21 मंगलवारों का नियमित व्रत करने से मंगल दोष समाप्त हो जाता है। मंगलवार का व्रत मंगल भगवान को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए भी लोग मंगलवार का व्रत करते हैं।

सप्ताह के सातों दिन का संबंध किसी न किसी देवता या ग्रह आदि से है, जिसकी श्रद्धा एवं उपासना में हम व्रत तथा पूजा आदि करते हैं। मंगलवार से जुड़े व्रत एवं उपासना के पीछे भी यही कारण है।

विधि

मंगलवार का व्रत सर्वसुख, राज सम्मान तथा पुत्र प्राह्रिश्वत के लिए किया जाता है। स्नानादि से निवृत्त होकर लाल फूल, लाल वस्त्र व लाल चंदन से पूजा करके कथा सुनकर दिन में एक बार भोजन करना चाहिए। 21 मंगलवारों का नियमित व्रत करने से मंगल दोष समाप्त हो जाता है। मंगलवार का व्रत मंगल भगवान को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए भी लोग मंगलवार का व्रत करते हैं। उसमें हनुमान चालीसा, सुंदर कांड आदि का पाठ करते हैं।

कथा

 

एक वृद्धा सदैव मंगलवार का व्रत रखती थी। उसका एक पुत्र था जो मंगलवार को पैदा हुआ था। उसे वह मंगलिया के नाम से पुकारती थी। मंगलवार के दिन वह न मिट्टी खोदती और न ही अपने घर को लीपती थी। एक दिन उसकी परीक्षा लेने मंगल देव ब्राह्मण के रूप में वृद्धा के घर आए। वृद्धा से बोले, ‘मुझे बहुत भूख लगी है। भोजन बनाना है। तुम जमीन को लीप दो।’ यह सुनकर वृद्धा बोली, ‘महाराज आज मंगलवार है मैं जमीन नहीं लीप सकती। कहें तो जल का छिड़काव कर सकती हूं। वहां पर भोजन बना लें।’ ब्राह्मïण ने उत्तर दिया, ‘मैं तो गोबर से लिपे चौके पर ही भोजन बनाता हूं।’ वृद्धा ने कहा, ‘जमीन लीपने के अलावा कोई और सेवा हो तो वह मैं करने के लिए तैयार हूं।’ ब्राह्मïण बोला, ‘सोच लो। जो कुछ मैं कहूंगा तुमको करना पड़ेगा।’ वृद्धा बोली, ‘महाराज जमीन लीपने के अलावा आप जो भी आज्ञा देंगे उसका मैं अवश्य ही पालन करूंगी।’ वृद्धा ने ऐसा वचन तीन बार दिया। तब ब्राह्मïण बोले, ‘अपने पुत्र को बुलाओ मैं उसकी पीठ पर भोजन बनाऊंगा।’ ब्राह्मïण की बात सुनकर वृद्धा सकते में आ गई। तब ब्राह्मण बोला, ‘बुला लड़के को। अब क्या सोच-विचार करती हो।’ वृद्धा ने मंगल भगवान का स्मरण कर अपने पुत्र को बुलाकर औंधा लिटा दिया और ब्राह्मïण की आज्ञा से उसकी पीठ पर अंगीठी रख दी। उसने ब्राह्मïण से कहा, ‘महाराज! अब आपको जो कुछ करना है कीजिए, मैं जाकर अपना काम करती हूं।’ ब्राह्मïण ने लड़के की पीठ पर रखी हुई अंगीठी में आग जलाई और उस पर भोजन बनाया। जब भोजन बन गया तो ब्राह्मïण ने वृद्धा से कहा, ‘अपने लड़के को बुलाओ। वह भी आकर प्रसाद ले जाए।’ वृद्धा दुखी होकर तथा रोकर बोली ‘ब्राह्मïण! क्यों हंसी कर रहे हो? उसी की कमर पर अंगीठी में आग जलाकर आपने भोजन बनाया। वह तो मर चुका होगा।’ ब्राह्मïण द्वारा आग्रह करने पर वृद्धा ने ‘मंगलिया’ कहकर अपने पुत्र को आवाज लगाई। आवाज लगाते ही उसका पुत्र एक ओर से दौड़ता हुआ आ गया। ब्राह्मïण ने लड़के को प्रसाद दिया और कहा, ‘माई तेरा व्रत सफल हो गया दया के साथ-साथ तुम्हारे हृदय में अपने इष्ट-देव के लिए अटल निष्ठा एवं विश्वास भी है। तुम्हें कभी भी कोई कष्ट नहीं होगा। तुम्हारा सदा कल्याण ही होगा।’

