Sheetala Ashtami 2023: हिंदू धर्म में सभी त्योहारों का अपना महत्व है। चैत्र मास में विभिन्न व्रत, त्योहार आते हैं। चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी को शीतला सप्तमी का पर्व मनाया जाता है। शीतला अष्टमी को राजस्थान समेत कुछ राज्यों में बास्योड़ा नाम से भी जाना जाता है। इस दिन शीतला माता की विशेष उपासना की जाती है और माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाया जाता है। पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि शीतला अष्टमी पर शीतला माता की पूजा करने से आरोग्य का वरदान प्राप्त होता है। देवी की पूजा करने से चेचक जैसी गंभीर बीमारियों में राहत मिलती है। आइये जानते हैं इस बार शीतला अष्टमी कब है और इसका महत्व क्या है।
कब है शीतला सप्तमी व अष्टमी?

हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि 13 मार्च 2023 को रात्रि 9 बजकर 27 मिनट पर शुरू होगी, जो 14 मार्च 2023 को रात्रि 8 बजकर 22 मिनट पर समाप्त होगी। इसलिए उदयातिथि के अनुसार, शीतला सप्तमी का पर्व 14 मार्च, मंगलवार को मनाया जाएगा। इसी तरह चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 14 मार्च रात्रि 8 बजकर 22 मिनट पर शुरू होगी, जो 15 मार्च को शाम 6 बजकर 45 मिनट पर समाप्त होगी। इसलिए शीतलाष्टमी का पर्व 15 मार्च, बुधवार को मनाया जाएगा। इसी दिन बास्योड़ा भी मनाया जाएगा।
शीतला अष्टमी का महत्व

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शीतला माता को चेचक रोग की देवी भी कहते हैं। प्रत्येक वर्ष चैत्र माह में कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी पर शीतला माता की पूजा करने का विधान है। इस पर्व पर एक दिन पहले शीतला माता के भोग के लिए पकवान तैयार किए जाते हैं और दूसरे दिन बासी भोग माता को चढ़ाया जाता है। मान्यता है कि शीतला माता की पूजा करने से बुखार, खसरा, चेचक रोग से मुक्ति मिलती है। इसलिए इस दिन विधि विधान से शीतला माता की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
शीतला अष्टमी पूजा विधि

शीतला अष्टमी पर सुबह जल्दी उठकर शीतला माता के मंदिर जाकर विधि विधान से पूजन करें। माता को एक दिन पहले बनाए गए खाद्य पदार्थों का भोग लगाएं। पूजन के समय ‘हृं श्रीं शीतलायै नम:’ मंत्र जपते रहें। बाद में शीतला माता की आरती कर पूजा करें। माता शीतला को जल अर्पित करें और बह रहे जल में थोड़ा जल लोटे में भी ले लें। उस जल को परिवार के सभी सदस्यों की आंखों पर लगाएं। कुछ जल की बूंदे घर में भी छिड़क दें। इस दिन माता शीतला माता के लगाए ठंडे भोग को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करें। शीतला माता को वास वटवृक्ष में माना गया है, इसलिए इस दिन वट की पूजा करने का भी विधान है। माता शीतला से आरोग्य व सुख—समृद्धि की कामना करें।
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