Posted inहिंदी कहानियाँ

जिन्न नहीं हूं ‘मैं ‘ – गृहलक्ष्मी कहानियां

‘मां आज नाश्ते में आलू के परांठे बना देना, नहीं मां आलू के नहीं प्याज़ के बनाना, रोहन-रिया की फरमाइश अभी सुन ही रही थी कि अजय कहने लगे, ‘क्या तुम लोग भी आलू प्याज करते रहते हो यह भी कोई परांठे हैं, खाने हैं तो गोभी या पनीर के खाओ, मज़ा आ जायेगा।

Posted inहिंदी कहानियाँ

बेटा हमारा टिकट करवा दो – गृहलक्ष्मी कहानियां

अपने मेहनत की कमाई से जिसे बनवाया उसको अपने जीते जी नहीं बेचूंगी। समर के पापा भी यही चाहते हैं। बनारस शहर में मकान कुछ ही लोगों का होता है, और हमारे कई रिश्तेदार भी यही हैं।” यह सब बातें सुन थोड़ी देर में सीमा जी चाय पी कर चली गई।

Posted inहिंदी कहानियाँ

धूप की गंध

इंसान सिर्फ शारीरिक रूप से नहीं मरता है, बल्कि जीते जी भी वो दूसरों के लिए तब मर जाता है, जब आपसी संवेदनाएं खत्म हो जाती है। प्रभात रंजन जी की ये लघु कथा का भी कुछ ऐसा ही सार है।