azad ka dussahas
azad ka dussahas

हिन्दुस्तान दासता की जंजीरों में जकड़ा था। बच्चे-बच्चे के मन में आजादी की चिनगारी सुलग रही थी। अंग्रेजी हुकूमत के जुल्म दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे थे।

जाड़े की रात में एक अंग्रेज पुलिस की वर्दी में एक निर्दाेष भारतीय पर तड़ातड़ बेंतें बरसा रहा था। वह इस बात से अनभिज्ञ था कि दूर खड़ा एक बालक लगातार उसके इस अत्याचार को देखे जा रहा था। बालक की आयु लगभग 8 वर्ष थी। जब उससे बर्दाश्त न हुआ तो उसने एक पत्थर उठाया और उस अंग्रेज पुलिसमैन पर दे मारा। उसे इतनी गहरी चोट लगी कि अस्पताल में भर्ती होना पड़ा।

उधर अथक प्रयास कर उस बालक को पकड़कर पुलिस अधिकारी के सामने पेश किया गया तो उसने उसे नंगा कर मैदान में खड़ा कर देने का हुक्म दिया। पहरेदारी पर पुलिस के दो जवानों को तैनात कर दिया गया।

ठंड जोरों से पड़ रही थी। लिहाजा कंबल ओढ़े पुलिस के जवान सो गए। अर्द्धरात्रि में जब उनकी नींद खुली तो यह देखकर वे हैरान रह गए कि वह बालक इतनी ठंड में भी दंड-बैठक लगा रहा था और उसके जिस्म से पसीना लगातार बहे जा रहा था।

वह निर्भीक व वीर बालक चंद्रशेखर आजाद था, जिसने स्वतंत्रता संग्राम में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज कराया।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)