maa ke jeevan mein koi itvaar nahi hota
maa ke jeevan mein koi itvaar nahi hota

Mother’s Day Special: मां के जीवन में कोई इतवार नहीं होता छुट्टी वाला आज़ादी का त्योहार नहीं होता।
घर संभालती है तो कभी बच्चों को पालती है चैन से जीने का उसको अधिकार नहीं होता।
रखती है हर रिश्ते को उसकी हर सही जगह प्यार में उसके थोड़ा भी व्यापार नहीं होता।
कितना भी वो सजले आखिर कपड़े गहनों से बिना पति के उसका पूरा श्रृंगार नहीं होता।
पढ़ लिख कर हम निकल गये हैं यूं तो उससे आगे पर बिना डोर के फूल कभी कोई हार होता।
हो कितनी तकलीफ चाहे उसको हमारी खातिर भूले से भी दर्द का उससे इज़हार नहीं होता।

आटे में नौन कम था सो आंसू मिला लिया आंच का बहाना बनाकर आंसू छिपा लिया।
भरे हुए गले में जब उतरा न एक कौर तूने फिर उपवास का बहाना बना लिया।
गाती नहीं हैं चूड़ियां आंगन में गीत कोई खांसी के तेरे शोर ने सब कुछ दबा लिया।
बिना किसी तख्ती के मैं आया हूं अव्वल देख तेरी झुर्रियों ने मुझे कितना पढ़ा लिया।
पड़ गया जब नील तेरे खेतों में काम करके महावर लगा के पैरों का छाला छिपा लिया।
तुझको पता है आज भी नहीं आएगा बापू डाकिये से फिर पुराना खत पढ़ा लिया।

मुझसे बहुत दुखी थी मगर फिर भी लाड़ करती रही काली थी सूरत मेरी पर वो मुझे लाल कहती रही।
बुखार से खुद तप रहा था उसका शरीर फिर भी आदतन वो पंखा सर पर मेरे रात-भर झलती रही।
नींद न खुल जाये मेरी कहीं बारिश की बूंद से चूते हुए छप्पर के संग वो रात भर लड़ती रही।
मेरे जन्मदिन पर मुझे वो खिलाने को हलवा अपने वजन से ज़्यादा सिर पे ईंटों को ढोती रही।
बांध रही थी जिस रोज वो गले में मेरे ताबीज़ उम्र-भर की सलामती की दुआएं भी पढ़ती रही।
कच्ची मिट्टी का सही बनाया उसने था घर मगर हौसले पक्के थे उसके जिन्हें मुझमें भी भरती रही।
छन्न से बिखरी थीं जो वो महज़ अठन्नियां नहीं थीं उम्मीदें थीं जिन्हें जोड़कर वो गुल्लक में रखती रही।

जाने कब बेची थीं उसने अपनी शादी की चूड़ियां वो तो हमेशा बात मेरे सपनों की ही करती रही।
दिवाली पर दिलाने को वो मुझको नई कमीज धोती के फटे पल्ले को पूरे साल भर सिलती रही।
कमियां जिसके काम में मैंने निकाली थीं अक्सर मुझे काम का बनाने में क्या कुछ नहीं सहती रही । जब भी मैंने पूछा है उससे कि क्या चाहिए तुझको बातों को मेरी टाल कर किसी काम में उलझी रही।
कैसे कर देती हो छूमंतर तुम तकलीफों को अपनी मेरे इस सवाल पर वो बड़ी देर तक हंसती रही।
(सभी गजलें ‘तेरे साथ की आदत’ से)