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ध्यान एक प्रक्रिया है – आचार्य महाप्रज्ञ

ध्यान का एक काम होता है प्रियता और अप्रियता के संवेदन से परे हटकर समता के अनुभव को जगा देना। जिस ध्यान के द्वारा समता का अनुभव नहीं जागता वह वास्तव में ध्यान नहीं हो सकता।

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चेतना का रूपांतरण – आचार्य महाप्रज्ञ

जब चेतना बदलती है तो हृदय बदल जाता है। चेतना नहीं बदलती है तो कुछ भी नहीं बदलता। युक्ति को जाने बिना चेतना का रूपांतरण नहीं हो सकता। अचेतन में छलांग नहीं होती, चेतन में छलांग होती है।

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