Hindi Love Story: “ये बताओ ज़रा, कि आजकल सोनल के साथ चल क्या रहा है तुम्हारा?” उसने झूठा गुस्सा दिखाया या शायद ओवर पॉज़िसिव होते हुए कहा। हम सोनल की ही बर्थ-डे पार्टी से लौट रहे थे।
“इश्क़, प्यार-मोहब्बत, लव…” मैंने उसे छेड़ते हुए कहा।
“ओके। तो उससे प्यार है तो मेरे साथ क्यूँ हो?” वैसे तो मुझे उसका जवाब पता था।
“अरे, गज़ब की बात है, इन्सान को किसी से प्यार हो तो वह किसी और के साथ रह भी नहीं सकता?”
“रहो ना उसी के साथ, मना किसने किया। लेकिन फिर मेरे साथ रहने की ज़रूरत नहीं है।”
“अरे बुद्धु, क्या चलेगा उससे। साथ में काम करती है, बस तो। साथ वालों से थोड़ा हँसी-मज़ाक तो चलता ही है।”
“हाँ चलता है भई…हमारा ही दिमाग ख़राब है ना…आज दोनों लव बर्डस् ऑरेंज-ऑरेंज और उस दिन उसके भाई की शादी वाले दिन भी दोनों ब्राउन-ब्राउन। गज़ब के लव बर्डस् हो भई…” जलता चेहरा और लपटों से घिरे शब्द।
“हाँ! इश्क़ के एक ही रंग में रंगे हैं ना हम दोनों, तो ड्रेसेस के कलर भी मैच हो ही जाते हैं।” आग में घी डालने का भी अपना ही आनंद है।
“जब खुल्ल्म-खुल्ला पार्टी में ये हाल है तुम लोगों का, तो ऑफिस में भी डेली सेम कलर ही पहनते होंगे न?”
“हाँ, बहुत बार मैच कर जाते हैं। मुझे समझ में नहीं आता, ऐसा को-इंसिडेन्स इसके साथ ही क्यों हो जाता है। अभी-अभी पाँच-सात बार ऐसा हो चुका।”
“हो चुका या किया गया? मेरे साथ तो नहीं हुआ कभी ऐसा।”
“हाँ, ये भी ठीक कहा तुमने। शायद कई जन्मों का नाता है हमारे बीच।” बग़ैर सोचे-समझे इस कमीने मज़ाक को मैं खींचे जा रहा था।
“इस जन्म में किसने रोका है तुम्हें, बना लो नाता। बना लो क्या, क्या पता बना ही रखा हो।”
“अच्छा सुनो, तुम तो कृष्णा की इतनी भक्त बनी फिरती हो; उनकी तो सोलह हज़ार थी। मैं ग़रीब क्या दूसरी की भी नहीं सोच सकता?”
“वो सब, बस अलंकार की बात है। और सोचना क्या है अब तुम्हें। क्या कहा था इश्क़, प्यार-मोहब्बत, लव…मुझे घर क्यों छोड़ने आए, उसी के साथ चले जाते…” वह तमतमाती जा रही थी।
“अबे, ये भी तो अलंकार ही हैं डियर…अच्छा सुनो, एक गाना याद आया…इशक के नाम पे करते सब रास लीला हैं, हम करें तो साला, कैरेक्टर ढीला है…ओड़ली-ओड़ली…ओई…”
“तुम आज सोच कर आए हो क्या कि, तुम्हें ज़िंदा वापस नहीं जाना है…” उसका दनदनाता हुआ हाथ मेरी ओर आया और फिर धीमा होता हुआ मेरे पेट में घुसा। अब वह अपने नेगेटिव मूड से निकलकर मेरा मज़ाक पचाने की कोशिश में थी।
“आह…” बिना ज़रूरत की कहा मैंने।
“बोलो…कोई आख़िरी इच्छा…” मुस्कुराहट नहीं थी अब भी, पर नाराज़गी तो जा ही चुकी थी।
मैंने कार धीमी करते हुए सड़क के एक ओर ले ली और उसकी गरदन पकड़ कर उसके होठों को चूस लिया।
“दुष्ट…ये भी उसी कमीनी से ले लेते।” उसने नख़रे की गरज़ से मुझे पीछे हटाया।
“हाँ, पर उसकी लिपिस्टिक का टेस्ट ज़्यादा अच्छा होता या उसके लिप्स का?” कुत्ते की टेढ़ी पूँछ।
“अब तो;पानी सर के ऊपर हो गया है…” उसका हाथ दुबारा एक्शन में आता, इससे पहले मैंने अपना एक्शन दुहरा दिया और उसके बालों की ख़ुशबू लेते हुए बाएँ हाथ से उसे ख़ुद से चिपका कर उसकी हड्डियाँ कड़का दीं। उसके होठों को मैंने अपनी ठुड्डी पर महसूस किया और उसकी साँसों की गहराई नापते हुए, उसकी नाक पर हल्के से काट लिया।
ये कहानी ‘हंड्रेड डेट्स ‘ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Hundred dates (हंड्रेड डेट्स)
