भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
मुझे सदा याद आती है तेरी, यूँ ही प्यार बसाई रहना।
दिलों दिमागों में ही नहीं, घर में भी कदम बनाई रहना।
“मॉम! क्या कर रही हो, मिस यू! और रोते हुए देव कहने लगा मॉम, मेरी चिंता मत करना। मैं ठीक हूँ। यह सुन बहुत ही कठिनाई से अपने दिल को काबू में करके माँ बोली! मेरा भइलू क्या कर रहा हैं बेटा? तू कैसा है रे। गला तो सूख गया था और आँखें कब बरसने लगी, यह भी पता कहाँ चला माँ को!
अपनी माँ के कलेजा का टुकड़ा देव भी माँ का दामन कहाँ छोड़ता था! बस! मॉम! मॉम! दूसरी कोई बात ही नहीं करता। इन्टर (विज्ञान) तक देव अपने माता-पिता और भाई-बहन के साथ घर पर ही पढ़ाई करके पास हुआ। बाद में डॉक्टर बनने के लिये दूर सुदूर जाना पड़ा।
माँ तो तरस गयी। अरे ना बाबा।। बाहर गाँव, नहीं नहीं! भइलू तुम्हें कहीं दूर नहीं जाना हैं। मेरे पास और मेरे साथ रहकर ही तुझे आगे की पढ़ाई करनी हैं। देव भी माँ से लिपटते हुए बोला, हां मॉम, मैं आपके पास ही रहकर पढूंगा। और देव के एडमिशन के लिये हो गईं भागादौड़ी शुरू! अपने पिता के साथ देव शहर के सभी कॉलेजों का चक्कर लगा चुका, फिर भी एडमिशन नहीं मिला। बचपन से ही अपने बच्चों के लिए ऊँचे ख्वाब देख रहे देव के माता-पिता मंजिल के निकट आकर…आगे की पढ़ाई देव की रुचि पर छोड़ दिया। बचपन से ही देव डॉक्टर बनने का ख्वाब देखा था। देव के नानाजी भी उसको डॉक्टर ही बनाना चाहते थे। वे हमेशा कहते थे, “मेरे लल्ला, तुझे तो मैं डॉक्टर ही बनाऊंगा। इसीलिये नहीं कि तू ढेर सारी कमाई कर सकेगा बल्कि इसलिए कि तझे लोगों की सेवा करने का अच्छा मौका भी मिलेगा!” तब से देव के मन में डॉक्टर बनने का ख्वाब पनपने लगा था।
देव डॉक्टर बनने के लिए कड़ी मेहनत करने लगा। जी जान से पढ़ने लगा। मेहनत-मजदूरी करने वाले श्रमजीवी परिवार… माता-पिता की संतान देव विज्ञान द्वारा गौरव बढ़ाता रहा। अच्छे मार्क्स के साथ देव बारहवीं कक्षा में उत्तीर्ण हुआ। लेकिन अलगी राह में भी बदनसीबी इंजतार कर रही थी, एडमिशन में रुकावट आई। मगर, देव हिम्मत नहीं हारा। आशा का हाथ पकड़कर वह दूसरे शहर चला। उसके पिताजी भी हर कदम उसके साथ खड़े थे। परिश्रम कभी भी निष्फल नहीं होता है। आखिर एडमिशन मिल ही गया। लेकिन, अपने घर और शहर से बहुत दूर…।
कहा भी जाता है कि व्यक्तित्व का विकास संघर्षों में होता है। इस बात को भली-भाँति जानते हुए अपनी ममता की माया में माँ मूकदर्शक बन गयी। तब देव कहने लगा, मॉम! चिंता मत करो! मैं आपकी ममता की छाँव से कभी दूर नहीं रहूँगा। मैं अपने उद्देश्य अर्थात् डॉक्टर बनने का सपना पूरा करने जा रहा हूँ। आज देव बड़े-बुढ़े की तरह दृष्टांत देते हुए कहता है देखो माँ यदि श्रीराम जी तथा उनके अनुज लक्ष्मण जी ऋषि विश्वामित्र जी के साथ उनकी रक्षा हेतु नहीं जाते तो क्या उनकी बहुमुखी प्रतिभा सामने निखर पाती? उस समय भी तो तीनों माताएँ तथा पिता दशरथजी अपने हृदय पर पत्थर रखे ही होंगे ना? इतना कह अपनी माँ के चरण स्पर्श करके देव अपना घर, परिवार व अपनी प्यारी माँ को छोड़कर पढ़ाई के लिये दूर चला गया।
माँ को लगा अरे, ये क्या विपदा आयी, मेरा बेटा, कैसे संभालेगा अपने आप को। इससे पहले कभी कहां उसे अकेला छोड़ा है? स्कूल भी अकेला नहीं जाने देती थी। परीक्षा में भी तो वह उसके साथ-साथ रहती थी। परीक्षा खत्म होने के पूर्व तक स्कूल के दरवाजे के पास बैठी रहती थी…। और आज वही अपना बच्चा रामायण का दृष्टांत देकर अकेला दूर और दूर…माँ की आँखें, सावन… भादो…!”
