भगवान गणेश की आराधना करने की परम्परा पुरानी है। किसी भी हिन्दू परिवार में किसी भी दूसरी पूजा से पहले गणेश भगवान को पूजा जाता है। किसी भी दूसरे देवी-देवता से पहले गणेश जी को याद किया जाता है। इन्हीं गणेश के ढेरों मंदिर पूरी दुनिया में बने हैं। यही वजह है कि गणेश जी की 39 मीटर की सबसे ऊंची मूर्ति भी बनाई गई है। लेकिन ये भारत में नहीं है। आश्चर्यजनक तौर पर ये थाइलैंड के ख्लॉन्ग ख्वेन शहर में बनी है। ये मूर्ति कांसे की है और प्रसिद्ध गणेश इंटरनेशनल पार्क में लगाई गई है। ऐसी ही दूसरी अद्भुत गणेश जी की मूर्तियों को भक्तों ने पूरी दुनिया में ई जगह स्थापित किया है। गणेश जी सुंदर-सुंदर प्रतिमाएं लगाई गई हैं, जिनमें से कई आपने भी देखी होंगी। लेकिन क्या कभी ऐसी मूर्तियों को भी देखा है, जो खुद ही प्रकट हुई हों। जी हां, ऐसे कई मंदिर हैं, जिन्की मूर्तियां खुद ही प्रकट हुई हैं। इस तरह के मंदिर वैसे तो देश भर में मिल जाएंगे लेकिन इस बार बात सिर्फ पुणे शहर की। यहां ऐसे ही मान्यताप्राप्त आठ मंदिर हैं, जहां मूर्तियां खुद प्रकट हुई हैं। इन्हें अष्ट विनायक मंदिर कहते हैं। ये मंदिर भक्तों के बीच काफी माने जाते हैं और सबके पीछे कुछ रोचक कहानियां भी हैं। इस आठों मंदिरों के दर्शन करने को अष्टविनायक तीर्थ यात्रा भी कहा जाता है। आप भी अगर गणेश भक्त हैं तो निकाल पड़िए इन मंदिरों के दर्शन को-
पुराणों में जिक्र-
इन आठों मंदिरों की अहमियत ऐसे समझी जा सकती है कि इनका जिक्र गणेश और मुद्गल पुराण में भी मिल जाएगा। मतलब इन मंदिरों की अपनी अलग पौराणिक विशेषता है। यही वजह है कि हर वर्ष यहां बड़ी संख्या में भक्त दर्शन के लिए आते हैं।  
एक ही पत्थर से बना गिरिजात्मज अष्टविनायक मंदिर-
गिरिजा के आत्मज जिसका मतलब होता है पार्वती के पुत्र यानि भगवान गणेश। ये मंदिर नासिक-पुणे मार्ग पर पुणे से 90 किलोमीटर दूरी पर बना है। प्रसिद्ध  बौद्ध गुफाओं के स्थान पर बने इस मंदिर को  लेण्याद्री पहाड़ पर बनाया गया है। ये गुफाएं भी अद्भुत हैं। ये कुल 18 गुफाएं हैं और इसकी 8वीं गुफा में ये गिरिजात्मज अष्टविनायक मंदिर बना है। ये मंदिर एक ही बड़े पत्थर को काट कर बनाया गया है। आपको इस मंदिर में आना है तो 300 सीढ़ियां चढ़नी पड़ेंगी। लेकिन भक्ति का रंग आपको थकने बिलकुल नहीं देगा, याद रखिए। 
सिद्धिविनायक मंदिर में नापना होगा पहाड़-
अहमदनगर में बने इस मंदिर को करीब 200 साल पुराना माना गया है। पुणे से 200 किलोमीटर दूर भीम नदी पर बने इस मंदिर की परिक्रमा करने के लिए पहाड़ की यात्रा करनी पड़ती है। यहां गणेश जी की मूर्ति 3 फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी है। इसकी सूंड दाईं ओर है। 
सालों से जलते दीपक वाला वरदविनायक मंदिर
वरदविनायक इच्छा पूरी होने का आशीर्वाद देते हैं। इस मंदिर में गणेश जी के साथ एक दिया भी काफी चर्चा का विषय रहता है। इस दीपक का नाम नंददीप है और ये कई सालों से लगातार जल रहा है। 
मयूरेश्वर मंदिर: मोर पर बैठ किया था दुष्टों का नाश-
इस मंदिर में बनाए चार दरवाजे तक अपनी अलग विशेषता रखते हैं। पुणे से 80 किलोमीटर दूर बने इस मंदिर के चारों दरवाजों को चारों युगों, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग का रूप माने जाते हैं। मंदिर में गणेश भगवान की मूर्ति बैठी अवस्था में है। इतना ही नहीं मूर्ति के 3 नेत्र, चार हाथ और सूंड बाईं ओर देखी जा सकती है। मंदिर का नाम मयूरेश्वर पड़ने के पीछे भी एक कहानी है। मान जाता है कि राक्षस सिंधुरासुर का वाढ ठीक इसी जगह पर गणेश जी ने मोर पर बैठ कर किया था। इस मंदिर में नंदी की मूर्ति भी है, जिसका मुंह भगवान गणेश की ओर है। माना जाता है कि भगवान शिव और नंदी यहां विश्राम के लिए रुके थे, लेकिन फिर नंदी ने जाने से ही मना कर दिया। मान्यता ये भी है कि इस मंदिर में गणेश जी की सवारी चूहा और नंदी, दोनों ही रक्षक के तौर पर रहते हैं। 
चिंताओं का नाश करने वाला चिंतामणी मंदिर-
चिंतामणि मंदिर थेऊर गांव में तीन नदियों के संगम पर बना है। अगर मन एक ठौर नहीं ठहरता तो इस मंदिर में जरूर जाइए। माना जाता है कि इस मंदिर में भक्तों की सारी उलझन दूर हो जाती है और मन शांत हो जाता है। भीम, मुला और मुथा नदियों के संगम पर बने इस मंदिर में कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने भी अपना मन शांत करने की कोशिश की थी। 
कष्टों को हरने वाला विघ्नेश्वर अष्टविनायक मंदिर-
पुणे-नासिक रोड पर 85 किलोमीटर दूर बना ये मंदिर ओझर जिले में है। माना जाता है कि विघ्नासुर नाम के राक्षस की प्रताड़ना देख कर भगवान गणेश ने उसका यहीं वध किया था। 
तहखाने में मूर्ति वाला महागणपति मंदिर-
ये महागणपति मंदिर बहुत पुराना है और इसे 9 से 10वीं सदी का माना जाता है। इस मंदिर के गणेश भगवान को माहोतक नाम भी दिया गुआ है। अनोखी बात ये है कि विदेशी हमलावरों से बचने के लिए इस मंदिर की अहम मूर्ति को तहखाने में छिपा कर बचाया गया था। 
भक्त के नाम पर बना बल्लालेश्वर मंदिर-
ये मंदिर पुणे के पास मुंबई-पुणे हाइवे पर पाली से गोवा राजमार्ग की ओर बना है और इसका नाम गणेश भगवान के भक्त बल्लाल के नाम पर पड़ा है। माना जाता है कि गणेश भगवान के इस भक्त को उसके परिवार ने मूर्ति समेत जंगल में छोड़ दिया था। फिर उसने सिर्फ पूजा करते हुए दिन काटे और भगवान को याद किया। फिर गणेश जी ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर खुद भगवान गणेश ने उन्हें दर्शन दिए थे। बाद में उनका मंदिर भी बना।