nishtha aur ichchhaashakti
nishtha aur ichchhaashakti

इस संसार में जो व्यक्ति इच्छाशक्ति और निष्ठा के बल पर अपने कार्य करता है, वह सदैव सफलता अर्जित करता है। उसके रास्ते में आने वाली बाधाएं और रुकावटें स्वतः ही हटती जाती हैं। गुरु द्रोण के यहाँ पर राजकुमार ही बुद्धविद्या सीख रहे थे। परंतु हस्तिनापुर के राजसारथी अधिरथ ने गुरु द्रोण के मना करने पर भी अपने दोनों पुत्रें बसु व शोण को उनके यहाँ युद्धविद्या सीखने भेज दिया था। द्रोण का कहना था कि वे राजकुमारों को ही विद्या सिखलाते हैं।

एक बार गुरुजी सभी राजकुमारों की परीक्षा ले रहे थे। आश्रम में उस समय धृतराष्ट्र भी उपस्थित थे। धृतराष्ट्र बोले- आज सर्वप्रथम अर्जुन शब्दभेदी बाण चलाएंगे। अर्जुन की आंखों पर पट्टी बाँध दी गई। कुछ दूरी पर एक कुत्ता बाँध दिया गया। जैसे ही कुत्ते को डंडा मारा गया, वैसे ही वह भौंकने लगा। कुत्ते के भौंकते ही अर्जुन ने अपना बाण छोड़ दिया वह बाण कुत्ते के मुँह में चला गया। कुत्तों ने भौंकना बंद कर दिया। वह एकदम चुप हो गया। तभी पीछे बैठे एक युवक ने कहा- मैं सूत पुत्र बसु भी वह सब कर सकता हूँ जो अर्जुन ने किया है। ‘धृतराष्ट्र बोले -हां बसु को भी अवसर मिलना चाहिए।’ सुको अवसर दिया गया उसके लिए भी कुछ दूरी पर एक कुत्ता बाँधा गया।

कुत्ता जैसे ही भौंकने लगा, वैसे ही बसु ने अपना बाण छोड़ा। पर यह क्या। कुत्ता तो लगातार भौंक रहा था। सब लोग हंसने लगे कि बसु ने किस प्रकार बाण चलाया। पर धृतराष्ट्र बोले- सबसे श्रेष्ठ धनुर्धर तो ‘बसु’ ही है। मैं महसूस कर रहा था जैसे ही कुत्ता भौंका ठीक, उसी समय एक चिड़ियां अपने बच्चे को दाना खिला रही थी। उसकी आवाज पहले हुई। बसु ने अपना तीर छोड़ दिया। वह सौर अभी भी चिड़िया की चोंच में है। यह कार्य कुत्ते के मुंह में बाण भेदने से भी कठिन है। धृतराष्ट्र ने जब उस युवक से उसके गुरु का नाम पूछा तो उसने बतलाया कि उसके गुरु उसके पिता ही हैं। यहाँ आश्रम में वह गुरु द्रोण से युद्ध विद्या सीखने आया है। सच है पूरी तन्मयता, लगन और संकल्प के साथ जब इच्छाशक्ति हो तो प्रत्येक कार्य में विजयश्री मिलती है।

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)