Pitru Paksha 2023
Pitru Paksha 2023

Pitru Paksha: हमें अपने पूर्वजों से उनके इस लोक से जाने के बाद उत्तराधिकार के रूप में कुछ न कुछ सम्पत्ति अवश्य प्राप्त होती है। जिसमे सबसे पहला है हमारा शरीर जो हमें अपने माता-पिता से मिला होता है, इसमें कन्या या पुत्र का कोई भेद नहीं होता। परन्तु सम्पत्ति प्राप्त करने के बाद क्या इससे हमारे कर्तव्य समाप्त हो जाते हैं नहीं… कुछ चीज़ें दाह संस्कार के बाद भी बाकी रहती हैं जिन्हें उनके प्रति श्रद्धा पूर्वक पीछे रह गए लोगों को करना अनिवार्य है। इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्रिया है पिंडदान-

पिंडदान क्या है

सनातन धर्म में वर्णित पिंडदान किसी परिवार के सदस्य की मृत्यु के बाद किया जाना एक पवित्र अनुष्ठान है। गरुड़ पुराण के अनुसार स्वर्गलोक में जाने वाली आत्मा की शान्ति के लिये यह अनुष्ठान सबसे अनिवार्य क्रिया है। मरने के बाद हर मृतक को सबसे पहले प्रेत योनि की ही प्राप्ति होती है, क्योंकि मनुष्य किसी न किसी प्रकार की सांसारिक आसक्ति में बंधा होता है। पिंडदान ही वह कड़ी है जो प्रेत को अंतिम मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर कर पितृ में बदलती है। इससे मृतक आत्मा को शान्ति मिलती है और वह भौतिकवादी बन्धनों से आगे बढ़कर अपने प्रति पिंडदान करने वाले को आशीर्वाद देती हुई मोक्ष को प्राप्त हो जाती है।

कब किया जाता है पिंडदान

प्रत्येक वर्ष में हिन्दू माह आश्विन का कृष्णपक्ष पितरों को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि इस समय पितृलोक धरती के सबसे पास होता है। यही वह समय है जब उन्हें यमलोक से कुछ समय का अवकाश मिलता है वे धरती पर आते हैं और सूक्ष्म शरीर से अपने परिवार से मिलते हैं। इस समय उनके वंशजों, सन्तान या परिवार के किसी भी सदस्य द्वारा, उनके लिये जो भी दान, पूजा और श्राद्धकर्म किया जाता है उसे प्रसन्नता पूर्वक ग्रहण कर आशीर्वाद देते हुए अपने लोक को लौट जाते हैं। यदि परिवार में कोई भी न हो तो राजा को भी मृतक के अंतिम संस्कार व पिंडदान की शास्त्रों द्वारा अनुमति है।

पिंडदानकौन कर सकता है

पुराणों के अनुसार यूं तो पुत्र को ही पिंडदान एवं श्राद्धकर्म करना चाहिये। पुत्र न हो तो पुत्री, दत्तक पुत्र, भतीजा भतीजी, दौहित्र अर्थात पुत्री का पुत्र या नाती भी कर सकता है। यदि परिवार में कोई नहीं है तो शिष्य मित्र, रिश्तेदार या परिवार के पुजारी भी इसे सम्पन्न कर सकते हैं। इसमें स्त्री पुरुष का कोई भेद नहीं होता।

पितृ पूजा में लगने वाली सामग्री

पितृ पूजा में सफ़ेद , अर्थात रंगहीन व गन्धहीन सामग्री की अनिवार्यता होती है, इनमें तिल, जौ, चावल, कुशा व गंगाजल प्रमुख है। यदि गाय के दूध, घी, खीर, केले, उड़द, सफ़ेद पुष्प, गुड़ इत्यादि का प्रयोग करते हैं तो पितरों की प्रसन्नता प्राप्त होती है। दिन में 11.30 से दोपहर 2.30 तक पके हुए चावल में घी गुड़ शहद मिलाकर गोल गोल पिण्ड बनाये जाते हैं और उन्हें ही दक्षिण की ओर मुख करके पितरों को समर्पित किया जाता है।

