‪धर्म व्रत त्यौहार‬

 

हल षष्ठी के दिन हल की पूजा का विशेष महत्व है। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को बलदाऊ जयंती का पर्व मनाया जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान शेषनाग द्वापर युग में भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम के रूप में अवतरित हुए थे। बलराम जी का प्रमुख शास्त्र हल व मूसल है। इसी कारण इस पर्व को हलषष्ठी व हरछठ भी कहते हैं। इस दिन गाय के दूध व दही का सेवन करना वर्जित माना गया है। इस तिथि पर हल जुता हुआ अन्न तथा फल खाने का विशेष माहात्म्य है। यह व्रत पुत्रवती स्त्रियों को विशेष तौर पर करना चाहिए। इससे संतान को दीर्घायु प्राप्त होती है।

हरछठ पूजा विशेष रूप से उत्तर भारत के क्षेत्र में भारत की सबसे प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है। इस व्रत में पेड़ों के बिना बोया अनाज आदि खाने का विधान है। महिलाएं एक बेटा पर मिट्टी के एक दर्जन कुंढ़वा में सात प्रकार के भुने अनाज ( गेंहू, ज्वार, मसूर, धान, चना और मक्का ) भरकर पूजा करती हैं।

 

व्रत कथा

 

प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी। उसका प्रसवकाल अत्यंत निकट था। एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उसका मन गौ-रस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था। उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा।

यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई। वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया। वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया।

उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था, उसके समीप ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था। अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया। इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया। उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया।

कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची। बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है। वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती। अतः मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों को बताकर प्रायश्चित करना चाहिए।

ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची, जहां उसने दूध-दही बेचा था। वह गली-गली घूमकर अपनी करतूत और उसके फलस्वरूप मिले दंड का बखान करने लगी। तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर रहम खाकर उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया।

बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है। तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया।

 

 

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