अब तो निम्मा परी बुधना के घर ही ठहर गई। धीरे-धीरे घर के सारे काम उसने सीख लिए। आटा मलना, चूल्हा जलाना। नदी से पीने के लिए घड़े भर-भरकर पानी लाना। रसोई और घर के कामों में अम्माँ की मदद करके उसे बहुत अच्छा लगता। यहाँ तक कि अम्माँ जी से दाल-सब्जी छोंकना भी उसने सीख लिया।
फिर एक दिन जब अम्माँ रोटी सेंकने के लिए तैयार हुईं तो निम्मा हँसकर बोली, “अम्माँ, आज फुलके मैं बनाऊँगी। आप आराम से बैठकर खाना।”
“तू…तू बनाएगी निम्मा…! फुलके…?” अम्माँ को यकीन नहीं हो रहा था।
पर निम्मा ने जब रोटियाँ बनाईं तो वे गोल-गोल भले ही न हों, पर उनमें ऐसी मिठास थी कि अम्माँ के मुँह से असीसों पर असीसें निकल रही थीं। बुधना भी बड़े मजे में खा रहा था।
“अरे बेटी, तूने कब सीख लिया…?” अम्माँ को जैसे अब भी यकीन न हो रहा हो।
“आपको देख-देखकर सीख लिया, अम्माँ जी!” निम्मा बोली, “आपको अच्छी लगीं मेरे हाथ की बनी रोटियाँ तो अब रोज मैं ही सेंका करूँगी।”
“अच्छी…? अरे पागल, ऐसी बढ़िया रोटियाँ तो गाँव में कोई नहीं बनाता। हम तो रोट बनाते हैं, रोट! और तेरी रोटियाँ तो ऐसी पतली-पतली थीं कि फूल की तरह तवे पर नाच रही थीं।”
सुनकर निम्मा के चेहरे पर तृप्ति की उजास सी छा गई।
बुधना हँसकर बोला, “ना अम्माँ ना, इसको रोटियाँ ना बनाने देना। वरना ये बनाती जाएगी, मैं खाता जाऊँगा। सुबह से शाम हो जाएगी, पर पेट नहीं भरेगा।”
इस पर निम्मा खिलखिलाकर हँसी तो साथ-साथ बुधना और अम्माँ जी भी हँसने लगीं। और लगा कि चूल्हे की आँच और तवा भी हँस रहा है।
जल्दी ही निम्मा ने अम्माँ जी से गाँव के गीत सीख लिए और बड़े सुर में गाने लगी। साथ ही किसी तिथि-त्योहार पर दीवारों पर चित्र माँड़ना और द्वार के आगे सुंदर रंगोली बनाना भी। उसे लगता—अरे वाह, धरती पर तो हर दिन नया है। हर दिन त्योहार। धरती पर चाहे कितनी परेशानियाँ हों, पर मन तो उड़ा-उड़ा सा फिरता है। ऐसा सुख भला परियों के देश में कहाँ?
इस बीच अड़ोस-पड़ोस के बच्चों ने भी उसके पास आना शुरू कर दिया था। सबसे पहले सत्ते, बिट्टू और टुन्नू आए। तीनों ने सुना था कि बुधना के घर परी आई है। सच्ची-मुच्ची की परी, ऐन परीदेश से।…फिर भला वे कैसे खुद को रोक पाते?
परियाँ कैसी होती हैं, उन्हें ठीक-ठीक पता न था। पर इतना जरूर पता था, परियों के सिर पर चमचमाता मुकुट होता है और हाथ में चाँदी की चम-चम करती छड़ी। जिधर घुमा दो, उधर जादू ही जादू।
वाह, क्या मजे की बात…!
“पर निम्मा परी के पास तो मैंने कभी देखी नहीं ऐसी कोई छड़ी, बिट्टू।” सत्ते ने परेशान होकर कहा।
“हाँ, बात तो ठीक।” बिट्टू ने माथा खुजाया।
“और मुकुट भी नहीं है, सत्ते भैया। चाँदी का चमाचम मुकुट…!” नन्हे से टुन्नू ने ध्यान दिलाया।
तीनों जैसे किसी पहेली में उलझ गए।
“कभी जरा पास से देखना चाहिए…!” सत्ते की सलाह, “तभी पता चलेगी असली बात।”
“हाँ, मगर कैसे…?” बिट्टू ने पूछा।
“तेरा घर पास में है। तू जा किसी टाइम, देख के आ।” सत्ते ने बिट्टू को उकसाया।
मगर बिट्टू घबरा रहा था, “ना, ना, सत्ते। पहले तू जा…जाकर देख, फिर मेरे को बताना…!”
