Mahashivratri Char Prahar Puja: ब्रह्मांड के संहारक और त्रिदेवों में एक भोले भंडारी महादेव की पूजा-व्रत के लिए महाशिवरात्रि क त्योहार बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का पर्व शिव भक्तों के लिए आध्यात्मिक और धार्मिक रूप से विशेष महत्व रखता है। वैसे तो पूरे साल भगवान शिव से जुड़े कई व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं, लेकिन मान्यता है कि महाशिवरात्रि की रात शिव का वास शिवलिंग में होता है। यही कारण है कि इस पर्व में रात्रि पूजन का खास महत्व है। इस रात को महासिद्धिदायिनी माना जाता है। साथ ही महाशिवरात्रि पर रुद्राभिषेक और जलाभिषेक भी किए जाते हैं। आइए जानते हैं कब रखा जाएगा महाशिवरात्रि का व्रत और क्या है चार प्रहर की पूजा का समय।
महाशिवरात्रि क्यों मनाते हैं

शिवरहस्य में इस पर्व को लेकर कहा गया है- ‘चतुर्दश्यां तु कृष्णायां फाल्गुने शिवपूजनम्। तामुपोष्य प्रयत्तेन विषयान् परिवर्जयेत।। शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापप्रणाशनम्।’
महाशिवरात्रि का महापर्व फाल्गुन कृष्ण की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। शास्त्रों में शिव को चतुर्दशी तिथि का स्वामी कहा गया है। इस तिथि को ज्योतिष में भी परम कल्याणकारी माना जाता है। वैसे तो प्रत्येक मास मासिक शिवरात्रि होती है। लेकिन फाल्गुन कृष्ण की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के नाम से जाता है।
शिवपुराण में कहा गया है कि- ‘फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि। शिवलिंगतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ:।।’ यानी महाशिवरात्रि की रात्रि आदिदेव शिव करोडों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए। इसलिए इस दिन महाशिवरात्रि मनाते हैं।
महाशिवरात्रि पर चार प्रहर पूजा क्यों होती है

महाशिवरात्रि पर दिन के साथ ही रात्रि में भी चार प्रहर पूजा होती है। रात्रि के चार पहर को चार भागों में विभाजित कर हर प्रहर में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। शास्त्रों में रात्रि के चार प्रहरों की पूजा का महत्व भी बताया गया है।
स्कंद पुराण के अनुसार- ‘निशिभ्रमन्ति भूतानि शक्तय: शूलभृद यत:। अतस्तस्यां चतुर्दश्यां सत्यां तत्पूजनं भवेत्।।’ इसमें कहा गया है कि रात्रि के समय भूत, प्रेत, पिशाच जैसी शक्तियां और स्वयं शिव भी भ्रमण करते हैं। ऐसे में इस समय किए पूजा से मनुष्यों के समस्त पाप दूर होते हैं।
रात्रि में बीच के दो प्रहर की पूजा को लेकर शिवपुराण के विद्येश्वर सहिंता अध्याय 11 में कहा गया है कि-‘कालो निशीथो वै प्रोक्तोमध्ययामद्वयं निशि। शिवपूजा विशेषेण तत्काले अभीष्टसिद्धिदा।।’ यानी रात के चार पहर में बीच के जो दो पहर है उन्हें निशीथकाल कहते हैं। इसी काल में किए गए शिवपूजन से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।
महाशिवरात्रि की तिथि और पूजा मुहूर्त

इस वर्ष महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुन कृष्ण की चतुर्दशी को 26 फरवरी 2025 को मनाया जाएगा। क्योंकि चतुर्दशी तिथि 26 फरवरी को सुबह 11:08 पर लग जाएगी और 27 फरवरी को सुबह 08:54 पर समाप्त हो जाएगी। इस पर्व में उदयातिथि आवश्यक नहीं, क्योंकि महाशिवरात्रि की पूजा रात्रि में होती है, इसलिए 26 फरवरी को ही महाशिवरात्रि होगी।
महाशिवरात्रि पर रात्रि में चार प्रहर की पूजा का समय, अभिषेक और मंत्र

- पहला प्रहर:- शाम 6:43 से रात 9:47- मंत्र- “ह्रीं ईशानाय नमः”। इस पहर में शिव के ईशान स्वरूप का दूध से अभिषेक करना चाहिए।
- दूसरा प्रहर:- रात 9:31 से मध्यरात्रि 12:51, मंत्र- “ह्रीं अघोराय नमः”। इस पहर में शिव के अघोर स्वरूप का दही से अभिषेक करना चाहिए।
- तीसरा प्रहर:- मध्यरात्रि 12:51 से भोर 3:55, मंत्र- “ह्रीं वामदेवाय नमः”। शिव के वामदेव रूप का घी से अभिषेक करना चाहिए।
- चौथा प्रहर:- भोर 3:55 से सुबह 6:59, मंत्र- “ह्रीं सद्योजाताय नमः”। इस समय शिव के सद्योजात स्वरूप का शहद से अभिषेक करना चाहिए।