देव के माता-पिता ने अपनी हैसियत के हिसाब से कहीं अधिक, लेकिन सस्ता वाला फोन उसे इमरजेंसी के लिए दिला दिया था। जिससे वह रोजाना माँ के साथ फोन पर बात करें और वह करता भी था।
लेकिन जब घर पर था तब वह माँ के सभी घरेलू कामों में हाथ बँटाता था। सिर्फ फोन पर बात करने से वह आत्मानुभूति कहाँ मिलती है? पलभर भी माँ के बिना न रहने वाला देव अब हीरो जैसा अपने को दिखाता है। लेकिन ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के साथ जीवन जीता है। कुछ भी फालतू खर्च नहीं करता। पहले भी तो पुरानी साइकिल लेकर वह दूरस्थ स्थित अपने स्कूल पढ़ने जाता। घर पर आकर माँ के काम में हाथ बंटाता। ऐसा प्यारा देव, अपनी पढ़ाई के लिये, बाहर गांव बस गया! शुरुआत में वहाँ बहुत उदास रहता था और इधर माँ का हृदय भी यशोदा माई की तरह तड़पता रहता और माँ की आँखे भरपूर बरसने लगती। समझदार देव माता-पिता की मजबूरी से कहाँ अनजान था?
फिर तो क्या मालूम क्या मन में आया होगा देव के? खुद वहाँ भूखा! रहने का ठिकाना नहीं! खाने का भी कहाँ ठिकाना! पैसा तो उसके पास अभी कहाँ? क्योंकि माँ जितना पैसा भेजती थी, माँ को भी पता था, इतने मे क्या होगा?
देव, छुट्टी पर या सप्ताह के अंत पर घर आ जाता था। वह माँ के हाथ से सारा काम ले लेता था। वह सिलाई का काम भी कर लेता था। वह दो-तीन दिनों के लिये अपने छोटे भाई और बहन के साथ खिलखिला कर रौनक को घर ले आता। माँ भी खुशियों से भर जाती। रात को माँ के पास और साथ सोने के लिये भाई-बहन में बहुत लड़ाई होती थी। माँ के साथ सोता हुआ देव माँ से कहता- माँ कल कॉलेज (हॉस्टल) जाना है। सुबह पांच बजे की ट्रेन है। सुबह जल्दी उठाना… माँ सारी रात सोती नही…। सोचती मै सोती रहूंगी तो…अगर मेरे देव की ट्रेन छूट जाये तो?
