dard ka rishta
dard ka rishta

Hindi Motivational Story: सुबह के पाँच बजने वाले थे। अचानक गहरी नींद में सोए रमेश के फोन की घंटी घनघना उठी। रमेश ने अलसाते हुए फोन देखा तो कोई अपरिचित नंबर दिखा। सोचा इतनी सुबह भला किसका फोन हो सकता है। मगर यह सोचते हुए कि बाद में फोन करके पता कर लूँगा फोन काट दिया। थोड़ी देर बाद फिर घंटी बजी। नंबर भी वही था। रमेश ने फोन उठा लिया। उधर से किसी ने पूछा, आप रमेश जी बोल रहे हैं? रमेश के हाँ कहने पर किसी अंजान व्यक्ति ने बताया कि बसंती मौसी का देर रात देहांत हो गया है। वे अंतिम समय में आपसे मिलना चाहती थी। जाते-जाते कह गई कि संभव हो तो उनका अंतिम संस्कार आप ही करें। उनके पास आपका नया नंबर नहीं था। मुझे भी बड़ी मुश्किल से आपका यह नंबर मिला है।

रमेश सकते में आ गया। सिर्फ़ इतना कहा, हाँ मैं आता हूँ। पास सो रही पत्नी लता को उठाते हुए बसंती मौसी के निधन की सूचना दी। दोनों तुंरत अपनी कार से रवाना हो गए। रास्ते में लता ने पूछा, क्या आप उनका दाह संस्कार करेंगे? आपका उनसे ऐसा कोई रिश्ता तो था नहीं। रमेश बोला, उनसे भले खून का रिश्ता ना था मगर दूध के दर्द का रिश्ता तो था। अपने अंतिम वक्त में माँ ने बताया था कि बसंती ना होती तो आज तू भी इस संसार में नहीं होता बेटा। मैंने पूछा था, ऐसा क्यों कहती हो माँ? मुझे आपने जन्म दिया। आपकी ममता की छाँव में पला हूँ। फिर इसमें बसंती मौसी कहाँ से आ गई। तब माँ ने बताया था कि जब मैं पैदा हुआ था तब माँ की हालत ऐसी नहीं थी कि वो मुझे अपना दूध पिला सके। हम दोनों की जान ख़तरे में थी। तब बसंती मौसी नर्स थी और कुछ ही दिन पहले ही उनकी नवजात बच्ची चल बसी थी। अस्पताल में माँ की देखभाल वही करती थी। उनसे मेरी व माँ की हालत देखी नहीं गई। उनकी ममता ने माँ से पूछे बिना ही मझे जीवन अमृत देना शुरु कर दिया था। उन्होंने माँ से कहा था-आज से यह मेरा भी बेटा है सुधा। अब मैं इसकी मौसी हूँ।

माँ ने आगे बताया मेरे स्वार्थ ने तब बसंती से वचन लिया था कि यह बात हम रमेश को कभी नहीं बताएँगे। मैं तुझे अब भी नहीं बताती लेकिन अंतिम समय में मुझ से यह बोझ सहा नहीं जा रहा है। समय आने पर अपनी मौसी के दूध का यह कर्ज़ अपना फर्ज़ समझ कर निभाना। क्योंकि तुझे बेटा कहने के बाद बसंती ने फिर संतान को जन्म नहीं दिया। वे तुझे ही अपना बेटा मानती है। आज वक्त आ गया है लता किसी के लिए भले ही यह रिश्ता अबूझ हो पर बसंती मौसी के लिए तो जीवन भर मुझसे दर्द का ही रिश्ता रहा। हाँ, मैंने उन्हें जीवन भर ममता से वंचित होने का दर्द ही दिया। कहते हुए रमेश की आँखे भर आई और उसने कार की गति तेज़ कर दी।

ये कहानी ‘नए दौर की प्रेरक कहानियाँ’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंNaye Dore ki Prerak Kahaniyan(नए दौर की प्रेरक कहानियाँ)