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समझ ही साधना है – मुनिश्री तरुणसागरजी

अगर भीतर की आंख न खुले तो बाहर की आंख सिर्फ मयूर-पंखी आंख बन कर रह जाती है। हिय की आंख खुलनी चाहिए। आदमी में समझ पैदा होनी चाहिए, समझ ही हर समस्या का समाधान है।

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संतों से सार्थक प्रश्न पूछो – मुनिश्री तरुणसागरजी

दुनिया में जितने भी धर्मग्रन्थ हैं, उनका जन्म प्रश्नों से हुआ है। बस शर्त केवल इतनी है कि वे प्रश्न जिन्दा होने चाहिए। जीवंत होने चाहिए। ‘किं नु खलु आत्मने हितं।Ó शिष्य ने गुरु से पूछा: प्रभो! आत्मा का हित किसमें हैं? इसके लिए उत्तर में गुरु ने जो कहा, वह एक ग्रन्थ बन गया।

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