जीवन के रंग-गृहलक्ष्मी की लघु कहानी
Jeevan ke Rang

Hindi Short Story: बचपन से ही बड़े छोटे सब ने मुझे बहुत मान सम्मान दिया कोई दीदी या बहिन जी सिस्टर एसे बोलते थे, कई बार बहुत बड़े उम्र वाले भी मुझे इज्जत से बोलते, बहिन जी या दीदी छोटे बच्चे मुझे दीदी नमस्ते कहते  l
 शायद में  उन्हें समझदार लगती होगी ये अलग बात हैं ,
मै इतनी समझदार थीं नहीं ये मुझे लगता हैं l
  इनमें ही दीपक नाम का छोटा बच्चा था जो शुरू से ही मुझे
नमस्ते दीदी कहता और फुर्र से भाग जाता मैं देखती जब तक वो दूर जा चुका होता…….
  समय बीता और दसवीं पास करते ही मेरा विवाह राजस्थान में हो गया इसलिए दिल्ली मेरे मायके जाना कम होता l
      मैं अपने मायके कभी कभी साल में आ पाती एसे चार साल गुजर गए…एक बार मैं मायके गई तो मुझे दीपक की आवाज आई…दीदी नमस्ते, मैंने देखा आसपास लेकिन कोई भागता हुआ नहीं दिखा…फिर अचानक मेरी नजर मेरे पैरों की तरफ गई देख कर दिल को धक्का लगा और  एसा दुख हुआ जिसे वर्णन करना मुश्किल है दीपक जो बच्चा था उसके दोनों पैरों में पोलियो हो गया था और वह घिसट रहा था उस सड़क पर ” हैं   यह क्या ”  मेरी आंखे दुःख से भर
आई….. मैंने नमस्ते बेटे कहा और चली आई l
    ये दुःख बर्षों बाद भी नहीं जाता की एक फुर्र से भाग जाने वाला बच्चा घिसटता  जा रहा था l जीवन के एसे रंग देख हैरान परेशान हो जाती हूँ कई बार जिन दुःखों का इलाज नहीं होता l

Also read: मैं पराजिता नहीं हूँ-गृहलक्ष्मी की कहानियां