हाजी अली दरगाह की ख़ास बात
इस जगह पर लोग अपनी आस्था को प्रकट करने और घूमने टहलने के लिए आते हैं। यह जगह अपने मनमोहक स्थान, स्थापत्य सौंदर्य और धार्मिक महत्व के लिए जानी जाती है।
मुंबई की हाजी अली दरगाह हमारे देश के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में आती है। मुंबई में स्थित यह दरगाह देश के सबसे प्रसिद्ध इस्लामी तीर्थस्थलों में से एक है। हाजी अली दरगाह को अपनी बनावट और वास्तुकला के लिए भी जाना जाता है। यह इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का एक बहुत ही शानदार उदाहरण है। इस जगह पर लोग अपनी आस्था को प्रकट करने और घूमने टहलने के लिए आते हैं। यह जगह अपने मनमोहक स्थान, स्थापत्य सौंदर्य और धार्मिक महत्व के लिए जानी जाती है। हाजी अली दरगाह में 15वीं शताब्दी के सूफी संत पीर हाजी अली शाह बुखारी के पार्थिव अवशेष रखे हुए हैं। जिसकी वजह से इस जगह का महत्व और भी ज़्यादा बढ़ जाता है। इस जगह पर आपको आना चाहिए, इस जगह की ख़ूबसूरती आपका मन मोह लेगी।
हाजी अली दरगाह की वास्तुकला

हाजी अली दरगाह को अपनी आस्था के साथ साथ वास्तुकला के लिए भी जाना जाता है। जिसकी वजह से कला के प्रति रूचि रखने वाले लोगों की भीड़ लगी रहती है। यह दरगाह 4,500 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैली हुई है और 85 फीट ऊंची है। मुंबई की यह दरगाह ‘मकराना’ पत्थर का उपयोग करके बनाई गई है, वही पत्थर जिसका इस्तेमाल ताजमहल की संरचना में किया गया था। इस दरगाह में दो स्मारक हैं, जिनमें एक मस्जिद और पीर हाजी अली शाह बुखारी की कब्र शामिल है। मकबरा चारों तरफ से चांदी के फ्रेम से ढका हुआ है, और पूरा निर्माण संगमरमर के आठ खंभों से घिरा हुआ है। इस दरगाह का संरचनात्मक डिज़ाइन इंडो-इस्लामिक और मुगल वास्तुकला की शैलियों और डिज़ाइनों को दर्शाता है। यह अपने अनूठे और आकर्षक स्थानों के कारण, मस्जिद तक जाने वाली सड़क उच्च ज्वार के दौरान पानी में डूब जाती है, जिससे यह दुर्गम हो जाती है।
हाजी अली दरगाह का इतिहास

मुंबई में स्थित हाजी अली दरगाह का इतिहास बहुत ही पुराना है। यह दरगाह 15वीं शताब्दी के सूफी संत – सैय्यद पीर हाजी अली शाह बुखारी द्वारा बनवाई गई थी। बताया जाता है कि वह बुखारा के एक बहुत ही अमीर व्यापारी थे, जोकि वर्तमान उज्बेकिस्तान में स्थित है। मक्का जाने से ठीक पहले उन्होंने संत बनने के लिए अपनी सारी भौतिक संपत्ति और सांसारिक संपत्ति त्यागने का फैसला किया। मक्का के साथ साथ उन्होंने दुनिया भर की यात्रा की और आखिरकार मुंबई में बस गए। हाजी अली से जुड़े कई चमत्कारिक क़िस्से भी बताए जाते हैं। जिसकी कई जगहों पर व्याख्या मिलती है।
मृत्यु से जुड़ी चमत्कारिक कहानी

हाजी अली के बारे में ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा था कि वे उनकी मृत्यु के तुरंत बाद उन्हें न दफनाएं, बल्कि ताबूत को समुद्र में फेंक दें और फिर शव को ठीक उसी स्थान पर दफना दें जहां वह मिला था। बताया जाता है कि संत के अनुयायियों ने भी ऐसा ही किया और उनका ताबूत वर्ली में एक टीले पर मिला। उसी स्थान पर बाद में हाजी अली मस्जिद और संत की कब्र का निर्माण किया गया। आज, यह कब्र एक प्रसिद्ध मस्जिद बन गई है जहाँ सभी धर्मों के लोग आते हैं। आपको भी अपनी मुंबई यात्रा के दौरान इस जगह पर जरूर आना चाहिए।