 

कामना पूर्ण करने के लिए हनुमान जी का मंत्र

  • यह हनुमान जी का अत्यन्त पावन कीमती मंत्र है। इससे आप इनका साक्षात्कार कर सकते हैं। जैसा कि आप जानते हैं- हनुमान जी अमर हैं। ‘अष्ट सिद्धि नौ निधि’ के दाता हैं। अजर-अमर रहने का भी वरदान जानकी माता से इन्हें प्राप्त है। अत: इसमें जरा भी संशय नहीं है कि आप इनका साक्षात्कार नहीं कर सकते। आवश्यकता है आपके श्रद्धा-प्रेम की, आपके धैर्य एवं साहस की। सनत्कुमार जी इस मंत्र को मंत्रराज कहते हैं। वह विप्रगण की प्रार्थना पर इसका रहस्य खोलते हैं। इस मंत्र के सिद्ध कर लेने पर साधक मनचाहा कार्य कर सकता है। रोग का शमन व भूत-प्रेत का दमन कर सकता है।
  • जो व्यक्ति शत्रु से घिर गया हो, केस-मुकदमों से तबाह हो, वह दस दिन तक लगातार अद्र्धरात्रि को नौ सौ मंत्रों का जाप करे। इससे उसे निश्चित रूप से सफलता मिलेगी। यदि किसी व्यक्ति ने विष खा लिया हो या उसे विष खिला दिया गया हो, तो उसे एक सौ आठ बार इस मंत्र से अभिमंत्रित कर दें। इससे विष का नाश हो जाएगा। जिस व्यक्ति पर मारण का प्रयोग किया गया हो, उसे इसकी भस्म या अभिमंत्रित जल दें। कृत्या या मारण का इस मंत्र से नाश हो जाएगा। प्रेत बाधा या दैविक ज्वर-बुखार होने पर अभिमंत्रित जल से क्रोधपूर्वक ज्वर ग्रस्त पुरुष पर प्रहार करें। ऐसा तीन दिन तक करें। इससे ज्वर छूट जाएगा।
  • जिस व्यक्ति का घर सुप्तावस्था को प्राप्त हो गया हो, बहुत दिनों से प्रेत बाधा से युक्त हो, मकान श्री हीन हो गया हो, जिस व्यक्ति की गति पीछे की तरफ होती हो। वह व्यक्ति निम्न प्रयोग करे-
  • करंज वृक्ष की जड़ को श्रद्धा एवं अनुष्ठानपूर्वक निकालें एवं अंगूठे के बराबर हनुमान जी की प्रतिमा उससे बना लें। तत्पश्चात् उस मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा करके सिंदूर आदि से पूजा कर लें। उस प्रतिमा का मुंह घर की तरफ करके मंत्रोच्चारण पूर्वक उसे दरवाजे पर गाड़ दें। इससे उपद्रव एवं ग्रहादि दोष दूर होकर घर धन-धान्य, पुत्रादि से दीर्घ काल तक भरा रहेगा।
  • हनुमान जी की आराधना के समय ब्रह्माचर्य नियम से रहते हुए भूमि पर शयन करना चाहिए।

 

 

संपूर्ण कामना पूर्ण करने के लिए निम्न प्रयोग करें-

शुक्ल पक्ष की अष्टमी या चतुर्दशी को मंगलवार या रविवार के दिन एक लकड़ी के तख्ते पर तेल युक्त उड़द के बेसन से हनुमान जी की सुन्दर प्रतिमा बना लें। उनके बाम भाग में तेल का तथा दाहिने भाग में घी का दीपक जलाकर रख दें। तत्पश्चात् मूल मंत्र से हनुमान जी का आह्वान करें। लाल चंदन, लाल फूल व सिन्दूर से पूजन करें। तब धूप-दीप व नेवैद्य अर्पित करें। पुन: मूल मंत्र से ही भात, पूआ, साग, मिठाई, बड़े, पकौड़े धृत सहित अर्पित करें। तत्पश्चात सत्ताइस पान तीन बार मोड़कर कसैली वगैरह के साथ ही मंत्र से ही अर्पित करें। इसके बाद एक हजार बार मंत्र का जाप करें। अंत में कपूर से विधिपूर्वक आरती करें एवं अपना मनोरथ रखें। तत्पश्चात् उन्हें विधिपूर्वक विसर्जित करें।

