ओ कोरोना तेरा सत्यानाश हो। तू नर्क में जाए और तुझे कोई पानी भी न पूछे। अभी प्रकट होना था तुझको जब फेशियल करवा के, नई ड्रैस खरीद के, मैं बस तैयार ही थी। घर का रेनोवेशन ही नही करवाया था, गहने भी सारे एक्सचेंज करवा लिया थे। बाई को देने को पुराने कपडे भी गठरी बांध के तैयार कर लिये थे। गर्मियो में ठडें प्रदेश के टिकट बुक करवाये ही थे। मेरी किट्टी पार्टी इस महीने होनी थी। पैसे के पैसे आ जाते और सभी सहेलियो पर इम्पोर्टेड चीजो का रूआब भी झाड लेती पर तुमसे रहा नही गया।

पिछली किट्टी पर पता है मैं अपने इन्ही नायाब आईडियाज के कारण कितनी पापुलर हो गयी थी। अब तो बाई भी नही आ रही जो गली गली जा के मेरी शापिंग के बारे में बातें करे। मेरी लिपिस्टिक, नेल पालिश सब बेकार हो रही है। चलो घर पर कोई नहीं आ सकता तोे क्या मुहल्ले में ही चहल कदमी कर लेती। कम से कम दो चार ड्रैसेज और सैडिल ही प्रदर्शित हो जाते पर लाक डाउन ने तो घर में ही कैद कर दिया है।

कोरोना तेरे कारण सब बंद है। कभी सोचा है तूने हम बेचारी नारियाॅ कैसे जी रही है। वाट्सएप, फेसबुक, टीवी, रेडियो, टिव्टर और टिक टाॅक पर तेरे ही चर्चे है। ना गाॅसिप, ना बुराई, ना चुगली, ना अफेयर की बाते और तो और पतियों को घर बिठवा के तूने तो हमे कालापानी की सजा ही दे डाली। शादी के बाद से आज तक इतने मीन-मेख किसी ने मेरे नहीं निकाले जितने इन्होने हफ्ते दस दिन में निकाल दिये ।

 जब तू चीन में जन्मा था तो वहीं रहता। बडी मुश्किल से जिम जा जा के जो दो तीन किलो घटाये थे घर का सारा काम करने के बावजूद ऐसे डबल हो के चढे हंै कि पडोस वाले शर्मा जी ने पहचानना ही बंद कर दिया हैै। एक दिन बाजू वाले वर्मा जी के सामने छींक क्या आ गई वो तो तब से मेरी तरफ झाॅक भी नही रहे। कोरोना तेरे कारण वैश्विक मंदी आ गई है। विश्व का तो पता नहीं पर आजकल मेरी बचत जरूर मंद है। चैबीस घंटे ये घर मंे ही रहते है और अपने पर्स पे नजर जो रखते हैं।

अपनी पाक कला का प्रदर्शन करते करते अब मैं थक गई हुॅ। हमारा शहर बिना कचोरी समोसे के ज़िंदा कैसे है मैं तो इस बात पर हैरान हुॅ। हर हफ्ते सिनेमा हाॅल में जो पिक्चरें देख लिया करते थे तो अब घर पे रामायण ही चल रही है। अडोसी पडोसी इतने ढके छुपे रहते हैं कि मानो चाॅद पे जाने वाले एस्ट्रोनाॅट हों।
इस लाॅक डाउन के चलते कितने घर उजड जाऐंगे। मियां बीवी एक छत के नीचे इतना साथ रहेंगे तो कितने भेद खुल जाऐंगे। अरे खाने मे रूखी सूखी आदमी खा ले पर मेल मिलाप, उत्सव त्यौहार के बिना जीना, कोई जीना है भला! समाज हो या त्योहार, रंग तो महिलाएं ही भरती है जीवन में। तूने सडकें ही वीरान नहीं की हमारी हंसती खेलती दुनिया लील ली है। जवानी मे ही मोक्ष प्राप्ती की ओर अग्रसर हो गयी हैं हम। साफ सुथरा आसमान, प्रदूषण रहित हवा, पक्षियों का कलरव, परिवार के साथ बिताया समय सब अच्छा लग रहा है पर यह सब चार दिन की चाॅदनी है।

घर में लड झगड के मायके जाने की धमकी देने लायक भी नहीं छोडा तूने तो हमें। जीवन मे कोई उमंग ही नहीं बचेगी, ना श्रृगांर, ना परिहास तो ऐसा नारी जीवन किस काम का! हम नारियों पे तरस खा और अब तू चीन ही लौट जा।