विष्णु की नाभि से कमल नाल निकला और वह पुष्प बनकर खिल पड़ी। उस पुष्प के मकरंद का भ्रमर है- ब्रह्म अर्थात् प्रजापति। प्रजापति की ‘एकोडहं बहुस्याम्’ की आवश्यकता जिस दिन पूरी हुई उस दिन श्रावणी पर्व था। सहयोग, संपर्क स्नेह के आधार पर एक से बहुत होने से आत्मा में उल्लास विकसित होता है, एकाकीपन की नीरसता दूर होती है।
