Sawan green tradition
Sawan green tradition

Overview:सिर्फ परंपरा नहीं, विज्ञान और आध्यात्म से भी जुड़ा है सावन का हरा रंग

सावन में महिलाएं हरे कपड़े और चूड़ियां पहनती हैं, जो केवल एक परंपरा नहीं बल्कि देवी पार्वती की भक्ति, सुहाग का प्रतीक और मानसिक शांति का माध्यम भी है। हरा रंग प्रकृति, नवजीवन और शुभता का प्रतीक माना जाता है। यह रंग न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से खास है, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी तनाव कम करने और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने में सहायक माना गया है।

Sawan Green Tradition: सावन का महीना व्रत और पूजा-पाठ के साथ-साथ आस्था, ऊर्जा और स्त्री-शृंगार का भी गहरा प्रतीक है। हर साल जब सावन आता है, तो बाजारों में हरे रंग की चूड़ियों और कपड़ों की बहार आ जाती है। सुहागन महिलाएं खासकर इस महीने में हरे रंग की साड़ियों, सूट और चूड़ियों से खुद को सजाती हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस परंपरा की असली वजह क्या है?

दादी-नानी के समय से हम सावन, तीजे, हरे रंग की चूड़ी ,साड़ी ,सूट की बातें सुनते आए हैं । लेकिन शायद हम में से बहुत कम लोग इसके पीछे छिपे गहरे धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण के विषय में जानते होंगे । यह सिर्फ रंग नहीं है, बल्कि जीवन की नमी, हरियाली, नवजीवन और उर्वरता का प्रतीक भी है।

इस लेख में हम जानेंगे कि क्यों सावन में महिलाएं हरे कपड़े और चूड़ियां पहनती हैं, क्या है इसका देवी पार्वती और भगवान शिव से संबंध, और कैसे यह रंग हमारे मन-मस्तिष्क पर भी सकारात्मक असर डालता है। पढ़िए, समझिए और जुड़िए इस सुंदर परंपरा के पीछे छिपी आत्मिक भावना से।

सावन में हरियाली और हरे रंग का गहरा संबंध

सावन का महीना हरियाली का मौसम होता है, जब चारों ओर प्रकृति अपने सबसे सुंदर रूप में दिखती है। इसी हरियाली को ध्यान में रखते हुए महिलाएं हरे रंग के कपड़े और चूड़ियां पहनती हैं। हरा रंग नवजीवन, उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। जब महिलाएं इस रंग को धारण करती हैं, तो वे अपने जीवन में ताजगी, प्रेम और नई ऊर्जा का स्वागत करती हैं। यह रंग उन्हें आंतरिक रूप से प्रफुल्लित करता है और मानसिक शांति देता है। साथ ही, हरे रंग को पहनकर वे प्रकृति के साथ सामंजस्य भी स्थापित करती हैं। यह न सिर्फ एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि प्रकृति से जुड़ने का एक गहरा भावनात्मक और आध्यात्मिक जरिया भी है।

माता पार्वती से जुड़ा है हरा रंग

ऐसा कहा जाता है कि हरा रंग माता पार्वती को अत्यंत प्रिय है। सावन के महीने में जब महिलाएं व्रत करती हैं और शिव-पार्वती की पूजा करती हैं, तो वे हरे कपड़े और चूड़ियां पहनकर देवी को प्रसन्न करने का प्रयास करती हैं। ऐसा करने से उन्हें अखंड सौभाग्य और पति की लंबी उम्र का आशीर्वाद मिलता है। सुहागन महिलाएं विशेष रूप से इस रंग को पहनती हैं ताकि उनके वैवाहिक जीवन में प्रेम, स्थिरता और समृद्धि बनी रहे। यह एक सुंदर धार्मिक परंपरा है जिसमें नारी की श्रद्धा और प्रेम झलकता है। यह रंग देवी पार्वती से आत्मिक जुड़ाव का माध्यम बन जाता है और स्त्रियों को एक गहरा आध्यात्मिक बल देता है।

हरा रंग देता है मन को शांति और सुकून

हरे रंग का धार्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक महत्व भी है। आयुर्वेद और कलर थेरेपी के अनुसार, हरा रंग मानसिक तनाव को कम करने में सहायक होता है। यह ब्रेन को शांति देता है और भावनात्मक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। सावन के दिनों में जब सब ओर हरियाली होती है, तब हरे रंग के वस्त्र पहनना मनोवैज्ञानिक राहत देता है। इससे मन में पॉजिटिव ऊर्जा का संचार होता है। महिलाएं जब इस रंग को पहनती हैं, तो वे खुद को मानसिक रूप से ज्यादा संतुलित, शांत और खुश महसूस करती हैं।

हरी चूड़ियां: सुहाग और प्रेम की पहचान

भारतीय संस्कृति में हरी चूड़ियों को सुहाग की निशानी माना गया है। सावन में जब महिलाएं हरे रंग की चूड़ियां पहनती हैं, तो यह न केवल एक फैशन स्टेटमेंट होता है, बल्कि यह उनके जीवनसाथी के प्रति प्रेम और आस्था का भी प्रतीक होता है। इन चूड़ियों की खनक उनके मन की भावनाओं को दर्शाती है और उनके रिश्ते में मधुरता का प्रतीक बनती है। यह एक सुंदर परंपरा है जिसमें स्त्रियों का समर्पण, प्रेम और विश्वास झलकता है। साथ ही चूड़ियों की यह परंपरा नई पीढ़ी को भी अपने संस्कृति और परंपराओं से जोड़ने का सुंदर जरिया बनती है।

आध्यात्म, शुभता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक

हरा रंग सिर्फ सजने-संवरने तक ही नही, बल्कि स्पिरिचुएलिटी से भी जुड़ा है। यह रंग शांति, संतुलन और सौभाग्य का प्रतिनिधित्व करता है। सावन में जब महिलाएं हरे कपड़े पहनती हैं, तो वे न केवल सामाजिक परंपराओं को निभा रही होती हैं, बल्कि अपने अंदर की सकारात्मकता और भक्ति को भी व्यक्त करती हैं। यह रंग उनके पूजा-पाठ और भक्ति को भी मजबूत बनाता है। जब पूरा माह शिवभक्ति में डूबा हो, तब इस रंग के माध्यम से एक आध्यात्मिक ऊर्जा महसूस की जाती है। यह परिधान बाहरी सुंदरता के साथ-साथ आंतरिक संतुलन और ईश्वर से जुड़ाव को भी दर्शाता है।

मेरा नाम दिव्या गोयल है। मैंने अर्थशास्त्र (Economics) में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है और उत्तर प्रदेश के आगरा शहर से हूं। लेखन मेरे लिए सिर्फ एक अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि समाज से संवाद का एक ज़रिया है।मुझे महिला सशक्तिकरण, पारिवारिक...