Omkareshwar Jyotirlinga: मध्य प्रदेश का ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र स्थलों में से एक है। नर्मदा नदी के तट पर स्थित यह मंदिर ॐ के आकार वाली पहाड़ी पर बना हुआ है। मान्यता है कि भगवान शिव स्वयं यहां प्रतिदिन निवास करने आते हैं। इसीलिए इसे ‘ओंकारेश्वर’ कहा जाता है। हिंदू धर्म में यह विश्वास है कि इस पावन तीर्थ पर जल चढ़ाए बिना कोई तीर्थ यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती। महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, क्योंकि इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उनके सभी पाप धुल जाते हैं।
यहां भगवान शिव को ममलेश्वर और अमलेश्वर के रूप में पूजा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जो नर्मदा नदी के उत्तर में स्थित है और यहां भगवान शिव 33 करोड़ देवताओं के साथ विराजमान हैं। ओंकारेश्वर के आस-पास 68 अन्य तीर्थ भी स्थित हैं, जो इस स्थान की पवित्रता को और बढ़ाते हैं। महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर यहां लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। मान्यता है कि यहां पूजा करने से सभी पाप धुल जाते हैं और मन को शांति मिलती है। इस वर्ष महाशिवरात्रि पर भक्तों की सुविधा के लिए मंदिर को 24 घंटे के लिए खोल रखा गया है।
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विश्राम आरती की महिम
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, उज्जैन के महाकालेश्वर की भस्म आरती की तरह, अपनी शयन आरती के लिए प्रसिद्ध है। यहां भगवान शिव को दिन में तीन बार आरती की जाती है, लेकिन मान्यता है कि रात्रि में स्वयं भोलेनाथ यहां विश्राम करने आते हैं। इसीलिए यहां रात को चौसर का खेल भी सजाया जाता है। यह अद्भुत है कि जहां रात में एक भी पक्षी की आवाज नहीं सुनाई देती, वहां सुबह चौसर के पासे बिखरे मिलते हैं, मानो रात भर भगवान शिव और माता पार्वती ने चौसर खेला हो। यह रहस्यमयी घटना श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है।
राजा मांधाता और ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति से जुड़ी एक अद्भुत कथा है। कहते हैं कि प्राचीन काल में राजा मांधाता ने इसी स्थान पर भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और दो वरदान मांगने को कहा। राजा मांधाता ने पहला वरदान भगवान शिव को यहीं विराजमान रहने का मांगा और दूसरा वरदान यह मांगा कि इस स्थान का नाम उनके नाम पर रखा जाए। भगवान शिव ने उनकी दोनों मनोकामनाएं पूर्ण कीं। इसीलिए आज भी इस क्षेत्र को मांधाता के नाम से जाना जाता है और भगवान शिव यहां ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं।
ओंकारेश्वर की धार्मिक और ऐतिहासिक महत्ता
ओंकारेश्वर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि इसकी ऐतिहासिक महत्ता भी अत्यधिक है। यहां की वास्तुकला अद्भुत है और मंदिर परिसर के चारों ओर का वातावरण भक्तिमय है। नर्मदा नदी के पवित्र जल में स्नान करना भी अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। ओंकारेश्वर के निकटस्थ क्षेत्र में कई छोटे-बड़े मंदिर और आश्रम स्थित हैं, जहाँ साधु-संतों का निवास है। यहाँ आने वाले भक्तों को अध्यात्मिक और मानसिक शांति प्राप्त होती है।
यात्रा और दर्शन
ओंकारेश्वर तक पहुँचने के लिए कई सुविधाएं उपलब्ध हैं। सड़क, रेल और वायु मार्ग से यहां तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहाँ आने वाले भक्तों के लिए ठहरने की अच्छी व्यवस्था है। ओंकारेश्वर का दौरा करने के लिए सबसे अच्छा समय महाशिवरात्रि का पर्व होता है, जब यहाँ विशेष पूजा-अर्चना और आयोजन होते हैं। इस पर्व पर लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
आस्था और विश्वास
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यहां की धार्मिक गतिविधियों और पूजा-अर्चना में भाग लेकर भक्तजन भगवान शिव की कृपा प्राप्त करते हैं। इस पवित्र स्थल पर आकर हर कोई अध्यात्मिक अनुभव से गुजरता है और यहां की पवित्रता को अपने मन और आत्मा में महसूस करता है।
