वैसे तो ईश्वर के स्मरण के लिए कोई तय समय सीमा नहीं है, व्यक्ति जब चाहें भगावन का स्मरण कर सकता है। हां, लेकिन पूजा-पाठ जैसे कर्म कांड करते वक्त समय और पूजा विधि का ध्यान रखना जरूरी माना जाता है, जैसा कि हमारे शास्त्रों और दूसरे धर्म ग्रंथों में बताया गया है। बात करें पूजा के समय की तो सुबह और शाम का वक्त ही इसके लिए अनुकूल माना जाता है। विशेषकर ब्रहममुहूर्त में पूजा करना सबसे श्रेयस्कर माना गया है, इसके अलावा संध्या का समय भी पूजन कार्यों के लिए उपयुक्त माना जाता है। पर वहीं दोपहर और देर रात का समय पूजन कार्यों के लिए निषेध मान गया है। जी हां, आपने अक्सर ऐसा देखा या पाया होगा कि दोपहर के वक्त मदिरों और दूसरें धर्म स्थलों के द्वार भक्तों के लिए बंद कर दिए जाता है। लेकिन क्या आप इसका कारण जानते हैं, अगर नहीं तो चलिए आपको इसके पीछे कारण बताते हैं।
असल में, हिंदू धर्म पूर्णतया वैज्ञानिक धर्म माना जाता है, जिसमें बनाए गए हर नियम और रीति रिवाज के पीछे कुछ व्यवहारिक वजहे होती हैं। बात करें दोपहर के वक्त पूजा न करने की तो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो दोपहर का वक्त दुनियादारी के कामकाज के लिए होता है और इस समय हर जगर काफी शोरगुल होता है। ऐसे में अगर इस पूजा करें तो व्यक्ति का ध्यान पूजा में पूरी तरह से नहीं लग पाता है। जिसके कारण उसकी पजा बाधित होती है। वहीं सुबह ब्रहममुहूर्त में वातावरण बेहद शांत और सकारात्मक होता है, जिसमें की गई पूजा अधिक सफल होती है। यही वजह है कि धर्म शास्त्रों में सुबह या शाम के वक्त पूजा करने का विधान बनाया गया है।
इसके अलावा धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दोपहर और अर्द्ध रात्रि के वक्त भगवान विश्राम करते हैं, ऐसे में पूजा कर उन्हें उठाना जागृत करना उचित नहीं होता । इसीलिए दोपहर और रात्रि के समय पूजा करना उचित नहीं माना जाता है।
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