गृहलक्ष्मी की कहानियां – अभी-अभी पदोन्नति की सूची कार्यालय में आई है। केवल एक ही नाम है, उसके कार्यालय से और वो है सुचेता का। सुचेता धनंजय सिंह। हां यही उसका पूरा नाम है। विवाह के बाद उसे बड़ा मान था धनंजय पर। उसने उसका नाम ही अपने नाम में जोड़ लिया था। वह इस खबर पर झूम उठी। मानो आसमान में उड़ रही हो। सारे कलीग मारे जलन के भुने जा रहे हैं। यहां तक कि कुछ संकीर्णमानसिकता वाले यह भी कानाफूसी कर रहे हैं कि बड़े साहब की ‘विशेष कृपाके कारण ही उसे यह खुशी मिली है जबकि सत्य यह है कि वह अपने काम के प्रति बहुत ईमानदार है, कुशाग्र भी है, अपना कार्य मेहनत व लगन से करती है। यह प्रमोशन उसके इन्हीं गुणों के कारण प्राप्त हुआ है।
वह इन सब बातों में व्यर्थ समय नहीं व्यतीत करना चाहती। वह तो बस जल्दी से जल्दी घर पहुंचना चाहती है। पतिदेव को इस खुशी का सरप्राइज देने के कारण उसने उन्हें फोन भी नहीं किया है। रास्ते से मिठाई भी ले ली। मंदिर में प्रसाद चढ़ाएगी, पति के साथ ही मंदिर जाएगी। घर पहुंच सबसे पहले हाथ-मुंह धोकर हल्का मेकअप करके, साड़ी पहन कर पति का इंतजार करने लगी। बच्चे भी घर में नहीं थे। सामने लॉन में गुलाब खिले हुए थे। उसने एक गुलाब तोड़कर अपने बालों में लगा लिया। गाड़ी रुकने की आवाज के साथ वह तेजी से बाहर आई। उसे सजा संवरा देखकर धनंजय खुश हो गए। वह कुछ कहती इसके पहले ही बोले, ‘क्या बात है मैडम, आज तो बिजलियां गिरा रही हो। ठीक तो हो न।’ कहते-कहते उसे बांहों में भर लिया।
‘पहले खुशखबरी तो सुनो रोमांस बाद में करना।’ अब तो धनंजय अधीर हो उठा। बांहों के घेरे और कसते हुए बोला, ‘जल्दी सुनाओ जानेमन वरना यह गिरफ्त कसती ही जाएगी।’
बहुपाश में बंधे-बंधे ही वह बोली, ‘मेरा प्रमोशन हो गया।’ परंतु पतिदेव को तो मानो चार-सौ चालीस वोल्ट का झटका लग गया। बहुपाश शिथिल पड़ गया। आश्चर्य से उसे देखने लगे जड़वत। वह भी उनके इस व्यवहार से अवाक रह गई। थोड़ी देर पहले की खुशी व उल्लास गायब हो गया। अभी जो पति आकंठ ह्रश्वयार में डूबा नजर आ रहा था। उसके स्थान पर अजनबी खड़ा हो जैसे। कुछ देर उसके मुंह से बोल ही नहीं फूटे, दोनों के बीच मौन पसरा रहा। फिर अपने को संयत करते हुए वह बोले, ‘प्रमोशन का अभिप्राय पता है? प्रमोशन होगा तो स्थानांतरण भी होगा। इतना आसान नहीं है, जितना तुम्हें लग रहा है। इसके लिए इतना खुश हो रही हो?’
उस पर मानो घड़ों पानी पड़ गया। उसकी सारी खुशी जलते हुए दिए के तेल की भांति काफूर हो चुकी थी। डबडबाई आंखों से बस इतना ही कह पाई, ‘आपको पता है, मेरे कार्यालय से केवल मेरा ही प्रमोशन हुआ है।’
धनंजय का चेहरा अभी निस्तेज था, भावना शून्य। बुरी खबर सुनी हो जैसे। कुछ देर पहले वाला प्यार जाने कहां ओझल हो गया था। रूखा चेहरा बना कर बोले, ‘एक कप चाय मिलेगी क्या?’
