Short Story in Hindi: मांँ शब्द जुबान पर आते ही, बचपन आंँखों में तैर जाता है। बचपन ही क्यूंँ, हर कदम पर बच्चों को मांँ की जरूरत पड़ती है। मांँ तो वो अनमोल सौगात है अपने बच्चों के लिए जिसका कोई सानी नहीं। मांँ बच्चों के सिर पर वो लाड़ भरा हाथ है जिसके रहते वो जिंदगी की हर लड़ाई बखूबी जीत सकते हैं। हम किसी भी परिस्थिति में फंसे हों मांँ के स्नेह भरे हाथ और दो बोलों से ही हर परेशानी पल में छू हो जाती है। जिसका आशीष संबल बन कर भविष्य निर्धारित करता है। माँ ईश्वर का दिया हुआ एक वरदान है। कागज़ को पानी में बहाओ तो वो गीला होकर अपना अस्तित्व खो देता है पर अगर उस कागज़ को नाव बनाकर पानी में बहाया जाए तो वो तैरता हुआ पार हो जाता है। उसी तरह मांँ अपने बच्चों को आकार देती है और जीवन रूपी समंदर में बहना सिखाती है। माँ की छत्रछाया, सीख और लाड़ दुलार बच्चों के विकास का केंद्र बिंदू है।
माँ के लिए तो जो भी जितना भी लिखा जाए कम है। माँ शब्द ही अपने आप में असीम विस्तार लिए हुए है, उसकी महानता, ममता के आगे तो शब्द भी कम पड़ जाते हैं। माँ खुद में एक अध्याय है। ये वो अद्भुत किरदार है ईश्वर का रचा हुआ जिसमें खुद ईश्वर समाहित है। हर बच्चे को चाहिए कि वो अपनी माँ की कद्र करे, उनका सम्मान करे। जिस तरह बचपन से लेकर बढ़े होने तक वो हमारा सहारा बनती हैं, हम भी उनके बुढ़ापे में उनका सहारा बनें। जिस संयम से वो हमें पाल पोसकर बढ़ा करती है उतने ही संयम और धैर्य से हमें भी उनकी देखभाल करनी चाहिए। बहुत बुरे होते हैं वो लोग जो अपनी माँ को उनके बुढ़ापे में लाचार और असहाय छोड़ देते हैं। मांँ पूज्यनीय और वंदनीय हैं।
है ईश्वर स्वरूपा मांँ _आपको मेरा शत शत नमन।
ये चार पंक्तियाँ मैं अपनी स्वर्गवासी मांँइंदू शर्मा जी को समर्पित करती हूँ__
मेरी राहों में दिए की तरह हर वक्त जलती है
मुझे मंज़िल दिखा कर वो मेरी किस्मत बदलती है
अगर सच पूछते हो तो मैं सच बताती हूं
मेरी मां की दुआओं से मेरी हर सांस चलती है।
