भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

Hindi kahani – किसी समय पतित पावन भूतभावन भोलेनाथ महाकाल की नगरी उज्जैन (उज्जयिनी, अवंतिकापुरी) में शकारि राजा विक्रमादित्य का शासन था। ज्ञान, वीरता और उदारता के लिए कालजयी ख्याति प्राप्त विक्रमादित्य से संबंधित दो लोककथा मालाएँ सिंहासन बत्तीसी तथा बैताल पच्चीसी मालवा ही नहीं मध्य प्रदेश और अन्य अंचलों में भी कई तरह से कही जाती हैं। विक्रमादित्य प्रजावत्सल राजा था। वह किसी सामान्य व्यक्ति का कष्ट दूर करने के लिए भी खुद ही तत्परतापूर्वक प्रयास करता था। उनके ऐसे प्रयासों से जुडी हैं ये लोककथाएँ।

सिंहासन बत्तीसी की लोककथाएँ विक्रमादित्य के सिंहासन में जडी पुतलिया राजा भोज को तब सुनती हैं जब भोज अपने शासनकाल में एक टीले की खुदाई में निकले विक्रमादित्य के सिंहासन पर बैठने का प्रयास करते हैं। हर पुतली एक कहानी सुनकर भोज से पूछती है कि क्या उनमें विक्रमादित्य जैसा गुण है जो वह उनके सिंहासन पर बैठे। हर बार लज्जित होकर भोज स्वीकारते हैं कि उनमें वह गुण नहीं है और वे सिंहासन पर नहीं बैठ पाते।

बैताल पच्चीस की पष्ठभमि में एक साध राजा को बताता है कि श्मशान से बैताल को बिना कुछ बोले बंदी बनाकर उसके पास ले आएँ। राजा बैताल को बंदी बनाने के लिए अपने कंधे पर लाद लेता है। बैताल बचने के प्रयास में एक कहानी सुनाता है और अंत में एक प्रश्न पूछता है। राजा प्रश्न का उत्तर जानते हुए भी न दे तो उसका सर फट जाएगा। संयोगवश राजा को हर प्रश्न का उत्तर ज्ञात रहता है और उत्तर देते ही मौन भंग हो जाने के कारण बैताल उड़कर वापिस चला जाता है।

विक्रमादित्य की प्रसिद्धि विविध ज्ञान शाखाओं के विद्वान नौ दरबारियों के लिए भी हैं जिन्हें नौ रत्न कहा जाता है। वे हैं महाकवि कालिदास, अलंकारविद घटखर्पर, प्रेतविद्याविद बेतालभट्ट, कोषकार क्षपणक, ज्योतिषविद वाराहमिहिर, मीमांसाकार वररुचि, रसाचार्य शंकु, कोशकार अमरसिंह तथा वैद्यराज धन्वन्तरि।

एक समय अवंतिकापुरी के राजा विक्रमादित्य को किसी कारण अपना राज्य छोड़कर जाना पड़ा। गुप्तवास करते हुए विक्रमादित्य एक दूसरे राज्य में छिपकर रह रहे थे। वह राज नित्य प्रति अपने महल में एक रात्रि पहरेदार की नियुक्ति करता और सवेरे ही ठीक से पहरेदारी न करने पर एक प्रश्न पूछता और उत्तर न मिलने पर उसका शीश काट देता। उसके इस कार्य से नगर के युवाओं में भय व्याप्त हो गया। विक्रमादित्य जिस घर में शरण लिए था, उसके पुत्र को पहरेदारी के लिए जाने का आदेश हुआ तो उसकी जगह विक्रमादित्य स्वयं ही चला गया।

विक्रमादित्य को राजमहल में राजा के शयनकक्ष के द्वार पर नियुक्त कर दिया गया। पहारदार के बैठने के लिए एक आरामदेह आसंदी रखी थी। आधी रात होने को हुई तो विक्रमादित्य उस आसंदी पर सुस्ताने के लिए बैठा ही था कि उसे नींद आने लगी। वह सर झटककर उठ खड़ा हुआ और समझ गया कि बाकी पहरेदारों के साथ क्या हुआ होगा?

विक्रमादित्य ने सारी रात जागने और शयनकक्ष के द्वार पर एक खंभे की ओट से छिपकर निगाह रखने का फैसला किया। एक पहर बिता कि उसे कुछ आहट मिली। उसने झांककर देखा की राजा दबे पाँव कहीं जा रहा है। विक्रमादित्य ने सुरक्षित दूरी रखकर राजा का पीछा इस प्रकार किया कि राजा जान न सके कि कोई उसके पीछे लगा है। राजा छिपते-छिपाते शमशान घाट पहुँचा। उसने डोम के द्वार के बाहर उलूक ध्वनि (उल्लू की आवाज) की। कुछ क्षणों की शांति के बाद दरवाजा खुला और उसमें से एक सुंदर सुसज्जित युवती जो डोम की पुत्री थी, सतर्कता के साथ इधर-उधर ताकते हुए निकली। एक झाड़ के नीचे एक टूटी खाट पड़ी थी जिस पर दिन में डोम सुस्ता लिया करता था। राजा और वह युवती उसी खाट पर प्रणय क्रीड़ा में लीन हो गए। प्रणय क्रीड़ा से निवृत्त होकर दोनों बात करने लगे तो राजा बोला कि उसे भूख लगी है। युवती ने घर में बचा भात और अस्थि संचय के बाद चढ़ाई गई मिठाई राजा को दी। राजा वह भात और मिठाई खाकर, कुछ देर प्रेम वार्ता कर भोर होने के पहले ही राजमहल की ओर चल दिया। विक्रमादित्य ने जैसे ही राजा को राजमहल की ओर मुड़ते देखा तो तेजी से पैर बढ़ाते हुए, राजा की नजर में पड़े बिना महल में आकर उसी खंभे की ओट ले ली। कुछ देर में राजा महल में आया और द्वार बंदकर सो गया।

समय पर राज दरबार लगा तो राजा ने हमेशा की तरह रात के पहरेदार को बुलाया और कहा- ‘कहो कुछ सही रात की बात।’

विक्रमादित्य ने कहा-

अनहोनी सुन मान न जाए।

बिना कहे यह जान न जाए।।

प्रेम न जाने जात कुजात।

भूख न जाने जूठा भात।।

काम न जाने टूटी खाट।

मार न गर्दन मोरी तात।।

राजा समझ गया कि इस पहरेदार ने सब-कुछ देख लिया है, किंतु उसके सम्मान का ध्यान रखकर इस तरह कहा की कोई और न जान सके। पहरेदार की चतुराई से प्रसन्न होकर राजा ने उसके साथ अपनी पुत्री का ब्याह कर दिया। परिस्थिति अनुकूल होने पर विक्रमादित्य अपनी ब्याहता के साथ अपने राज्य में आ गए।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’

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