Father-Daughter Relationship : जनरेशन गैप को कम करने की जिम्मेदारी दोनों पीढ़ियों की होती है। अगर हम अपने बुजुर्गों को समझने लगेंगे और उन्हें सम्मान देंगे, तो वे भी हमारी वाणी, हमारे लिबास और हमारी बात को तवज्जो देंगे। हर रिश्ते की बुनियाद समझदारी और विश्वास पर टिकी होती है। खासतौर पर घर की बेटियों को ऐसा लगता है कि पिताजी हमें नहीं समझते और कई घर की बेटियों को ऐसा लगता है कि पिताजी हमें नहीं समझते। कई बार पिता के सख्त रवैये को देख बेटियां पिता से दूरी बनाने लगती हैं। धीरे-धीरे जनरेशन गैप बढ़ने लगता है और उन्हें पिता से नफरत होने लगती है। वहीं पिता की आकांक्षाएं बेटी से बढ़ने लगती हैं। वे चाहते हैं कि हमारी बेटी संस्करी हो, जिसे अच्छे-बुरे की समझ भली प्रकार से होनी चाहिए। आइए जानते हैं, वो कौन से तरीके है, जिनसे पुत्री और पिता के मध्य बढ़ते गैप को कम किया जा सकता है।

एक दूसरे पर विश्वास करें
विश्वास पर हर रिश्ता टिका होता है चाहे वो पति पत्नी का हो, माता-पिता या बच्चों का। सबसे पहले आप अपनी बेटी पर विश्वास करना सीखें। जीवन में परिवर्तन जरुरी है। अगर आप नई पीढ़ी के साथ तालमेल बैठाना चाहते हैं, तो खुद को बदलें और बेटे की ही तरह बेटी पर भी विश्वास जताएं। अगर बेटी जीवन में कुछ नया करना चाहती है तो उसके फैसलें में शामिल हों। वहीं बेटी को भी अपने माता-पिता को सम्मान देना चाहिए और उन्हें समझाने का प्रयत्न करना चाहिए। उन्हें कभी भी पर धोखे में नहीं रखना चाहिए।
जरूरी है बातचीत
जनरेशन गैप को दूर करने के लिए सबसे पहले कम्यूनिकेशन गैप को दूर करना बेहद जरूरी है। जो उम्र के साथ बेटी और पिता के मध्य खुद-ब-खुद बढ़ने लगता है। अकसर घरों में देखा जाता है कि बेटियों की बढ़ रही उम्र के साथ उन्हें घर के कामकाज में लगाने का प्रयास किया जाता है। मगर उनसे ये नहीं पूछा जाता कि वे क्या करना चाहती हैं। अपने बच्चों को समझने की जिम्मेदारी केवल हमारी होती है। ऐसे में पिता को अपनी बेटी से बात करनी चाहिए और उसके मन की बात को जानना चाहिए। फिर चाहे वो बात करियर से जुड़ी हो या फिर विवाह सें। इसके अलावा घर के फैसलों में बेटे के साथ-साथ बेटी का सुझाव भी जरुरी है, जो आगे चलकर उसे आने वाली जिंदगी में मदद करेंगे। अगर आपकी लाडो अभी छोटी है, तो उसे पब्लिक प्लेस या फिर किसी भी कार्यक्रम में अपने साथ लेकर जाएं और उससे ज्यादा बातचीत करें, ताकि वो आपके करीब आ सके और आप में अपना मित्र खोज सके।
बेटी के साथ आउटिंग पर जाएं

माता पिता को लगता है कि अब बच्चे बड़े हो गए है तो उन्हें साथ क्यों ले जाना। मगर यही वो क्षण होते हैं जब बेटी अपने पिता को अपनी ख्वाहिशों और अपने सपनों के बारे में बता पाती है। चाहे आप मार्निग वाॅक पर जा रहे हैं या घर का कोई सामान लेने जा रहे हैं, बेटी को अपने संग रखें। इससे बेटी खुद को आपके करीब समझेगी।
एक दूसरे की रूचि को समझे
एक पिता होने के नाते बच्चों की खुशियों का ख्याल रखना आपका कर्तव्य है। बेटी की पसंद-नापंसद को समझे। इसके अलावा ये जानने का प्रयास करें कि संगीत, पेटिंग, कुकिंग या फिर खेल। इनमें से किन चीजों में आपकी बेटी की रूचि है। जो भी चीज उसे पसंद है, आप उसे करने में बेटी की मदद करें। ये मामूली प्रयास पिता और बेटी के बीच जनरेशन गैप को कम करने का एक आसान तरीका है।
समय देना है जरूरी
बहुत से घरों में देखने का मिलता है कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ पिता और बेटियों में एक दूरी बनने लगती है। पिता के ऑफिस से आने से पहले ही बेटी सो जाती हैं जब कि अगर मां देर रात तक नहीं लौटती तो वहीं बेटी जागकर उनका इंतजार करती हैं। कारण मां के प्रति ज्यादा लगाव और प्यार। चाहे मां कामकाजी हो या फिर होममेकर वे बच्चों को डांटती भी है और पुचकारती भी है। मगर काम की व्यस्तता के कारण पिता का बेटी से ज्यादा संपर्क नहीं हो पाता है। कारण समय की कमी। इस समस्या को दूर करने के लिए रोजाना ऑफिस से आकर अगर आप कुछ वक्त अपनी बेटी, बेटे और पत्नी के साथ व्यतीत करते हैं, तो आप आसानी से उन्हें समझने लगेगें। इससे बच्चों और पिता का संबंध मजबूत बनने लगता है।
बेटी की न को भी स्वीकारें
ये जरुरी तो नहीं कि बच्चे हर बार आपके आदेशों के अनुसार ही चलें। कई बार बच्चे अपने फैसलें अपनी मर्जी से भी लेना चाहते हैं। ऐसे में अकसर पिता का रवैया बेटियों की ओर असहमति का रहता है, जो पूर्ण रूप से गलत है। हमें बच्चों को सुनना चाहिए और उनकी पसंद-नापसंद का भी पूरा ख्याल रखना चाहिए। अगर वो किसी कार्य को करने से मना कर देते हैं, तो उस बात पर उन्हें फटकार सुनाने की बजाय, उनका सम्मान करें और उन्हें मर्जी करने दें। अन्यथा कई बार बच्चे गलत संगति का भी शिकार हो जाते हैं।
मां का रोल है अहम
अगर बेटी और पिता में एक जनरेशन गैप बढ़ रहा है, तो ऐसे में मां का रोल सबसे अहम माना जाता है। मां को अपनी बेटी में आत्मविश्वास जगाना चाहिए, ताकि वे मुश्किल हालातों का सामना करने में सक्षम हो सके। इसके अलावा अब तक जो बात मां के माध्यम से बेटी पिता तक पहुचांती रही है, वे अब खुद पिता से उस बारे में बात करें, ताकि बेटी के मन में पिता के प्रति जो डर है या नाराजगी है, वो खत्म हो जाए।
