पुराने समय का किस्सा है, एक सियार था। एक बार वह एक शिकारी के फंदे में फँस गया। शिकारी उसे मारना चाहता था। सियार बोला, ”नहीं-नहीं, आप कृपा कीजिए, मेरे प्राण मत लीजिए।”
तब शिकारी ने कहा, ”ठीक है, मैं तुम्हारी दुम काट लेता हूँ। तुम्हें मारूँगा नहीं।”
सियार क्या कहता! शिकारी ने उसकी दुम काटी और चला गया।
शर्म के मारे कुछ दिन तो दुमकटा सियार अपने घर से ही नहीं निकला। फिर उसके मन में एक तरकीब आई। उसने सोचा, ‘अगर किसी तरह सभी सियारों की पूँछ कट जाए, तो मुझे शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा।’
पर भला ऐसा कौन सा तरीका हो सकता था, जिसमें सब सियारों की पूँछ कट जाए? दुमकटे सियार ने बहुत सोचा, बहुत सोचा। फिर उसे एक तरीका सूझ ही गया।
आखिर दुमकटे सियार ने सभी सियारों की एक सभा बुलाई। उस सभा में कहा, ”मेरे प्यारे भाइयो, आज मैं आपको एक आश्चर्यजनक बात बताता हूँ। उसे सुनकर आपकी आँखें खुली की खुली रह जाएँगी। तो सुनिए, वह कमाल की बात यह है कि अभी-अभी मुझे इल्हाम हुआ है, हमारी दुम बिल्कुल बेकार की चीज है। वह किसी काम नहीं आती। अपनी दुम कटाकर मैं कितने मजे में हूँ, कह नहीं सकता। अगर आप लोग भी अपनी-अपनी दुम कटा लें, तो आप भी मेरी तरह खुद को बड़ा चुस्त और हलका-फुलका महसूस करेंगे। एकदम चुस्त-दुरुस्त ‘हीरो’ की मानिंद! ”
सभी सियार दुमकटे सियार की बातें में आ गए। अभी वे कुछ फैसला करने ही वाले थे कि इतने में एक बूढ़ा सियार उठ खड़ा हुआ। बोला, ” अरे भई दुमकटे सियार, तुम इतनी लंबी-चौड़ी इसलिए हाँक रहे हो, क्योंकि शिकारी ने तुम्हारी दुम काट ली है। अगर आज तुम्हारी दुम होती, तो क्या तुम ये बातें करते? नहीं भाई, हमें तो अपनी दुम बड़ी सुंदर लगती है, हम उसे नहीं कटवाएँगे।”
सुनकर दुमकटा सियार शर्म के मारे पानी-पानी हो गया और सिर झुकाकर वहाँ से चला गया।
वैसे तो उस सियार की कटी हुई दुम पर किसी का ध्यान नहीं गया था, पर अपनी चालाकी से वह और ज्यादा बेवकूफ साबित हुआ। अब जंगल में सभी उसे ‘दुमकटा सियार’ कहकर चिढ़ाने लगे थे।
