी लोग अपनाने में झिझकते हैं। उन्हें संदेह होता है कहीं सफल हो न जाऊं।
जितने पर्याय हैं, वे सारे बदलते हैं – आचार्य महाप्रज्ञ
जीवन में आस्था का स्थान बहुत ऊंचा है। जिस जीवन में आस्था नहीं होती, वह जीवन आधारशून्य होता है। उस जीवन में सफलता का वरण नहीं हो सकता। आस्था का अर्थ किसी पर भरोसा करना नहीं होता। उसका अर्थ है अपने आप पर भरोसा करना।
मन का स्वभाव – आचार्य महाप्रज्ञ
योग की भाषा में मन की तीन अवस्थाएं हैं-अवधान, एकाग्रता, केन्द्रीकरण या धारणा और ध्यान।
सत्य को खोजना होगा – आचार्य महाप्रज्ञ
यह हमारा मोह है, भ्रम है कि केवल सिद्धांत और तत्त्व चर्चा के आधार पर हृदय बदलना चाहते हैं और हिंसा से अहिंसा की प्रतिष्ठापना करना चाहते हैं, किंतु अहिंसा की प्रतिष्ठा तब तक नहीं हो सकेगी जब तक चंचलता को कम करने का अभ्यास नहीं किया जायेगा।
