Demons Interesting Facts: पौराणिक काल में जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की तब सबसे पहले जीवन जीने के लिए शिव और शक्ति को धरती पर रहने भेजा। शिव और शक्ति ने मिलकर प्रकृति के पंचतत्वों से अलग अलग प्राणियों को बनाया। इन सभी प्राणियों के लिए धरती पर जीवन संभव बनाया गया। सभी जीवों और प्राणियों को विशेष कार्यों को करने की शक्ति दी गई। हिंदू पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि कुछ प्राणियों ने अपनी शक्ति के घमंड में गलत और अनैतिक काम करने शुरू कर दिये जिसके कारण धरती पर दैवीय आत्माओं के साथ साथ कई बुरी शक्तियों ने भी जन्म लिया। इन बुरी शक्तियों को असुर, दैत्य या राक्षस कहा गया। ऐसे में सभी के मन में यह सवाल आता है कि आखिर असुर शक्तिशाली और बुरे बने कैसे। धरती पर असुरों का जन्म किस उद्देश्य से हुआ था।
दिति के पुत्र कहलाए दैत्य

पंडित इंद्रमणि घनस्याल के अनुसार, पौराणिक ग्रंथों में असुरों की जन्म कथा का उल्लेख मिलता है। सप्तऋषि कश्यप की 3 पत्नियों के पुत्र देवता, दैत्य और दानव बने। कश्यप ऋषि की पहली पत्नी अदिति ने 12 आदित्यों को जन्म दिया जो देवता कहलाए। दूसरी पत्नी दिति से जन्मे हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप को दैत्य कहा गया और तीसरी पत्नी दनू से जन्मे बालक दानव कहलाए। दैत्य और दानव, देवताओं से अधिक शक्तिशाली थे। जब इंद्रदेव ने सरल स्वभाव और कोमल हृदय वाले देवताओं को स्वर्गलोक के कार्यों के लिए चुना तो दैत्य और दानव बहुत क्रोधित हुए और अपनी शक्ति और अहंकार के कारण दैत्यों और दानवों ने मिलकर देवताओं और धरती के प्राणियों को परेशान करना शुरू कर दिया। अपनी शक्ति के गलत उपयोग और देवताओं से दुश्मनी के कारण ही दैत्यों और दानवों को असुर कहा जाने लगा।
राक्षसों का उद्देश्य

वेदों पुराणों में वर्णन मिलता है कि सृष्टि की शुरुआत में जब शिव और शक्ति ने मिलकर अन्य प्राणियों के लिए धरती पर जीवन संभव बनाया तब सभी प्राणियों को भू, भूव और स्व पर रहने भेजा। जिसमे भू का अर्थ है जमीन पर रहने वाले प्राणी, स्व का अर्थ है जो आकाश में रहते हैं और भुव का अर्थ है जो जमीन और आकाश के बीच में रहते हैं। सभी तरह के पशु पक्षी, जीव जंतु और मनुष्यों को धरती पर रहने भेजा गया। देवताओं को आकाश में रहने भेजा। आकाश और धरती के बीच में बहुत शक्तिशाली प्राणियों को भेजा गया ताकि भू और स्व के जीवों की रक्षा की जा सके। रक्षा करने के कारण ही इन्हें राक्षस कहा गया। ऋग्वेद में 105 बार राक्षस शब्द का उपयोग रक्षा करने वाले प्राणी के रूप में किया गया है। लेकिन धीरे धीरे राक्षसों में अपनी शक्ति और बल का अहंकार आ गया जिसके कारण राक्षसों ने धरती और आकाश के जीवों को सताना शुरू कर दिया और तब से ही राक्षसों को बुरी शक्ति के रूप में जाना जाने लगा।
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