बैसाखी शब्द सुनते ही दिलोदिमाग पर प्रसिद्ध व जोशीला गिद्ध व भांगड़ा नृत्य जीवंत हो उठता है। ये नृत्य, जिसमें उत्साह, उमंग और जोश को साकार रूप में देखा जा सकता है, बैसाखी के दिन पंजाब की गली-गली में दिखाई दे जाता है। शरद ऋतु के समाप्त होने तथा होली के रंग छट जाने के बाद यह त्योहार आता है। ये वह समय होता है जब आम के पेड़ मंजरियों से लदे होते हैं, वृक्षों से एक अद्भुत सुगंध आती है और बालियां लहलहाती नजर आती हैं। किसानों की छह माह की कठोर मेहनत इस गेहूं की फसल में फलती हुई दिखती है और यह मनोरम दृश्य किसानों को सबसे अधिक पुलकित कर देने वाला होता है। 
 
फसल काटने का शुभारंभ
 
बैसाखी धार्मिक त्योहार तो है ही, लेकिन इसकी महत्ता एक फसली त्योहार के रूप में अधिक है। यह त्योहार केवल पंजाब तक सीमित हो ऐसा नहीं है, वरन् पूरे भारत वर्ष में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। अप्रैल महीने की 13 या 14 तारीख को मनाई जाने वाली बैसाखी ‘रबी’ की फसल पकने के उलक्ष्य में मनाई जाती है। इस फसल को काटने का शुभारंभ पंजाब में बैसाखी के दिन से ही होता है।
 
नववर्ष का शुभारंभ
 
अन्य धमों में भी बैसाखी के त्योहार का महत्व है। आज से लगभग दो हजार साल पूर्व बैसाखी के दिन ही भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्धत्व प्राप्त हुआ था और बौद्ध संघ की स्थापना की गई थी अत: बौद्धधर्मी बैसाखी को एक विशेष दिन मनाते हैं। बंगाली और कश्मीरी समुदाय बैसाखी के दिन से ही अपने नववर्ष का शुभारंभ करते हैं।
 
माता सीता की सुनी प्रार्थना
 
ऐसा माना जाता है कि बैसाखी के दिन ही राजा भगीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाने में सफल हुए थे। एक पौराणिक कथा के अनुसार, राम-लक्ष्मण व सीता वनवास के दौरान जब रावी नदी के तट पर पहुंचे तो राम व लक्ष्मण की नदी में नहाने की इच्छा हुई और वे तैरते-तैरते काफी दूर निकल गए। कुछ समय तक प्रतीक्षा करने पर भी जब दोनों भाई नहीं लौटे तो सीता जी विचलित हो उठीं। उन्होंने शंकर भगवान से उनके शीघ्र वापस लौटने की प्रार्थना की। सीता जी की प्रार्थना सुनकर भोलेनाथ ने रावी के विशाल तट की पतली धारा में बदल दिया। फलत: राम-लक्ष्मण जल्दी तट पर आ गए। ऐसा माना गया है कि वह दिन बैसाखी का दिन था, जब भगवान शंकर ने सीता जी की प्रार्थना सुनी थी।
 
बैसाखी का सूर्य से संबंध
 
बैसाखी पर्व का सीधा संबंध सूर्य से माना गया है। बैसाखी जो हर वर्ष 13 या 14 अप्रैल को पड़ती है, 36 वर्ष बाद वह दूसरी तिथियों में पड़ती है। यह सूर्य गणना का पर्व है। हमारे देश में अधिकांश पंचांग सूर्य को छोड़कर चन्द्र गणना पर आधारित हैं। इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। इस दिन जगह-जगह पर मेलों का आयोजन होता है और श्रद्धालुगण नदियों व सरोवरों में स्नान करना पुण्य मानते हैं।
 
(साभार – साधनापथ)