मातृत्व एक आद्वितीय अनुभूति है जिसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता, यह तो सिर्फ महसूस किया जा सकता है। सृष्टि रचयिता ब्रह्मï एक पुरुष हैं, जब उन्होंने आत्ममंथन किया होगा तब जाकर सृजन का उत्तरदायित्व नारी पर सौंपा होगा। एक बालक सर्वप्रथम अपनी मां से ही सीखता है तभी तो एक मां अगर पुचकारती भी है तो भी शिशु उसी के पास रहना अधिक पसंद करता है और अगर मारती एवं डांटती भी है तो भी शिशु उसी के पास जाता है। मां अपने संतान की चिकित्सक,सर्जक एवं मार्गदर्शक होती है।
