देश के कई हिस्सों में रामभक्त हनुमान की पूजा की जाती है। भक्तों की सेवा से शीघ्र प्रसन्न होने वाले बजरंग बलि उनकी विपदा को दूर करने में तनिक भी देर नहीं लगाते। यही कारण है कि भारत के विभिन्न हिस्सों में उनकी पूजा व अराधना की जाती है। यहां हम हनुमान जी के 5 प्रमुख शक्तिपीठों के बारे में बता रहे हैं।

सिद्ध पीठ में की गई आराधना सहस्त्र गुना फलदायी होती है। भारत में कई देवी-देवताओं के अनेक सिद्धपीठ विभिन्न स्थानों पर स्थापित हैं। उनमें से एक देवता हनुमान भी हैं, जिनके शक्तिपीठ व मंदिर देश के विभिन्न हिस्सों में हैं। आइए जानते हैं उन्हीं में से 5 प्रमुख शक्तिपीठ के बारे में –

 

 

 

 

 

 

 

 

 

मेहंदीपुर बाला जी

यह देवालय एक हजार वर्ष पुराना है। दो पहाड़ियों के मध्य की घाटी में अवस्थित होने के कारण इसे ‘घाटा मेेहंदीपुर’ भी कहते हैं। मेहंदीपुर के बाला जी मनौतीपूर्ण करने वाले माने जाते हैं। इसी कारण पूरे वर्ष दृढ़ श्रद्धा रखने वाले भक्तों का आना-जाना यहां लगा रहता है। यह जयपुर से लगभग पैंसठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। राजस्थान में यह मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि मुगल शासनकाल में इस मंदिर को तोड़ने के अनेक प्रयास हुए, परंतु उन्हें सफलता नहीं मिली। नया मंदिर 200 वर्षों से अधिक पुराना नहीं है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

शुक्रताल हनुमान जी

श्री शुकदेवपुरी शुक्रताल मां भागीरथी के किनारे मुज्जफरनगर उत्तर प्रदेश का यह सुरम्य स्थल है, जो श्री शुकदेव जी की कर्मस्थली मानी जाती है। स्कंदपुराण काशी के अनुसार अड़सठ तीर्थों में से शुक्रताल शुक्रतीर्थ को सर्वश्रेष्ठ मोक्षदायक तीर्थ बताया गया है। यहीं पर स्थित हैं भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाले रामभक्त हनुमान जी। शुकताल का जीर्णोद्धार प्रारंभ होने के फलस्वरूप सत्तर फुट ऊँची पवन पुत्र जी महाराज की आशीर्वाद देने वाली सात सौ करोड़ रामनामी विशाल प्रतिमा की स्थापना हुई है। अतः शुक्रताल में विराजित भगवान श्री राम के परम भक्त हनुमान जी जो बल, बुद्धि, विद्या के दाता और हर कष्ट, दुख और बुराई का निवारण करने में सर्वसक्ष्म हैं, उनके समर्पण और भक्ति भाव से दर्शन, पूजा अर्चना व चमत्कारी मनोवांछित फल देने वाले हैं। मंगल और शनि ग्रहों से पीड़ित जातकों के कष्टों को मिटाने वाले हनुमान जी के विशाल विग्रह की पूजा-पाठ का चैत्र मास की राम नवमी और चैत्र मास की पूर्णिमा, अर्थात् हनुमान जंयती पर परम माहात्मय माना जाता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

चित्रकुट हनुमान धारा

चित्रकुट से तीन किलोमीटर की दूरी पर साढ़े तीन सौ सीढ़ियां चढ़ने पर हनुमान जी के दर्शन होते हैं। यह भाग पर्वत माला के मध्य भाग में है। कोटि तीर्थ से पहाड़ के उपर ही हनुमान धारा निकलती है। पहाड़ के सहारे हनुमान जी की विशाल मूर्ति के ठीक सिर पर दो जल कुंड हैं, जो सदा भरे रहते हैं और उनमें से निरंतर जल धारा प्रवाहित होता रहता है। इस धारा का जल निरंतर हनुमान जी का स्पर्श करता रहता है। अतः इसे हनुमान धारा कहते हैं। इसके बारे में एक कथा प्रसिद्ध है कि लंका विजय के पश्चात् जब भगवान का अयोध्या में राज्यभिषेक हुआ, तब श्री हनुमान जी श्री राम जी से बोले-भगवन! मुझे कोई ऐसा स्थान बताएं, जहां लंका दहन से उत्पन्न मेरे शरीर का ताप मिटे तब श्री हनुमान जी को यही स्थान बतााया था। यह स्थान इतना शांत एवं पवित्र है कि यहां अंतःकरण के सकल ताप मिट जाते हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

हनुमान गढ़ी अयोध्या

अयोध्या का सबसे प्रमुख श्री हनुमान मंदिर हनुमानगढ़ी के नाम से विख्यात है। लगभग सवा तीन सौ पूर्व स्वामी श्री अभयराम रामदास जी ने हनुमान गढ़ी की स्थापना की थी। यहां साठ सीढ़ियां चढ़ने पर श्री हनुमान जी का मंदिर मिलता है। इस विशाल मंदिर में श्री हनुमान जी की स्थानिक मूर्ति है। यहां श्री हनुमान जी का एक और विग्रह है, जो मात्र छः इंच ऊँचा है तथा सर्वदा पुष्पाच्छादित रहता है। हनुमान भक्तों के लिए यह स्थान अति श्रद्धास्पद है। हनुमानगढ़ी के दक्षिण में सुग्रीव टीला और अंगद टीला नामक स्थान है। यद्यपि श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या है, तथापि मंगलवार और शनिवार को यहां अपार भीड़ रहती है।

 

 संकट मोचन हनुमान मंदिर

उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में लंका के नाम से विख्यात एक इलाका है जहां स्थित है श्री संकट मोचन हनुमान मंदिर। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि वाराणसी के इस स्थान पर हनुमान जी ने श्री तुलसीदास को अपने भव्य व विराट रूप के दर्शन दिए थे। इस मंदिर की मूर्ति में हनुमान जी का सीधा हाथ अभय मुद्रा में है और उल्टा हाथ उनके सीने पर लगा है। यद्यपि इस मंदिर का परिसर बहुत ज्यादा बड़ा नहीं है। वस्तुतः कहा जाता है। कि इसके दर्शन मात्र से ही सारी तकलीफें दूर हो जाती हैं। 

शनिवार व मंगलवार को यहां पूरे दिन रामायण, किष्किन्धा कांड व सुंदर कांड के पाठ की गूंज से मंदिर का कोना-कोना गुंजित रहता है। प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को सूर्योदय काल में एक विशेष पूजा की जाती है। साथ ही चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को मंदिर में महा-उत्सव मनाया जाता है। जो कि चार दिन तक चलता है। इन दोनों अवसरों पर आशीर्वाद लेने के लिये भारत के कोने-कोने से यहां भक्त आते हैं और आशीष पाते हैं।

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