ठीक तीन बजे माँ उठ जाती थी, देव का बैग चेक करती, सुविधा के अनुसार नास्ता और कोई दूसरी चीज, बाद मे टिफिन तैयार करती।! देव को बहुत बार जगाया करती और कहती, चल भइलू उठ ना! देर हो जाएगी! देव उठने का नाम ही नहीं लेता! अगर माँ इस पर गलीचा खींचती तो वह सिर से पैर तक अपने सिर को ढंककर सो जाता हैं! माँ भी थक-हारकर देव के हाथ को पकड़कर सो जाती और देव बोलता, जींदालवन मॉम! मैं एक बजे की ट्रेन मे जाऊंगा! फिर चार की ट्रेन मे और अंत मे कहता हैं मॉम मैं आठ की ट्रेन मे जाऊंगा! लेकिन देव जाता नहीं। माँ!
उदास हो कर सोचती, देव का होमवर्क पीछे रह जायेगा तो कौन सिखायेगा? लेक्चर छूट जायेगा तो कैसे देव परीक्षा में पास होगा?… यहां तक कि देव ने माँ के चेहरे की चिंताओं को पढ़ भी लिया… तो भी वह कुछ नहीं कहता…।।
थोड़ी देर रुककर स्थितियाँ भाँपने के बाद देव कहता मॉम! तुम्हारा हाथ कहाँ है…?
भोजन, करते-करते देव उठ खड़ा हुआ और रोटी बनाती माँ के पास आकर हाथ चूमता कह रहा है… वाह! मॉम!
क्या भोजन बनाया है! और तीनों भाई-बहन हँस पड़े! माँ भी खुश थी!…
फिर रात को देव ने कहा, मॉम! सुबह जल्दी जगा देना कॉलेज जाना है… माँ कहती- रहने दे बेटा रहने दे, तू सारी रात आराम से सोया रहता है और मैं सारी रात जागरण करती रहूँ…। अपने छोटे भाई बहन के साथ हँसते हुए देव कहता, मॉम! …बोलकर फिर से हँस देता और फिर कहता… अगले दिन सुबह माँ से भी जल्दी उठ जाता देव! माँ कहती अरे बेटा अभी देर है तू सो जा, मैं तुम्हे समय पर जगा दूंगी! तब देव कहता, मॉम!, आज तो मेरा जाना जरूरी है! कल से मेरा कॉलेज शुरू हो जाएगा।
…मॉम! एक दिन पहले मै इसलिये आप को बताता हूँ, क्योंकि घर छोड़ना, आप को छोड़ना इन सबमें बहुत समय लग जाता है… इस तरह बोलकर बरसता देव! निराधार शून्य मे…।
और… माँ…! उस बरसते बादल की बारिश में बहकर…उसकी माँ की आँखो से मानो “छलकता समंदर”!
अपने नानाजी और अपने माता-पिता के आशीष के साथ-साथ अपनी लगन, निष्ठा और परिश्रम से आज देव डॉक्टर बन चुका है। पिछले चार सालो से वह डॉक्टर की डिग्री के साथ जॉब कर रहा है।
डॉक्टरी में माहिर व निपुण होने के कारण देव को छुट्टी बहुत कम मिलती, जिससे वह अपने घर नहीं आ पाता है। इसी दौरान आ गया जानलेवा व पेचीदा महारोग “कोरोना”…! पूरा एक साल कहर ढाने के बाद वह दूसरे साल भी निरन्तरता बनाए हुए है यानि अभी तक लगातार है!
