saasha ka teddybear Motivational story
saasha ka teddybear Motivational story

नन्ही साशा थी शैतान, बल्कि शैतानों की नानी। फिर भी वह प्यारी थी। इतनी प्यारी कि हर कोई उसे चाहता था। मम्मी तो उस पर जान छिड़कती थीं। एक दिन साशा घर के आँगन में खेल रही थी, फिर देखते ही देखते गायब हो गई। साशा की मम्मी परेशान, ‘अरे, अरे, साशा कहाँ गई?’ उन्होंने आसपास पूछा, “अरे भई, तुमने हमारी साशा को तो नहीं देखा?” पड़ोस की शीला चाची से पूछा, “कहीं तुमने साशा को जाते तो नहीं देखा?” घर के सामने वाली रम्मो मौसी से भी पूछ लिया, “तुमने देखा मेरी साशा को?” खुद जाकर यहाँ-वहाँ दस जगह देख आईं।

जहाँ-जहाँ वे साशा को घुमाने ले जाती थीं, वहाँ भी देखा। मगर साशा कहीं नजर नहीं आई। “अरे, अरे, कोई मेरी साशा को ले तो नहीं गया?” साशा की मम्मी परेशान। मन ही मन उनका रोना छूट रहा था। तभी किसी ने कहा, “पार्वती भाभी, तुम सामने वाली भीखू बाबा की बगिया में जाकर क्यों नहीं देखतीं? मैंने एक छोटी-सी लड़की को वहाँ काले पिल्ले के साथ खेलते देखा था। क्या पता, वही आपकी साशा हो।” “जरूर होगी वही…वही होगी! याद आया, मैं उसे कुछ रोज पहले भीखू बाबा की बगिया में ले गई थी। तो आज भी वह अपने काले पिल्ले पोपू के साथ घूमते-घूमते वहाँ चली गई होगी। दुष्ट! नाक में दम कर रखा है।” बड़बड़ाती हुई साशा की मम्मी घर से बाहर निकलने ही वाली थीं कि देखा, सामने से हँसती हुई साशा आ रही है। उसके हाथ- – पैरों और फ्रॉक पर ढेर सारी गीली मिट्टी लगी हुई है, जैसे देर तक मिट्टी में खेलती रही हो। “उफ! तू कहाँ गई थी बेटी, कहाँ?” साशा की मम्मी ने कुढ़कर पूछा। फिर कहा, “तू खा क्या रही है?” इस पर नन्ही साशा पहले तो चुप। एकदम चुप रही। फिर उसने धीरे से मुँह खोला। मम्मी हैरान! उन्हें गुस्सा भी बहुत आया।

नन्ही साशा मिट्टी खाकर आई थी। तो भी गुस्से को दबाकर उन्होंने पूछा, “क्यों री साशा, तुझे खाने को कुछ नहीं मिलता जो मिट्टी खाने गई थी पार्क में?” इस पर साशा भोलेपन से बोली, “का हुआ मम्मी, का हुआ! इतनी नालाज क्यों हो?” “नाराज इसलिए हूँ कि तू मिट्टी खाकर आई है। इतनी भी अक्ल नहीं है! तुझे कितना समझाया था उस दिन कि….!” मम्मी आगे कुछ कहतीं, इससे पहले कि नन्ही साशा बोली, “मित्ती… मीथी – मीथी, मित्ती मीथी…!” सुनते ही जाने क्या जादू हुआ कि मम्मी का गुस्सा काफूर और उनकी हँसी छूट निकली। देर तक वे पेट पकड़कर हँसती रहीं, हँसती रहीं। फिर पड़ोस की शीला चाची के पास जाकर बोली, “अरे सुनिए तो, हमारी शरारतन दादी साशा क्या कह रही है, मित्ती मीथी – मीथी! जैसे मिट्टी न हो, कोई टॉफी या चॉकलेट हो।” सुनकर