अंत में अर्पित नेवैद्य से सात साधु या लोभ-लालच से रहित सात ब्राह्मïणों को भोजन कराएं। उन्हें सम्मानपूर्वक दक्षिणा दें, पान दें एवं विदा करें। अंत में अपने परिवार के सदस्यों के साथ मौनपूर्वक प्रसन्नता से प्रसाद ग्रहण करें। इससे हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है। साधक की अभीष्ट कामना पूर्ण हो जाती है।

मंत्र- ‘हौं हस्फ्रें फें हस्त्रौं हस्फे हसौं हनुमते नम:।’
यह बारह अक्षरों का मंत्र है। इस मंत्र रूपी गागर में सागर भर दिया गया है। यह बीज युक्त तांत्रिक मंत्र है। इसके ऋषि स्वयं श्री राम चन्द्र जी हैं। इसके देवता हनुमान जी हैं। ‘हसौं’ बीजें है तथा हस्फ्रे ‘शक्ति’ है। छह बीजों से षडन्यास करना चाहिए।

न्यास- यथा ‘हस्फ्र हनुमते नम: हृदयाय नम:। ख्फें रामदूताय नम: शिरसे स्वाहा।’ हस्त्रों लक्ष्मण प्राणदात्रे नम: शिखायै वषट। हस्ख्फे अश्चनी नम: कवचाय हुम। हसौं सीताशोकविनाशनाय नम:, नेत्राय वषट। हसफ्रे ख्प्रें हस्त्रों हसफ्रें, हसौं लग्ड़प्रासादमश्चनाय नम:, अस्त्राम् फट।’

इस तरह छह बीज एवं दो पदों का क्रमश: मस्तक, ललाट, मुख, हृदय, नाभि, उरु, जंघा और चरणों का न्यास करें। इस तरह हनुमान जी का निम्न श्लोक से अर्थ समझते हुए ध्यान करें।
उद्यत्कोलर्क संकाशं जगत्प्रक्षोभकारकम।

श्री रामाड्.घ्रिध्याननिमग्नं सुग्रीव प्रमुखार्चितम।।
वित्रासयन्ते नादेन राक्षसान् मारुतिं भजेत।

अर्थात्- उदयकालीन करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी हनुमान जी संपूर्ण जगत को प्रक्षोभ में डालने की शक्ति रखते हैं। सुग्रीव आदि प्रमुख वानर वीर उनका समादर करते हैं। वह राघवेन्द्र श्री राम के चरणारविन्द के चिन्तन में निरंतर संलग्न हैं। अपने सिंहनाद से संपूर्ण राक्षसों को भयभीत कर रहे हैं। ऐसे पवन कुमार हनुमान जी का भजन-ध्यान करना चाहिए।

हनुमान जी की मूर्ति या फोटो रखें या मन में संकल्प शक्ति से उनकी प्रतिमा बना लें। आह्वान स्थापन पूर्वक पाद्यादि उपचारों को विधिवत संपन्न कर लें। तदोपरान्त अष्ट दल कमल बनाकर हनुमान जी के निम्न आठ नामों की पूजा करें।

1. श्री राम भक्त, 2. महातेजा, 3. कपिराज, 4. महाबल,

5. द्रोणाद्रिहारक, 6. मेरुपीठार्चनकारक, 7. दक्षिणाशमास्कर, 8. सर्वविघ्नविनाशक।

 

निम्न प्रकार से पूजा करें-

‘श्री राम भक्ताय नम:, महातेजसे नम:, कपिराजाय नम:, महाबलाय नम:, मेरुपीठार्चनकारकाय नम:, दक्षिणाशामास्कराय नम:, सर्व विघ्नविनाशकाय नम:।’

