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पिंजरे के उस पार – गृहलक्ष्मी की कहानियां

‘सुरीला मिट्ठू’ नाम था उसका। आज मेले में उसके मालिक ने उसको एक नए मालिक को बेच दिया था। उसे आज एक नया घर मिलने वाला था, लेकिन पिंजरा वही पुराना था, यहां उसे लौट कर रोज़ वहीं कैद हो जाना था।

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अरमानों की आहुति

शाम हो चुकीथी। ठंडी हवा चल रही थी। घर की खिड़कियों में पर लगे वो हल्के पीले रंग के पर्दे उड़ने लगे थे। बाहर बालकनी में लगे मनीप्लांट की बेल भी मानो हवा का आनंद ले रही हो। तुलसी का कोमल पौधा तेज़ हवा को सहन नहीं कर पा रहा था। तभी सुधाजी तेज क़दमों से आई और तुलसी के पौधे को भीतर ले गई।

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