sab kuch apne liye nahi
sab kuch apne liye nahi

इस संसार में ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं जो सिर्फ अपने लिए जीवन जीते हैं। उन्हें तो बस समय पर चाय-नाश्ता चाहिए, समय पर खाना चाहिए। सारे कार्य उनके अनुसार पूरे होते रहें। भले दूसरों को कितना ही कष्ट या परेशानी क्यों न पहुँचे। ऐसा लगता है जैसे इस प्रकार के लोगों के जीवन का न तो कोई ध्येय है न कोई उद्देश्य! सिर्फ पृथ्वी पर भार स्वरूप होते हैं ये लोग।

इस प्रकार के व्यक्ति समाज या देश के लिए भी कोई योगदान नहीं देते। ईश्वर ने हर व्यक्ति को पृथ्वी पर किसी न किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए भेजा है, पर लोग भूल गए। वे तो सिर्फ स्वार्थ और धोखाधड़ी से जुड़ गए। रामानुजाचार्य को उनके गुरु शहकोप स्वामी ने जीव के कल्याण के लिए अनेक महत्वपूर्ण मंत्र बताए और उन्हें किसी को भी बताने की सख्त मनाही कर दी।

इस अमूल्य धन से रामानुजाचार्य स्वयं लाभ नहीं लेना चाहते थे, बल्कि उसका लाभ सबको देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने जीव कल्याण एवं ईश्वर प्राप्ति के रहस्य जनता को बताने शुरू कर दिए। उन्होंने अपने गुरु की आज्ञा का स्पष्ट उल्लंघन किया। स्वामी शहकोप को जब रामानुजाचार्य की गतिविधियों का पता चला तो वे काफी नाराज हुए।

एक दिन रामानुजाचार्य को बुला कर बोले ‘क्यों रे मैंने तुझे ज्ञान प्राप्त करने के लिए कहा था, पर तूने तो उस ज्ञान को लोगों के कल्याण में लगाना शुरू कर दिया।’ रामानुजाचार्य ने कहा “गुरुदेव, मुझे क्षमा करें। इस अमूल्य धन को प्राप्त करके मैं सिर्फ अपना कल्याण नहीं करना चाहता। इसीलिए मैंने अन्य भाइयों को भी इसे बांटना शुरू कर दिया। मेरे अन्य भाई अज्ञानता में पड़े नारकीय यातनाएं सहते रहें और मैं अपना कल्याण करूं, यह तो मेरे लिए बड़ा भारी स्वार्थ होगा।’ शहकोप स्वामी अपने शिष्य के विचारों से अति प्रसन्न हुए। उन्होंने रामानुजाचार्य को अपने गले से लगा लिया।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)