मेरा मायका पक्ष पूरा व्यापारी वर्ग था, जहां काफी लोगों का आना-जाना लगा रहता था। अत:सभी को चाचा, भैया, दादा आदि संबोधन से बात करना हमारे घर की चलन में था। मेरी इच्छा के अनुसार मेरी शादी व्यापारी घर में न करके एक सर्विस वाले माहौल में की गई।
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कब तक? – गृहलक्ष्मी लघुकथा
उसकी सूनी नज़रें कोने में लगे जाले पर टिकी हुई थीं। तभी एक कीट उस जाले की ओर बढ़ता नज़र आया। वह ध्यान से उसे घूरे जा रही थी।
