अब तक सांता काफी थक गया था।
‘ओह, आज क्रिसमस वाले दिन भला थकान का क्या काम…? मैं ही थक गया तो इस दुनिया को सुंदर बनाने वाले तमाम-तमाम सपनों का क्या होगा? क्या होगा, दुनिया के उन लाखों नेक और भले बच्चों का, जो मेरे सहारे खुशियाँ तलाशने निकले हैं…?’ सांता हौले से बुदबुदाया, और खुश-खुश आगे चल पड़ा।
तभी उसे कुछ याद आया, और उसने एकाएक बग्घी को ढाबे पर बरतन मलने वाले बीनू के घर की ओर दौड़ा दिया। पर यहाँ का रास्ता तो और भी बेढब था। सांता को बड़ी मुश्किल आई। अंत में तो इतनी तंग और टेढ़ी-मेढ़ी सी गली आ गई कि उसमें बग्घी जा ही नहीं सकती थी। फिर एक मुश्किल यह कि आधी रात के समय सांता की बग्घी को देख, गली के सारे कुत्ते मिलकर जोर-जोर से भौंकने लगे थे।
सांताक्लाज को बग्घी दूर ही रोककर पैदल चलना पड़ा। रास्ता बड़ा टेढ़ा-मेढ़ा था और उसमें जगह-जगह कंकड़-पत्थरों के ढेर थे। कुत्तों की भौं-भौं के बीच सँभलकर चलते हुए सांता को एक-दो बार तो ठोकर भी लगी। एक बार एक खुले मैनहोल में पैर आ जाने से वह गिरते-गिरते बचा।
बड़ी मुश्किल से वह बीनू के घर तक पहुँच पाया।
सांता ने बीनू के सिरहाने चाकलेट, टाॅफियाँ और सुंदर कपड़ों का उपहार रखा। फिर चलते-चलते बीनू के आँगन में खुद अपने हाथों से क्रिसमस ट्री लगाया और उसे खुद रंग-बिरंगी झंडियों, गुब्बारों और चमकीले सितारों से सजाया।
बाहर आकर सांता बग्घी में बैठा और फिर तेजी से दौड़ा दी। पर पीछे पड़े दर्जनों कुत्तों से पीछा छुड़ाना उसे भारी लग रहा था। काफी दूर आ जाने के बाद सांता को कुछ चैन पड़ा।
“ओह, बड़ी मुश्किल से निकल पाया…!” सांता ने अपने माथे का पसीना पोंछते हुए कहा।
पर अभी तो हजारों बच्चे थे। सुबह होने में थोड़ी ही देर थी और इससे पहले सांताक्लाज को सबके पास पहुँचना था।
ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Bachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)