देव, इसी कोरोनाकाल मे था और वह पूरी ईमानदारी से कोरोनाग्रस्त रोगियों का उपचार करता रहा, आपातकाल होने के कारण वह ऑनलाइन सेवाएँ भी प्रदान कर रहा है। लगातार ऐसी परिस्थिति होने के कारण तथा फ्रान्टियर वरियर्स होने के कारण भी देव स्वयं भी एक-दो बार कोविड पॉजिटिव हो चुका था। दूसरी तरफ देव की माँ गहरी चिंता मे डूबते-उतराते तथा बिलखते हुए उसको फोन करके उसे वापस आ जाने के लिए कहती, लेकिन उसके प्रत्युत्तर मे देव कहता कि मॉम! आप मेरी किंचित मात्र चिन्ता ना करें, मै यहां ठीक ठाक हूँ। हाँ, सावधानी बरतना अत्यंत आवश्यक है, पर फिर भी अगर कुछ होनी या अनहोनी होती है तो बस वो तो ऊपर वाले परमेश्वर की रजामंदी से होती है और यह सब उसके अधीन है। तो इसमें आप को चिंता करने की कोई आवश्यकता नही है।
देव एक प्रतिभाशाली व्यक्ति के साथ हिम्मती व राष्ट्र भक्त भी है, इसीलिए उसे ऐसे कठिन समय मे भी कभी भी अपनी चिंता नहीं थी। लेकिन अपने माता-पिता की चिन्ता हमेशा उसे सताती है। छुट्टी की किल्लत की वजह से देव अपने घर भी नहीं जा पाया था।
अन्ततः अपने माता-पिता को ही बार-बार शहर मे बुला लेता है। आज माँ देव के घर पर जाने के लिये बेसर्बी से इंतजार कर रही है। क्योकि देव तीन साल से घर पर नहीं आ सका…!!
…मेहनत-मजदूरी करके जो माता-पिता अपनी संतानों को किसी मंजिल तक पहुंचाते हैं उनकी संतानें भी अपने माता-पिता के दुःख को अच्छी तरह से समझते हैं। बस देव उनको इस दु:ख-दर्द से बाहर निकालना चाहता है।
इसलिए वह आज अठारह घंटे लगातार काम कर रहा है। …उसके लिये आराम हराम है…। बस उसका परिवार, उसकी आँखो के सामने है! इन्तजार और इन्तजार के साथ दोनों तरफ सिर्फ आंसू है!
“और माँ… चहुधार आंसू से अपने डॉक्टर देव के लिए आर्शीवाद दे रही है…” माँ का आर्शीवाद”…
ऐसा नहीं है कि माँ की ममता सिर्फ अपने बड़े बच्चे पर ही होती है, वह तो अपनी सभी संतानों को समान स्नेह देती है। जैसे पवन या वृक्ष सबको समान रुप में प्राणवायु प्रदान करते हैं वैसे ही माता-पिता की स्थिति होती है।
“अरे मेरी गुड़िया! वाह! तूने तो सारा खाना बना दिया! मशीन से उतरकर माँ रसोई में गईं तो माँ ने देखा कि उसकी छोटी बेटी गुड़िया बिना प्लेटफॉर्म पर पहुंची बैठने के पटरे पर खडी होकर रोटी बना रही थी” ये देखते माँ बोली। अभी माँ का वाक्य समाप्त हुआ ही था, तभी तपाक से गुड़िया बोली, मम्मू आप अपना काम समाप्त कर लें, सिलाई समय पर नहीं होगा तो व्यापारी आप से नाराज हो जाएगा और गुस्सा करेगा…। मुझे यह बिल्कुल पसंद नहीं है। मैं भोजन बनाती हूँ और आप…फिर माँ ने कहा- अरे! मेरी गुड़िया तुम्हें भी डॉक्टर बनना है बाबू!” मुँह नाक फुलाते हुए गुड़िया बोली यह नहीं होगा मम्मू। मुझे तो अभी स्नातक होना है। माता-पिता कहने लगे ओह गुड़िया, तुम दोनो भाईयों से भी ज्यादा होशियार है! चल