वह रसोईघर में आकर चाय बनाने लगी। इधर चाय उबल रही थी उसके मन में विचारों कीआंधी चल रही थी। माना कि उसके घर सेबाहर जाने से घर की व्यवस्थाएं बिगड़ जाएंगी,किंतु क्या उसके प्रमोशन की खबर से पति को एक बारगी खुश नहीं होना चाहिए। यही बात यदि वह उसे आकर बताता तो वह कितनी खुश होती। कितना प्यार करती उसे। इसी बात को कहो तो कहेंगे कि तुम तो नारीवाद का ढोल पीटती फिरती हो। इसे पुरुष प्रधान समाज की विडंबना ही कहा जाएगा कि पत्नी के प्रमोशन पर घर में खुशी के स्थान पर मातम का माहौल बन गया है। वह बहुत व्यथित थी।
चाय पर नजर पड़ी तो वह काढ़ा हुई जा रही थी। चाय में थोड़ा दूध और मिला कर वह पति के लिए लेकर आई।दिन छिपता जा रहा था। प्रसाद के लिए लाई मिठाई का डब्बा मेज पर ही पड़ा था। उसका मन तो दुखी हो ही चुका था, धनंजय ने चुप्पी साध ली थी जैसे कुछ हुआ ही न हो। उसने घर में ही दिया जलाकर मिठाई चढ़ा दी। भगवान के आगे आंखें बंद करके अपने को संयत करने की कोशिश करने लगी। प्रारंभ से महत्वाकांक्षी रही है वह। बचपन में डॉक्टर बनना चाहती थी। यह तमन्ना इसलिए पूरी नहीं कर पाई कि उस समय पिताजी की पोस्टिंग जहां थी, वहां लड़कियों के स्कूल में विज्ञान विषय नहीं था।
लड़कों के विद्यालय में पढ़ाना उन्हें पसंद नहीं था। इसलिए कला संकाय लेकर पढऩा उसकी मजबूरी थी। किंतु कुशाग्र होने के कारण हर परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करती रही। जब महिला बाल विकास अधिकारी पद के लिए चयनित हुई थी, तब वह कितनी खुश थी। घर-परिवार और नौकरी में उसने एक संतुलन सदैव बना कर रखा। घर सुचारू रूप से चलाया और नौकरी भी सही प्रकार से की, चाहे इसके लिए उसे कितनी भी मेहनत करनी पड़ी हो। इसके लिए सराहना भी मिली।
‘मां कहां हैं, आप जल्दी आइए देखिए मैं आपके लिए आपके पसंद वाली चॉकलेट लाई हूं।’बेटी नेहा की आवाज कानों में पड़ते ही उसकी विचार श्रृंखला टूट गई। पूजाघर से बाहर आते ही वह सामान्य हो गई। बिटिया गले में बाहें डालते हुए बोली, ‘बधाई हो मां। मुझे रास्ते में कीर्ति आंटी मिली थीं, उन्होंने ही यह गुड न्यूज दी। ओह मां ग्रेट हैं आप। कैसे कर पाती हैं इतना सब।’बस नेहा ने घर सर पर उठा लिया। चलो मां कहीं सेलिब्रेट करेंगे। पापा आप भी तैयार हो जाइए। टीवी पर नजरें जमाए बैठे धनंजय को भी आदेश दिया।
वे केवल बिटिया के आगे ही झुकते हैं। ‘ऐसा भी क्या हो गया जो इतना उछल रही हो।’वे झुंझलाते हुए बोले। ‘पापा आपको पता नहीं है क्या कि मां का प्रमोशन हुआ है। मां आपने बताया नहीं?’ ‘अरे बेटा, इसमें नया क्या है, दुनिया का प्रमोशन होता रहता है।’ धनंजय का एक-एक शब्द उसे बींध गया। पर बिटिया भी कम नहीं पडऩे वाली थी। ‘वाह जी वाह! आप मां के प्रमोशन को इतने हल्के में ले रहे हैं। पता है पूरे ऑफिस से केवल मां का ही हुआ है, यदि इतना ही आसान होता तो सबका क्यूं नहीं हुआ?’ वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी। बोली, ‘मेरी मां इतनी अच्छी हैं, यह बड़ी खुशी का समय है। सब साथ में बाहर खाना खाने चलेंगे। अनमोल भी आने ही वाला होगा। वह भी खुश होगा यह समाचार सुनकर। कल रविवार है मूवी के टिकट भी करा लेंगे।’
