लस्ट अर्थात वासना,डर के हानिकारक प्रभाव – श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार, अर्थात ,जो चीज़ मुझे चाहिए वो मेरे पास नहीं है, भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं,जैसे धुएँ से अग्नि और मल से दर्पण ढक जाता है (तथा) जैसे स्निग्ध झिल्ली से गर्भ ढका हुआ है वैसे ही मनुष्य की आत्मा उसकी कामना से ढकी होती है.मनुष्य के चरित्र में कई नकारात्मक गुण होते हैं लेकिन नि:संदेह कामवासना)उनमे सबसे ख़तरनाक है.ये दूसरे नकारात्मक गुणों को भी उत्पन्न करती है.जब कोई मनुष्य रजस गुण से युक्त वातावरण जैसे अश्लील,कामुक,उत्तेजित,हिंसा युक्त वातावरण में रहता है,वैसे कार्यों को देखता है,वैसे शब्दों को सुनता है और महसूस करता है तो उसकी इंद्रियाँ,मन और बुद्धि उसमें,लिप्त होती जाती हैं.वो उन घटनाओं या उन पदार्थों के बारे में बार बार सोचता है,जिससे उसके मन में उनके लिए इच्छा जाग्रत होती है,यह इच्छा जब एक हद से बढ़ जाती है तो यह वासना का रूप ले लेती है.लेकिन जब ये वासना किसी मनुष्य में लैंगिक वासना,सस्ती सामाजिक प्रतिष्ठा या आसान धन(बिना परिश्रम)की कामना में परिवर्तित हो जाय तो स्तिथी बहुत ही ख़तरनाक हो जाती है.ऐसी स्थिति में हमेशा मनुष्य विध्वस्कारी मार्ग का चयन करता है जिससे समाज की बहुत क्षति होती है.
किसी के मन में वासना,यूँ ही उत्पन्न नहीं हो जाती.ग़लत जीवन पद्धति,गलत आदतें और ग़लत शिक्षा से ,इस ख़तरनाक दुर्गुण का आगमन होता है.इस प्रकृति के सभी पदार्थ तीन गुणों से युक्त हैं.उन तीन गुणों में “रजस गुण” वासना का जन्म स्थान है.
- श्रीमद भागवद गीता में श्री कृष्ण कहते हैं कि,रजोगुण से उत्पन्न हुआ यह काम और क्रोध कभी तृप्त नहीं होता और पाप युक्त है और मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है.अनियंत्रित मन इंद्रियों को सांसारिक सुखों की ओर ले जाता है,लेकिन जब मन को नियंत्रित कर लिया जाता है तब वह व्यक्ति को सही दिशा में ले जाता है,जहाँ वो जाना जाता है.
- मन बहती हवा की तरह होता है,जिसे नियंत्रित करना कठिन होता है.गीता में श्री कृष्ण अर्जुन को ,मन को कैसे नियंत्रित किया जाये इस बारे में बताते हैं
- कि मन को नियंत्रित करने के लिए दो हथियारों का सहारा लेना पड़ता है,पहला हथियार अभ्यास का है और दूसरा वैराग्य का है.सतत अभ्यास का मतलब है मन को किसी जगह फोकस करो,वो वहाँ से भागेगा ,मन पर विजय प्राप्त करने की कोशिश करो,वो फिर भागेगा,उसे फिर पकड़ो,ऐसा आपको बार बार करना होगा.
- एक बार मन नियंत्रित हो जाए तो फिर पुन:उसी रास्ते पर न चला जाए इसके लिए वैराग्य लेने की ज़रूरत होगी,क्योंकि आपकी मंज़िल के दौरान आपका मन उन्हीं सुखों के प्रति आकर्षित होता रहेगा.वैराग्य की प्राप्ति ज्ञान के द्वारा संभव है मन को समझना होगा .सारे सांसारिक सुख झूठे हैं.जब मन समझ जाएगा तो ,बुराई की ओर झुकेगा ही नहीं.इससे मन अनुसाशित होगा और आत्मनियंत्रण को विकसित करेगा.बुराई से छुटकारा प्राप्त करने के बाद उसका ध्यान उसके लक्ष्यों पर केंद्रित हो जाता है और वो सांसारिक सुखों और ऐसे विचारों जो उनके लक्ष्य में बाधा डालते हैं उनसे घृणा करने लगता है.
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