chalak kanjoos
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एक बार एक कंजूस ने शहर के प्रसिद्ध चित्रकार को अपना चित्र बनाने के लिए कहा। निश्चित समय पर वह चित्र लेने पहुँचा। चित्रकार ने चित्र उसके हवाले किया। चित्र वाकई बहुत बढ़िया बना था, लेकिन उसका पैसा देने से बचने के लिए कंजूस ने चित्र को अपने कुत्ते की ओर बढ़ा दिया।

कुत्ते ने चित्र को देखकर मुंह फेर लिया। इस पर कंजूस बोला कि मेरे कुत्ते को तुम्हारा काम पसंद नहीं आया। इसलिए तुम्हें इसके पैसे नहीं मिलेंगे। चित्रकार बोला कि ठीक है, मैं इसमें कुछ सुधार करता हूँ आप कल आकर चित्र ले जाइए। अगले दिन जब कंजूस वहाँ पहुँचा तो चित्रकार ने पहले से ही चित्र के “रेम पर माँस का टुकड़ा रगड़कर रखा था। जैसे ही कंजूस ने कुत्ते की ओर चित्र बढ़ाया, वह तुरंत उसे चाटने लगा। चित्रकार बोला कि देखिए, आज तो आपके कुत्ते को भी चित्र पसंद आया है। अब तो आपको मेरे पैसे देने ही पड़ेंगे। कंजूस ने बिना कोई विरोध किए उसके काम का पूरा मूल्य अदा कर दिया और चित्र लेकर चला गया।

सारः कई बार धूर्तों को परास्त करने के लिए धूतर्ता का आश्रय लेना पड़ता है।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)