thagi har jagah nahi chalti
thagi har jagah nahi chalti

एक बार दो ठग एक गाँव में पहुँचे। वहाँ उन्होंने एक शवयात्र देखी, जिसमें भारी भीड़ शामिल थी। उन्होंने शवयात्र में शामिल लोगों से मृतक के बारे में पूछा तो पता चला कि वह गाँव का जमींदार था। वह बहुत दयालु स्वभाव का था, इसलिए उसकी शवयात्र में पूरा गाँव शामिल है। जमींदार के उदार स्वभाव की जानकारी पाकर उनके मन में उसके परिवार वालों को ठगने का विचार आया।

अगले दिन वे उसके घर पहुँच गए। वहाँ उन्हें जमींदार का बेटा मिला। पहले ठग ने उसे अपना परिचय एक कवि के रूप में दिया और उससे कहा कि जमींदार ने एक बार उसकी कविता सुनी थी और उसे सौ चांदी के सिक्के इनाम में देने का वादा किया था। दूसरे ठग ने बताया कि वह एक चित्रकार है, उसने जमींदार का चित्र बनाया था, जिसे देखकर जमींदार ने उसे दस सोने के सिक्के देने का वादा किया था। बेटा बोला कि अगर मेरे पिता ने तुम्हें इनाम देने का वादा किया है तो उसे पूरा करना मेरा कर्तव्य है।

वे खुश हुए कि बेटा उनके जाल में फंस गया। इसके बाद जमींदार के बेटे ने अपने आदमियों को बुलाया और बोला कि इन दोनों की इतनी पिटाई करो कि फिर किसी को ठगने के बारे में न सोचें। कारिंदों ने अपने मालिक के आदेश का पूरे उत्साह के साथ पालन किया और मार-मारकर उन्हें अधमरा कर दिया। कराहते हुए उन्होंने ‘पूछा कि कमबख्तों इतना मार लिया, कम से कम ये तो बता दो कि तुम्हें कैसे पता चला कि हम ठग हैं। इस पर एक कारिंदे ने बताया कि हमारे स्वर्गीय मालिक जन्म से ही अंधे और बहरे थे। इसलिए न किसी की कविता’ सुन सकते थे और न ही किसी का चित्र देख सकते थे।

सारः नए परिवेश में कोई भी काम करने से पहले वहाँ की पूरी जानकारी ले लेना सुरक्षित होता है।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)