बेटा डॉक्टर ही बनना! गुड़िया कहे नहीं पापा।।! माता-पिता गुड़िया की जिद्द के आगे बेबस हो गए! फिर गुड़िया कहने लगी।। ओह! मम्मू, चिंता मत करो। मै पढ़ाई करूँगी। मै स्नातक की पढ़ाई पूरी करूँगी। माँ कहने लगी, इसका क्या मतलब है गुड़िया।।? तब वो बोली मम्मू, मुझे रसोई, सिलाई, ब्यूटीपार्लर, इसमे मेरा बहुत मन है! हमेशा माता-पिता अपने बच्चों की खुशी के लिये हाँ कह देते हैं, उन्हें जो सीखना है वह लाइन लेने देते हैं और कोई जबरदस्ती नहीं।
फिर क्या था गुड़िया हर किसी के शौक को पूर्णता के साथ पूरा की। स्नातक भी पूरा किया, और नर्सिंग भी किया। गुड़िया जो एक परी की तरह दिखती है, अपने काम मे वह परफेक्ट हो गई। बीस वर्ष तक होते-होते अपने माता-पिता की छत्रछाया मे बहुत लाड़ और प्यार से पलते-पुसते अपने ससुराल चली गईं! और अब तो वह अपने जैसे ही दो मस्त बच्चों की माँ बन गई…! गुड़ियाँ की माँ… गुड़ियाँ को भी आशीर्वाद देती है। माँ का आशीर्वाद।
देव और गुड़ियाँ के बाद तो मिलन एकाकी हो गया था, लेकिन दोनों के हिस्से की सेवा अपने माता-पिता को दे रहा था।
“माँ…! तुम क्या कर रही हो… तीन बजे कॉलेज से वापस आकर” मिलन “अपनी माँ को गले लगाकर गाल पर चूमने लगा। माँ भी खुशी से बोली, आ गया बेटा!…मेरी माँ अभी भी काम में ही और कॉलेज का बैग
छोड़कर बर्तनों के ढेर को घिसने लगा। माँ ने भी अपना जरूरी काम छोड़ दिया और जल्द ही भागी और बोली उफ… उफ… उठ जाओ! खड़े हो जाओ! (हा ने पण) बड़ी मुश्किल से मिलन को बर्तनो के पास से उठाकर वह भोजन के लिए बैठाती है।
“माँ! आप मुझे सुबह टिफिन देती हो ना तब भोजन करने में बहुत आनन्द आता है। मेरे मित्र भी सहभागिता करते हैं। वे तो उस पर झपट्टा मारने के लिए प्रतीक्षा करते रहते है और जब सामने दिख जाता है तो खुशी के मारे उछल जाते हैं। मिलन अपने मित्रों की नौटंकी के विषय में बताते हुए लवलीन हो जाता और ठहाका मारकर हँस पड़ता है। मिलन जैसा खूबसूरत देखने में है वैसा ही खूबसूरत उसका मन और हृदय भी है। बहुत प्यार करने वाले अच्छा भोला व सदस्य लागणी रखने वाला! परिवार मे उसके माता-पिता, भाई-बहन के लिये बहुत स्नेह है… उसकी माँ उसके लिये सब कुछ है। दिन हो या रात बस माँ ही माँ!
“माँ चौंक कर कहने लगी, ओह! तो टिफिन कम पड़ा होगा ना? चलो कल से ज्यादा दे देंगे!…पर ओ मिलु, तेरा दोस्त टिफिन क्यों नहीं लाते?”
“फिर मिलन ने हँसते हुए कहा… ओह! मेरी भोली प्यारी माँ! आप दुनिया में केवल एक ही हैं जो हमें इतना पसंद करती हैं, हर वक्त हमारा ध्यान रखती है और अपने आपको भूल जाती हैं! मेरी प्यारी माँ! आप का बच्चा जिस कॉलेज में पढ़ रहा हैं ना, वहाँ ऊँचे लोग ऊँची पसंद!
