roop nahi gun
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संगीतकार गालफर्ड की एक शिष्या थी। वह देखने में खूबसूरत नहीं थी, किन्तु बहुत अच्छा थी। दुर्भाग्य से जब भी वह मंच पर जाती, उसका प्रदर्शन खराब हो जाता। गालफर्ड ने एक दिन उसे अपने पास बुलाया और इसका कारण जानना चाहा। उसने बताया, ‘सर! मैं जब भी मंच पर जाती हूँ तो यह सोचने लगती हूँ कि दूसरी आकर्षक लड़कियों मुकाबले दर्शक मुझे नापसंद करेंगे और मेरा मजाक उड़ाएंगे। यह विचार आते ही मैं गाने की जो तैयारी घर से करके आती हूँ, वह भूल जाती हूँ जबकि मैं जब घर पर गाती हूँ तो लोग प्रशंसा करते नहीं अघाते।’

गालफर्ड ने उसे एक बड़े शीशे के सामने खड़े होकर गाते हुए अपनी छवि देखने को कहा और गाना खत्म होने पर उसे पूछा, ‘गाते-गाते समय तुम कितनी सुंदर दिख रही थी’ शिष्या ने कहा, समय मैं अपने रूप पर ध्यान ही नहीं टिका सकी, क्योंकि मेरा सारा ध्यान इस पर केन्द्रित था कि मैं कितना सुंदर गा सकती हूँ।” तब गालफर्ड ने उसे समझाया कि वस्तुतः वह कुरूप नहीं है, जैसा वह स्वयं को समझती है।

जो उसे सुनने आते है, वे उसे नहीं, उसकी आवाज की सुंदरता देखने आते हैं, और उसमें कुरूपता की बात कोई सोच भी नहीं सकता। अतः वह आत्मविश्वास जगाए। लड़की ने ऐसा ही किया और वह एक दिन “रांस की प्रख्यात गायिका मेरी वुडनाल्ड के नाम से विख्यात हुई।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)