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विडंबना – गृहलक्ष्मी कहानियां

ये एक स्त्री के लिए विडंबना ही तो है कि घर-बाहर हर जगह उसका अपना ही वजूद सुरक्षित नहीं। नरपिशाचों से खुद को बचाते हुए लक्ष्मी का भाग्य भी ऐसी ही परिस्थितियों से गुज़र रहा था।

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घूंघट हटा था क्या? भाग-2

समाज में दलितों और स्त्रियों की दशा हमेशा दयनीय रही है… दलित जहां जातिवाद का शिकार होते रहे हैं, वहीं स्त्री चाहे किसी जाति-वर्ग से हो उसे भी समाज का तिरस्कार झेलना पड़ता है। ये कहानी समाज के इसी खोखलेपन की परतें खोलती हैं।

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परिणति – गृहलक्ष्मी कहानियां

दर्शन पढ़ाते-पढ़ाते वह ‘स्थित’ प्रज्ञ हो चुकी थी। वो दशा जिसमें ना कोई कामना-तृष्णा मन को भटका सकती है और ना ही कोई सुख-दुःख उसके प्रण को डिगा सकते हैं। स्वनियंत्रण इसी को कहते हैं। इसी पर तो सुधा को गर्व था। जो कुछ उसने भुगता था शायद उसकी परिणति भी यही होनी थी।

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गृहलक्ष्मी की कहानियां – गुलाम

साल पूरा होने के पहले ही मंगलू सेठ कर्ज मांगने गंगा के घर पहुंच गया, गंगा ने हाथ जोड़ते हुए कहा। ‘‘सेठ जी अभी तो फसल कटने को एक महीना है, थोड़ी सी और मोहलत दे देते। मैं आपकी पाई पाई चुका दूंगी।

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