केवल धनीमनी माता-पिता की संतानें ही वहां अध्ययन करते हैं।
केवल एक आपका बेटा… माँ! मैं बहुत भाग्यशाली हूँ आप की कोख से मुझे जन्म मिला है! इस घर मे आप के कदमों के साथ।।
मेरा यही कदम है! “मै मेहनती सच्चा प्यार करने वाले कामकाजी माता-पिता की संतान हूँ। पैसों के लिए हमेशा बहुत मेहनत करनी पड़ती है। रुखी-सुखी खाकर दो वस्त्रों में जिंदगी बिताने वाले अभिभावक अपने बच्चों के लिए विद्या के उच्चतम् मानदण्ड रखा है। जो माता-पिता अपने जीवन के अस्तित्व को भूल गए हो और दूसरों के जीवन को सुखी बना रहे है, मैं ऐसे अच्छे भोले माता-पिता को नमन करता हूँ।
माँ बोली, “अरे मेरे प्यारे मिलु! बस।। बस।। अब मैने कोई छापा नहीं मारा, मेरा साश्वत कर्त्तव्य है, लेकिन तुम्हारा स्नेह मेरे लिए अपार है। मेरे बच्चें आगे बढ़े, जीवन मे श्रेय प्राप्त करे, उज्ज्वल भविष्य प्राप्त करके वे खश रहें, यही मेरे लिए पर्याप्त है।… कछ सोचकर अच्छा… आगे क्या कह रहा था, ऊँचे लोग, ऊँची पसंद…? तब मिलन आँख के कोने साफ करके बोला- माँ, जिनके पास काफी सारा पैसा होता है उनको लगता है कि पैसा से सब कुछ खरीदा जा सकता है… लेकिन प्यार…! उनके घर के वातावरण में भाव शून्यता होती है, असहजता होती है, किसी को एक-दूसरे की चिन्ता नहीं होती है, अपने बच्चों को गौरी माँ के आँचल से नहीं अपितु लक्ष्मी माताजी के सुनहले छाँव से ढकने की चेष्टा की जाती है। …इसीलिए सभी कैंटीन मे खाना खाते है। लेकिन, मैंने एक बात पर ध्यान दिया, मेरा टिफिन खाते समय उनके चहेरे पर जो खुशी होती है, वह कैंटीन में खाते समय नहीं होती है। उनकी खुशी से मुझे आनंद होता है और अच्छा भी लगता है। माँ… जब मेरे मित्र खुशियों से भोजन करते है और कहने लगते है, माँ को हमारी याद देना, बस उस समय मुझे बहुत अच्छा लगता है कि मेरी माँ अन्नपण” है! “और खुश होकर मिलन तीखारी, चावल, गरमागरम रोटी खाते-खाते कहने लगा… वाह! बहुत स्वादिष्ट है! बहुत आनंद हुआ, माँ… आप भी मेरे साथ-साथ लो ना! माँ संतोष से कहती है मेरा पेट भर गया… और मिलन, उसकी माँ दोनो एक साथ हँस पड़ते है!
“समय और परिस्थिति के कारण मिलन को कहीं दूर अध्ययन के लिए जाना पड़ा! बहुत दूर…
“नेवा का पानी मोभ चढ़ा” (मेंढक आसमान छूने चला) लेकिन मिलन और उसके माता-पिता ने हिम्मत नहीं हारे। वे मिलन का साथ देते रहे। सभी कठिनाईयों को झेलते हुए अन्त में मिलन को अपनी मंजिल मिल ही गईं। मिलन और उसके माता-पिता ने कई सारी मुश्किलों का सामना किया। जो आंसू बहाये उनके लिए भगवान भी चकित हुए होंगे…अरे… इन्सान इतना सहनशील हो सकता है…?