शीला चाची भी हँसीं। खूब हँसीं और नन्ही साशा को प्यार से गोदी में लेकर चूम लिया। उस समय साशा का प्यारा पिल्ला पोपू इस कदर जोर-जोर से पूँछ हिला रहा था, मानो साशा कोई बहादुरी का काम करके आई है और उसमें वह भी शामिल है। सो उसे भी आधी तारीफ तो मिलनी ही चाहिए न! अब तो साशा का यह खेल हो गया। मम्मी किसी भी बात पर उससे नाराज होतीं तो वह बड़ा भोला – सा मुँह बनाकर पूछती, “का हुआ मम्मी!” और जवाब में मम्मी हँस पड़तीं। वे हँसती हैं तो बस, हँसती ही चली जाती हैं। फिर भला साथ-साथ साशा भी क्यों न हँसे? पर कोई एक दिन की तो बात न थी। साशा को रोज नए-नए खेल सूझते थे। अटरम-पटरम। दही चटोकन। घर – घर… या स्कूल – स्कूल वाला खेल। या फिर छोटी सी चौकी पर बैठकर झूला झूलना। सारे घर में उसकी चीजें बिखरी होतीं। गुड्डा-गुड़िया भी, खेल-खिलौने भी। ढेर सारा ताम-झाम। मम्मी सँभालते – सँभालते परेशान हो जातीं। सोचतीं, ‘कैसी है मेरी बेटी! उफ, साशा के मारे तो मुझे साँस लेने की भी फुर्सत नहीं है।’ फिर एकाएक उन्हें बेटी पर बड़ा लाड़ आ जाता। हँसते हुए अपने आप से कहतीं, ‘एक यह नन्ही सी साशा ही तो है, जिससे यह पूरा घर भरा रहता है।’ साशा और मम्मी मम्मी और साशा। हर दिन एक नया किस्सा बन जाता। और मम्मी जब फुर्सत के समय पापा को बतातीं तो उनका छतफाड़ ठहाका अड़ोसी – पड़ोसियों को भी सुनाई देता। एक दिन मम्मी ने पूछा, “साशा, तुझे क्या पसंद है, बता? आज तेरी पसंद की कोई चीज बनाती हूँ।” सुनते ही साशा का चेहरा खिल गया। बोली, “मम्मी-मम्मी, खीर बनाओ मीठी-मीठी।

उसमें किशमिश भी डालना और हाँ, गरी भी।” संयोग से मम्मी आज सुबह ही बाँकेमल हलवाई से खूब सारा दूध लाई थीं। उन्होंने फ्रिज से दूध वाला पतीला निकाला। बढ़िया बासमती चावल धोकर साफ किए। खीर पकाने रख दी। जितनी देर खीर बनती रही, नन्ही साशा मम्मी के आसपास मँडराती रही। बीच-बीच में अकुलाकर पूछ लेती, “मम्मी, खीर बनी? अभी कितनी देर और लगेगी मम्मी? खीर बनने में इतनी देर क्यों लगती है मम्मी? अच्छा, किशमिश मैं अपने हाथ से डालूंगी। और गरी भी…! देखो मम्मी, याद रखना।” होते-होते आखिर खीर तैयार हुई तो फिर वह साशा को सबसे पहले क्यों न दी जाती? मगर खीर थी गरम गरम। कहीं साशा का मुँह न जल जाए! सोचकर मम्मी ने एक बड़े-से कटोरे में थोड़ी खीर डाल दी, ताकि ठंडी हो जाए और साशा आराम से खा ले। साशा बोली, “मम्मी-मम्मी, आप चम्मच देना तो भूल गई!” मम्मी ने चम्मच दी तो साशा बोली, “मम्मी, एक और दो।” जैसे ही मम्मी ने दूसरी चम्मच दी, साशा ने झट कटोरा उठाया और गायब। मम्मी और कामों में उलझी थीं। उन्हें पता ही नहीं चला, साशा ने खीर