सबसे पहले किसने किया पिंडदान

पुराणों में वर्णित है कि सबसे पहले महर्षि निमि ने पिंडदान व श्राद्ध किया था।

कौन पहुंचाता है पितरों को भोजन

Pitru Paksha
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पितरों को भोजन अग्निदेव पहुंचाते हैं, उन्हें भोजन देने वाली अग्नि का नाम है स्वधा। पितर कव्य अर्थात कौओं को मिलने वाली काकबलि से तृप्त होते हैं। इनके अतिरिक्त गौ और श्वान को भी भोजन दिया जाता है।

स्त्रियों में सबसे पहले माता सीता ने किया था पिंडदान

वाल्मीकि रामायण में वर्णित है कि स्त्रियों में सबसे पहले माता सीता ने अपने ससुर महाराज दशरथ का पिंडदान किया था। वनवास के समय भगवान राम व लक्ष्मण को आवश्यक सामग्री लाने में देर हो गयी, और श्राद्ध का मुहूर्त निकला जा रहा था। उस समय आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का शुभ समय व्यतीत होने वाला है, तब महाराज दशरथ की आत्मा ने माता सीता को दर्शन दिये और पिंडदान करनेको कहा।

माता ने उनकी आज्ञा का पालन करते हुए फल्गु नदी, केतकी के फूल, गौ, वटवृक्ष को साक्षी मानकर बालू के ही पिण्ड बनाकर पिंडदान कर दिया। भगवान राम जब लौटे तो माता ने बताया कि वह पिंडदान कर चुकीं हैं, इस पर वो अचरज में पड़ गए कि बिन सामग्री कैसा पिंडदान? उन्होंने साक्ष्य मांगा तो इस बात पर फल्गु नदी, केतकी व गाय ने असत्य बोल दिया। मात्र वटवृक्ष ने ही सच कहा। इस पर सीताजी ने महाराज दशरथ से ही प्रार्थना की और उन्होंने ही इस बात का प्रमाण दिया कि सीताजी ने ही उन्हें पिंडदान दिया। भगवान आश्वस्त हुए पर क्रोधित सीता जी ने केतकी को पूजा के लिये अयोग्य, गाय को जूठन खाने, और फल्गु नदी को नीचे बहने का श्राप दिया। आज भी गया में रेत के नीचे उसका जल मिलता है। और वटवृक्ष को लंबी आयु और सदाबहार रहने का आशीर्वाद दिया। साक्ष्य के प्रमाण से स्वयं को अपमानित अनुभव करने लगी इस पर माता सीता ने पिण्डदान की स्थिति बनने पर स्त्री द्वारा विशिष्ट सामग्री की अनिवार्यता को ही समाप्त होने का वरदान दिया। ये श्राप आज भी फलित दिखते हैं और इस बात का प्रमाण भी कि स्त्री के द्वारा किया गया पिंडदान पितर स्वीकार करते हैं।

स्त्री कर सकती है इन विशेष परिस्थितियों में पिंडदान

स्त्री द्वारा यदि पिंडदान के समय परिवार का कोई भी पुरुष सदस्य उपलब्ध न हो आचार्य को धन देकर पिंडदान का अनुष्ठान पूरा करवाना शास्त्रोक्त है। क्योंकि आचार्य सारे मंत्रों का ज्ञान रखते हैं…. यदि उसके कोई भी न हो तो नदी किनारे पीले या सफेद गीले वस्त्रों में स्त्री स्वयं मृतक परिजन पिंडदान कर सकती है, बस उन्हें तिल और चावल का प्रयोग नहीं करना चाहिये। उनका पिंडदान करना और ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा देना ही पर्याप्त है।