अधिकांशतः देखा जाता है कि जिस परिवार में एक-एक पैसे के लिए संघर्ष होता है, उस परिवार का बच्चा सक्षम और होशियार होता है। वे अपनी मेहनत और साहस से हर परीक्षा को पहले प्रयास में ही उत्तीर्ण करते हैं। उनके जीवन का लक्ष्य केवल अपना घर-परिवार नहीं होता है, अपितु समाज व राष्ट्र के लिए होता है। इसी हेतु का विस्तार मिलन के जीवन में आगे देखने को मिलेगा। “सात समंदर पार मिलन पहुँचा” ऐसा उसकी माँ को लगता था।
एकाकी जीवन बिता रहे मिलन शिक्षा के अतिरिक्त कुछ नहीं करता। उसका मानना था, “साई इतना दीजिए जामें कुटुम समाए, मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भूखा जाय।”
साधारण जीवन यापन करने वाला मिलन अपने से ज्यादा दूसरों के लिए सोचता था। एक बार कॉलेज से लौटते समय जब वह ट्रेन से उतरकर पैदल चलने लगा तब उसने एक अठारह वर्ष के लड़के को देखा! उसकी आँखो मे आंसू थे और उसकी उदासी से उसका दिल पिघला जा रहा था। उस लड़के को भी विदेश में कोई अपना मिला, वह भी हाल-चाल पूछने वाला। वैसे भी विदेशी भूमि पर यदि अपने देश का कुत्ता भी मिल जाएँ तो क्या कहने हैं। यहाँ तो सहृदयी व्यक्ति मिला है। मिलन उससे उसकी परेशानी को समझा और तत्काल उसको अपने साथ ले आया। वहाँ के नियम-कानून बहुत सख्त होते हैं, इसलिए उसने उसे तीन दिनों तक अपने साथ रखा। स्वयं के खर्चे में से उसने सब कुछ सेट कर दिया। उसने उसके रहने का प्रबंध कर दिया। इसके साथ ही उसे एक छोटी-सी नौकरी भी दिला दी। यही नहीं उसका एडमिशन भी करवा दिया गया।
अपरिचित बालक की व्यथा को परदेश में दूर तो कर दिया मिलन, लेकिन उसे घर वालों की चिन्ता भी दूर करनी थी। अतः हिमाचल प्रदेश स्थित उसके घर पर मिलन फोन लगाकर सभी शुभ सामाचारों से अवगत करवा दिया। उत्तर स्वरुप मिलन को आशीर्वाद और शुभकामनाएँ मिली तथा विदेश भेजने वाले एजेंसियों के धोखे का पर्दाफास करते हुए बदुआएँ भी दी गई।
इसी को कहते हैं- “परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधिमाई।”
राष्ट्रप्रेमी तथा स्वालम्बी अपने श्रवण कुमार की वीर गाथाओं को सुनकर उसकी माँ गद्गद हो गई। भावनाओं में बहकर कई वर्ष पीछे चली गई। जब वह स्कूल जाने के लिए रिक्सा भाड़ा को बचाने के लिए कई मील पैदल आना-जाना करता और जब दूसरे दिन माँ रिक्सा भाड़ा देती तो वह लेने से मना करते हुए पिछला पैसा भी लौटा देता। और कहता है कि परिश्रम करने का ठेका सिर्फ आपलोग ही लिये हो क्या? पैसा अत्यंत आवश्यक चीजों पर ही खर्च करना चाहिए और इससे मैं आस-पास के वातावरण से परिचित भी तो होता हूँ। स्वामी विवेकानंद भी तो पैदल-पैदल भारत दर्शन किये थे। एक पंथ दो काज हो जाता है न माँ।
इसी अपनापन का परिणाम था कि मिलन अपरिचित व्यक्ति, किन्तु भारतीय के लिए सर्वस्व निछावर करके असहाय माता-पिता, भाई-बहन की दुआएँ लेता है। इसके साथ ही किसी भी परिस्थिति में साथ निभाने का वादा भी मिलता है। यह किसी पूँजी से कम है क्या? जो मेरा बेटा मिलु कमाया है। जैसे जीजा माता को पुत्र छत्रपति वीर शिवाजी तार दिए थे ठीक उसी प्रकार मेरा बेटा मेरी कोख को तार दिया। हमारा आशीर्वाद तेरे साथ सदा बना रहे। इसी संस्कार आगे भी बढ़ाते रहना…माँ के आँचल में जितने भी आशीर्वाद दुआएँ थी अपने अश्रुधारा के साथ अपने बच्चे पर निछावर कर दी यह कहते हुए।।
मुझे सदा याद आती है तेरी, यूँ ही प्यार बसाई रहना।
दिलों दिमागों में ही नहीं, घर में भी कदम बनाई रहना।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