खाई या नहीं! और खीर का कटोरा लेकर साशा गई कहाँ? जब घर में सब खाने बैठे तो पापा ने पूछा, “अरे, साशा कहाँ गई? दिखाई नहीं पड़ रही।” मम्मी अब तक भूली हुई थीं। अब फिर याद आ गया कि उसने कटोरे में खीर डलवाई थी। साथ में दो चम्मचें भी ली थीं, राम जाने किसलिए! और फिर अब गई कहाँ? मम्मी ने घर के चारों कमरों में बार-बार घूमकर देख लिया। पलंग के नीचे भी देखा और सोफा सरकाकर भी। मगर साशा कहीं हो, तब तो नजर आए। उन्होंने पीछे वाले आँगन में देखा, आगे वाले लॉन में भी। अरे-अरे, साशा कहाँ गई? हमारी साशा कहाँ गई …? मम्मी परेशान। थोड़ी देर बाद मम्मी को खयाल आया, कभी-कभी साशा ऊपर पड़छत्ती वाले कमरे में भी चली जाती है और खिलौनों से खेलती है। कहीं वहीं तो नहीं गई? मम्मी तेज-तेज चलते हुए पड़छत्ती पर गईं तो सचमुच साशा की आवाज सुनाई दी। वह प्यार से कह रही थी, “अरे टेडीबियर, मेरे प्यारे दोस्त, खीर क्यों नहीं खा रहे हो? मैंने मम्मी से कितना कह कहकर तुम्हारे लिए बनवाई है। लो खाओ! अच्छा, तुम नहीं खाते तो मैं खिला देती हूँ।” मम्मी थोड़ा आगे गईं तो नन्ही साशा नजर आ गई। वह अपने लाल वाले टेडी बियर से खेल भी रही थी और प्यार – प्यार में खीर भी खिला रही थी। कुछ खीर टेडीबियर के मुँह पर लगी थी तो कुछ फर्श पर। यही हाल साशा का था। उसके पूरे मुँह पर खीर ही खीर पुती हुई थी। “ओ शरारती लड़की, बुद्ध कहीं की!” मम्मी को गुस्सा तो बहुत आया। मगर उनकी धीमे-धीमे हँसी भी छूट रही थी। उन्होंने साशा को उठाया, उसका टेडीबियर दूसरे हाथ में पकड़ा और खीर का कटोरा भी। नीचे आकर साशा के पापा से बोलीं, “देख लो अपनी लाडली को! कह रही थी, खीर बनाओ मम्मी, खीर मुझे बहुत अच्छी लगती है। अब खीर बनाई है तो इसके खाने का तरीका भी देख लो। जितनी इसने नहीं खाई, उससे ज्यादा इसके टेडीबियर पर लगी है और फर्श पर बिखरी है।” पापा ने साशा को पुचकारकर गोदी में बिठाया और अपने हाथों से उसे खीर खिलाई। साशा खीर खाती रही और बातें करती रही, “अरे पापा, मेरा टेडीबियर जानते हो, कितना अच्छा है! जब मैं इसे खीर खिला रही थी तो बार-बार कहता था, ‘थैंक्यू साशा, थैंक्यू!’ खीर सच्ची, बहुत ही स्वाद बनी थी। तो कह रहा था,” अपनी मम्मी को मेरी ओर से थैंक्स देना।” “अच्छा!” कहकर पापा ठहाका लगाकर हँसे। देर तक हँसते ही रहे। बोले, “अच्छा, अब समझ में आया कि खीर खाने के लिए तू ऊपर पड़छत्ती पर क्यों गई थी?” और साशा…? वह मम्मी से कह रही थी, “मम्मी-मम्मी, आप प्रॉमिस करो कि हफ्ते में एक दिन तो खीर जरूर बनाओगी। जानती हो, मेरा टेडीबियर कह रहा था कि साशा… साशा, सुनो! तुम्हारी मम्मी खीर बहुत अच्छी बनाती हैं…!”