कब जाएं?
तिरुपति चेन्नई से 130 किलोमीटर दूर स्थित है, जो एक मुख्य रेलवे स्टेशन भी है। तिरुपति की यात्रा करना आसान है। यहां से हैदराबाद, बंगलुरू और चेन्नई के लिए सड़क व रेल व्यवस्था भी है। तिरुपति का निकटतम हवाई अड्डा रेनिगुंटा है जो तिरुपति से 15 किमी. की दूरी पर स्थित है। दिल्ली, बैंगलोर, हैदराबाद और चेन्नई से तिरुपति के लिए सीधी उड़ानें उपलब्ध हैं। तिरुपति में रेलवे स्टेशन भी हैं जो भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।

कैसे जाएं?
बालाजी की यात्रा साल भर चलती है। यात्री कभी भी जा सकते हैं। फिर भी सबसे उत्तम समय ठंड के मौसम में दिसंबर से फरवरी तक का होता है।

कहां ठहरें ?
यहां अनेक धर्मशालाएं हैं, जहां ठहरने का कोई शुल्क नहीं लगता।

महत्व
तिरुपति बालाजी मंदिर विश्वभर के हिंदुओं का प्रमुख वैष्णव तीर्थ है। यह दक्षिण भारत में आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में है। यह मंदिर पर्वत की वेंकटाद्रि नामक सातवीं चोटी पर स्थित है, इसी कारण यहां पर बालाजी को भगवान ‘वेंकटेश्वरÓ के नाम से जाना जाता है। भगवान वेंकटेश को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। भगवान विष्णु यहां वेंकटेश्वर, श्रीनिवास और बालाजी नाम से प्रसिद्ध हैं।
यह भारत के उन चुनिंदा मंदिरों में से एक है, जिसके पट सभी धर्मानुयायियों के लिए खुले हुए हैं। पचास हजार से भी अधिक श्रद्धालु इस मंदिर में प्रतिदिन दर्शन के लिए आते हैं।

मंदिर की चढ़ाई
पैदल यात्रियों हेतु पहाड़ी पर चढ़ने के लिए ‘तिरुमाला तिरुपति देवस्थानमÓ नामक एक विशेष मार्ग बनाया गया है। इसके द्वारा प्रभु तक पहुंचने की चाह की पूर्ति होती है। साथ ही अलिपिरी से तिरुमाला के लिए भी एक मार्ग है।
तलहटी से मंदिर तक की यात्रा करने के लिए आपको बस की सुविधा मिलती है, जिसमें डेढ़ घंटा लगता है। वेंकटेश्वर भगवान के पैदल दर्शनों के लिए वैकुण्ठ कॉम्पलेक्स से निकलती पंक्ति मंदिर के विभिन्न गलियारों से होती हुई मंदिर तक जाती है।

सर्वदर्शनम्
सर्वदर्शनम् से अभिप्राय है ‘सभी के लिए दर्शनÓ। सर्वदर्शनम के लिए प्रवेश द्वार वैकुंठम् कॉम्प्लेक्स है। वर्तमान में टिकट लेने के लिए यहां कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था है। यहां पर नि:शुल्क व सशुल्क दर्शन की भी व्यवस्था है। साथ ही विकलांग लोगों के लिए ‘महाद्वारमÓ नामक मुख्य द्वार से प्रवेश की व्यवस्था है, जहां पर उनकी सहायता के लिए सहायक भी होते हैं।

यूं होते हैं दर्शन
यात्रा के नियम पहले कपिल तीर्थ पर स्नान करके कपिलेश्वर के दर्शन करें। फिर वेंकटाचल जाकर वेंकटेश्वर बालाजी के दर्शन तथा ऊपर के तीर्थों के दर्शन के बाद नीचे आकर तिरुपति में गोबिंदराज आदि के दर्शन करें। इसके बाद तिरुण्चानूर जाकर पद्ïमावती के दर्शन करें। बालाजी के मुख्य दर्शन तीन बार होते हैं। पहला दर्शन विश्वरूप कहलाता है, जो प्रभातकाल में होता है। दूसरा दर्शन मध्याह्नïकाल में तथा तीसरा दर्शन रात के समय होता है। इनकेअतिरिक्त अन्य दर्शन भी हैं, जिनके लिए विभिन्न शुल्क निर्धारित हैं। पहले तीन दर्शनों के लिए कोई शुल्क नहीं है। मूर्ति के पूरे दर्शन प्रत्येक शुक्रवार को प्रात: अभिषेक के समय होते हैं।

मंदिर में प्रतिष्ठिïत मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि यह जमीन से प्रकट हुई थी, जबकि कुछ लोग ऐसा भी कहते हैं कि वर्तमान मूर्ति सन्ï 280 ई. तक घने जंगल में थी। जंगल से मूर्ति को उठाकर मंदिर में स्थापित कर दिया गया।

स्थापत्य कला का अद्ïभुत संगम
नौवीं शताब्दी में बने इस मंदिर में पत्थरों की छत, दीवारें और उन पर लिखी इबारतें, दीवारों पर हाथी, घोड़े और तीर-कमान लिए आदिम आकृतियां हैरान कर देने वाली हैं। कुछ दरवाजों पर स्वर्ण जड़ा हुआ है। चलते-चलते गर्भगृह पहुंचते हैं, तो वहां आनंद निलय दिव्य विमान गुंबद के नीचे वेंकटेश खड़ी मुद्रा में दर्शन देते हैं।

ब्रह्मïोत्सव
तिरुपति केवल धार्मिक केंद्र नहीं है; यह एक समृद्ध सांस्कृतिक केंद्र भी है। यह अपने त्योहारों और मेलों के लिए प्रसिद्ध है। तिरुपति का सबसे प्रमुख पर्व ‘ब्रह्मïोत्सवमÓ है जिसे मूलत: प्रसन्नता का पर्व माना जाता है। नौ दिनों तक चलने वाला यह पर्व साल में एक बार तब मनाया जाता है,

केशदान
इसके अंतर्गत श्रद्धालु प्रभु को अपने केश समर्पित करते हैं जिससे अभिप्राय है कि वे केशों के साथ अपना दंभ व घमंड ईश्वर को समर्पित करते हैं। एक मान्यता के अनुसार भगवान बालाजी से मांगी मुराद पूरी होने पर श्रद्धालु तिरुपति के इस बालाजी मंदिर में श्रद्धा और आस्था के साथ अपने सिर के बालों को कटवाते हैं। केशदान के पश्चात्ï यहीं पर स्नान करते हैं और फिर पुष्करिणी में स्नान के पश्चात मंदिर में दर्शन करने के लिए जाते हैं।

प्रसादम
यहां पर प्रसाद के रूप में अन्न प्रसाद की व्यवस्था है जिसके अंतर्गत चरणामृत, मीठी पोंगल, दही-चावल जैसे प्रसाद तीर्थ यात्रियों को दर्शन के पश्चात् दिया जाता है।

तुलसी का प्रसाद
बालाजी को तुलसी पत्र चढ़ता है, जो किसी को दिया नहीं जाता। ये तुलसी पत्र मंदिर की प्रदक्षिणा में बने विरज नामक कुंए में डाल दिए जाते हैं।