Bhojan
Bhojan

Short Story: “कहा ना, मैं खाना नहीं खाऊँगा ……….
ले जाओ थाली मेरे सामने से…” ऊँची आवाज़ में यश ने कहा ।भोजन पर ग़ुस्सा  निकालना उनकी पुरानी आदत थी ।
जब दिल चाहा खाया, जब चाहा दुत्कार दिया। सीमा मन ही मन बहुत आहत थीं , थक चुकी थी उसके इस रवैये से ;आज सब्र का बाँध टूट ही गया, आँखो से आँसू और आवाज़ में गरज थी ….” तुम जानते हो ना,मेरी रसोई मेरा पूजाघर है, मै यहाँ केवल भोजन नहीं, प्यार पकाती हूँ और यादें बनाती हूँ ,जब तेल कि गर्म छींट पड़ जाती है ना ,हाथ पर तो भी मैं मुस्कुरा कर सह जाती हूँ ।छुरी कि तेज़ धार से ऊँगलीं कटने पर भी सब्ज़ी काटना नहीं रोकती हूँ , ना पाँव की सूजन मुझे डरा पाती है, ना ही कमर का दर्द डिगा पाता है ….. “
“ दिनों से.. महीनों से … ना जाने कितने वर्षों से रोज़ सुबह, दुपहर.. शाम कर किए जा रही हूँ एक ही काम ,बिना थके बिना रुके…..”
थाली सामने रखते हुए रुआसी हो बोली चुपचाप खा लो, फ़िर दुबारा कभी ना कहना ले जाओ इसे मै नहीं खाऊँगा “
ये भोजन नहीं प्रसाद है… इसमें मेरा प्रेम त्याग और तप है ।