  • तत्पश्चात् कमल दल के आगे से क्रमश: सुग्रीव, अंगद, नील, जाम्वंत, नल, सुषेण, द्विविद और मैन्द की पूजा करें। इसके बाद लोकपालों और उनके वज्रादि आयुधों की पूजा करें, जिससे मंत्र शीघ्र सिद्ध हों।
  • इस तरह नवरात्रों में श्री हनुमान जी को अधिष्ठापित कर नव दिन का अनुष्ठान ले लें। इन नव दिनों में कम से कम बारह हजार मंत्र का जाप करें। प्रथम दिन जितना जाप करें उतना ही प्रत्येक दिन जाप करना चाहिए। जाप के समय पवित्र कपड़ा धारण करके बैठना चाहिए। श्री हनुमान जी शुद्ध वैष्णव हैं। अत: साधक भी पूर्णत: शुद्ध वैष्णव बनकर भूमि पर ही शयन करें एवं फल-कन्द-मूल-दही अल्पाहार ग्रहण करें। नवरात्र भर कम से कम बोलें। संभव हो तो मौन ही रहें।
  • यदि साधक सुबह, दोपहर, शाम अद्र्धरात्रि को मिलाकर बारह घंटा जाप एवं ध्यान कर एक लाख मंत्र का जाप कर ले तो उसका कोई भी असाध्य कार्य पूरा हो जाएगा। यदि वह इस जाप एवं ध्यान में तन, मन, धन अर्पित कर गुरु से आशीर्वाद ग्रहण कर ले तो उसे अवश्य ही श्री हनुमान जी का दर्शन होगा। दर्शन होने पर श्री हनुमान जी से कुछ भी मांग नहीं करनी चाहिए न ही अपना कष्ट व्यक्त करें। साष्टांग दण्डवत कर उनकी पूजा-अर्चना करें।
  • साधक अपने मंत्र के जाप अनुसार उसका दशांश हवन करें। उसका दशांश मार्जन, उसका दशांश तर्पण करें। हवन में धान का प्रयोग होगा, धान के साथ आवश्यकतानुसार दही, दूध, घी मिलाकर आहुति देनी होगी।
  • इस तरह साधक श्रद्धा प्रेम से अंतिम दिन आहुति के पश्चात् साधु, संत व विप्र को भोजन कराएं। उन्हें दक्षिणा से संतुष्ट कर विदा करने के पश्चात् प्रसाद स्वरूप-अन्न ग्रहण करें। इससे साधक का कोई भी असाध्य काम सिद्ध हो जाएगा। उसका मंगल होगा तथा कीर्तियश में वृद्धि होगी। अरिष्ट ग्रह शांत होंगे। नया जीवन प्रारंभ होगा।
  • हवन सामग्री अर्थात् हवन करने के बाद जो भस्म (राख) ठंडी हो जाती है। उसे आप अपने घर में ईशान कोण पर गाड़ दें। वहीं तुलसी का पौधा लगा दें। हनुमान जी का ध्वज गाड़ दें। वह जगह पूजा के लिए ही प्रयोग में लाएं।
  • जो साधक नवरात्र में मात्र श्री हनुमान जी के इसी मंत्रराज का ध्यान, पूजा, जाप और हवन करता है, उसकी वर्ष भर श्री हनुमान जी रक्षा करते है। उसका विश्व में कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता। हनुमान जी जिसके साथ रहे उसे हर समय, हर क्षण विजय मिली है। वर्तमान जगत में श्री हनुमान जी सर्वश्रेष्ठ, सर्व जागृत देवता हैं, जिन्हें देखा जा सकता है, जिनकी कृपा की अनुभूति की जा सकती है, जिनके चमत्कार को प्रत्यक्ष किया जा सकता है।

यदि आपका गुरु गृह या गुरु आश्रम समीप हो, तो कृपया नवरात्र भर के लिए आप वहीं डेरा डाल दें। वहीं गुरु सेवा करते हुए नदी (गंगा) में स्नान करते हुए उसे प्रारंभ कर दें। यदि गुरु आश्रम पर गुरु नहीं हों तो आप उनसे पूर्व ही अनुमति ग्रहण कर लें। इस बीच अपना ही फल-फूल व कन्द-मूल ग्रहण करने की कोशिश करें। साथ ही हवन सामग्री अपनी रखें। दान पर निर्भर न रहें, अन्यथा आपका किया गया तप दान देने वाला ग्रहण कर लेता है। यदि आप ग्रहण कर रहे हैं तो उससे दो गुना दान अवश्य दें या सम्भव नहीं हो तो आप अपने शरीर व मन से गुरु आश्रम में भक्तों की सेवा कर उसकी पूर्ति करें। यदि आप तन-मन-धन लगाकर ग्रहण कर रहे हैं तो अत्यंत उत्तम है। भंडारा में प्रसाद ग्रहण करना उत्तम है। बशर्ते कि प्रभु प्रसाद समझकर अल्पाहार ग्रहण करें एवं आप स्वयं सेवा में भी जुट जाएं। सेवा सर्वश्रेष्ठ तप है। इससे अहं का नाश होता है। अहं के नाश होते ही श्री हनुमान जी की अनुकम्पा होने लगती है। अत: साधक का सेवा भाव ग्रहण करना अत्यावश्यक है।

 

(साभार – शशिकांत सदैव, साधना पथ)

 

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