धनंजय ने टालने की बहुत कोशिश की पर उसकी एक न चली। हथियार डालने ही पड़े।अनमोल भी आकर बहुत खुश हो गया। मां के गाल पर किस करके बधाई दी उसने। चारों पास के होटल में डिनर करके आ गए। उसके और पति के बीच न के बराबर ही बात हुई। सुचेता सोच रही थी कि उसने विभागीय परीक्षा दी ही क्यों। वह तो अपनी दुनिया में खुश थी। बच्चों के भविष्य को लेकर ही वह सोचती रहती थी। नेहा इंजीनियरिंग कर रही थी। अनमोल बारहवीं में था, साथ में कोचिंग भी ले रहा था। व्यावहारिकता तो यही है कि ये समय उसके बच्चों के पास रहने का है। वह सोचने लगी कि वह कितनी स्वार्थी होकर सोच रही है कि पदोन्नत होकर बाहर चली जाएगी। उसने एक फैसला लिया।
उसने फैसला लिया कि वह अपने इसी पद के साथ अपने शहर में खुश है। बच्चे ही उसका भविष्य हैं। रविवार को चारों मूवी भी देख आए। अगले दिन सुबह से नियमित दिनचर्या शुरू हो गई। सुचेता नाश्ता व दोपहर का खाना बनाकर ऑफिस आ गई। शाम को जब घर पहुंची तो सामने लॉन में बाप-बेटी आराम कुर्सियों पर बैठे किसी गंभीर वार्तालाप में मग्न थे। उन दोनों को घर पर देखकर वह आश्चर्य चकित हो गई। ‘अरे आप इतनी शीघ्र आ गए ऑफिस से और तू भी कॉलेज नहीं गई?’उसे देखकर दोनों सकपका गए। मानो कोई चोरी पकड़ी गई हो। ‘आज शाम को पापा के ऑफिस की ओर से नए साल का जश्न है इसलिए पापा ऑफिस नहीं गए और मैंने पापा का साथ देने के लिए छुट्टी ले ली।’ नेहा ने
सफाई दी।
‘चलो मैं चाय लेकर आती हूं, साथ बैठ कर पिएंगे।’ कहते हुए वह अंदर जाने लगी।’नहीं मां, चाय और पोहा मैंने बना लिए हैं। आप फ्रेश होकर आइए मैं लेकर आती हूं।’ बेटी की इस बात पर उसे प्यार भी आया व आश्चर्य भी हुआ। कभी किचन में जाना पसंद नहीं करने वाली बेटी इतनी समझदार कब से हो गई।वह भी एक और कुर्सी लेकर लॉन में आकर बैठ गई। चाय व पोहा कुछ अधिक ही स्वादिष्ट लगा। बैठे-बैठे बहुत देर हो गई, अनमोल भी साथ आकर बैठ गया। वह मन ही मन खुश हो रही थी कि उसका फैसला सही है। तभी नेहा बोली, ‘चलो सब उठो, पार्टी को देर हो जाएगी। मां आप वो गुलाबी रंग की कश्मीरी कढ़ाई वाली साड़ी पहनना, उसमें आप बहुत सुंदर लगती हैं। हैं न पापा।’
धनंजय ने उसे ऐसी नजर से देखा कि वह शर्मा गई। नजरें चुराते हुए तैयार होने चली गई। चारों जब साथ में निकले। हे भगवान, मेरे परिवार को किसी की नजर न लगने देना। सुचेता सोचते हुए गाड़ी में आकर बैठ गई। गाड़ी सीधे होटल ‘शिराज’ पर रुकी। पार्टी यहां है, वह सोच ही रही थी कि सामने ‘वेलकम सुचेता’ का बोर्ड दिखा। वह कुछ समझ पाती उसके पहले पतिदेव ने माइक हाथ में लेकर बोला, ‘सुचेता तुम्हें पदोन्नतिकी बहुत-बहुत बधाई।’
सारे दोस्त मय परिवार के पहले से ही उपस्थित थे। ताली बजा कर उसे बधाई देते हुए उसका स्वागत करने लगे। दोनों बच्चे गुलदस्ते देकर प्यार से गले लग गए। धनंजय उसके पास आकर कान में बोले, ‘माफ करना सुचि मैं स्वार्थी हो गया था।’ वह भाव विभोर हो गई। हाल में सजे हुए फूलों की सुगंध उसके तन-मन को महका गई। घर-परिवार और नौकरी में उसने एक संतुलन सदैव बना कर रखा। घर सुचारू रूप से चलाया और नौकरी भी सही प्रकार से की, चाहे इसके लिए उसे कितनी भी मेहनत करनी पड़ी हो। इसके लिए सराहना भी मिली।