आखिर शाम के समय सत्ते और बिट्टू दोनों के दोनों आए। यों आया तो टुन्नू भी था, पर वह डरकर काफी दूर खड़ा हो गया।
बुधना और निम्मा परी दोनों अभी-अभी खेत से आए थे। वहाँ से थोड़ा बथुए का साग भी उखाड़कर लाए थे, जो आते ही उन्होंने अम्माँ को सौंप दिया था। ताकि कल सुबह बथुए की गरम-गरम रोटियाँ खाई जाएँ।
बुधना की माँ प्याज और हरी मिर्च डालकर, बथुए की रोटियाँ बहुत स्वाद वाली बनाती थीं। बुधना और निम्मा को भी वे पसंद थीं। निम्मा ने सोच लिया था कि कल सुबह वह अम्माँ से बथुए की रोटियाँ बनाना जरूर सीखेगी, और फिर हफ्ते में एक-दो बार बनाया करेगी।
अब निम्मा परी हाथ-मुँह धोकर खाना बनाने की तैयारी में थी। इतने में देखा, एक बच्चा बार-बार झोंपड़ी में उझककर देख रहा है। पर निम्मा परी की नजर पड़ी तो वह उलटे पाँव भागा। भागते-भागते अपने पीछे वाले बच्चे से बोला, “बैठी है, बैठी है…जा, तू भी जाकर देख ले, बिट्टू!”
“ना-ना, सत्ते, मैं नहीं जाता। पकड़ में आ गया तो वो मारेगी।”
“अरे बुद्धू, नहीं मारेगी।” पहला वाला हँसा, “परियाँ कहीं मारती हैं? वो तो पग्गल, बच्चों को प्यार करती हैं, प्यार।…याद नहीं है, गोमती दादी की कहानी। अरे वही, बिरजू और नील परी वाली। उसमें कैसे परी अनाथ बच्चे बिरजू को प्यार करती है और उसे खूब सारी अच्छी-अच्छी खाने-पीने की चीजें लाकर देती है…!”
“हाँ-हाँ, सच्ची…! बात तो सही है तेरी।” दूसरा बच्चा बोला।
“तो फिर जा। जाता क्यों नहीं है…?”
“ना-ना सत्ते। मैं नहीं जाता। सच्ची, मुझे तो डर लगता है…!”
निम्मा परी ने सुना, तो हँसते-हँसते खुद ही बाहर आ गई। इतना तो उसे पता चल ही गया था कि इन दोनों में से एक सत्ते है, दूसरा बिट्टू। उसने बड़ी ही मीठी आवाज में सत्ते को भी टेर लिया, बिट्टू को भी। टुन्नू चप्पल हाथ में पकड़े, देर से बड़ी-बड़ी आँखें निकाले देख रहा था। एकदम सतर्क। सोच रहा था, निम्मा परी सत्ते और बिट्टू को पीटेगी तो मैं दूर से ही भाग लूँगा। हाँज्जी…!
पर यह क्या? वह तो सत्ते और बिट्टू से खूब हँस-हँसकर बातें कर रही है।
निम्मा परी की मीठी आवाज सुनी तो टुन्नू अचकचा गया। मन ही मन बोला, ‘अरे, यह तो बड़ी अच्छी वाली परी है…! मैंने तो कुछ और ही सोचा था।’
तभी उसका ध्यान गया, ‘हाय राम रे, अभी तक चप्पलें मैंने हाथ में ही पकड़ी हुई हैं। निम्मा परी देखेगी तो जरूर सोचेगी, टुन्नू गंदा बच्चा है।’
उसने झट चप्पलें पैरों में पहनीं। और अब टुन्नू के पैर खुद-ब-खुद निम्मा परी की ओर खिंचते चले जा रहे हैं।…
उसे पास आता देख, निम्मा परी ने आगे बढ़कर उसे गोदी में ले लिया। फिर हँसकर बोली, “अब बोलो, अब कहाँ भागोगे बच्चू?”
टुन्नू कुछ झेंप सा गया। निम्मा परी ने प्यार से उसके माथे को सहलाया। फिर मुसकराते हुए बोली, “मुझे देखकर भाग रहे थे ना..?”
टुन्नू ने सिर हिलाया, “हाँ!”
“अच्छा, तो मैं तुम्हें इतनी खराब लगती हूँ…?”
टुन्नू ने ना में गरदन हिलाई। फिर बोला, “ये सत्ते और बिट्टू हैं ना, ये दोनों बोल रहे थे कि तुम छोटे हो टुन्नू, सो जरा निम्मा परी से दूर ही रहना। अगर हमारी पिटाई हो तो तुम वहीं से भाग लेना।”
अब निम्मा परी ने सत्ते और बिट्टू की ओर नजर घुमाई, “अच्छा, तुमने कहा था ऐसा…?”
दोनों शरमाकर बोले, “वो…वो ऐसा है निम्मा परी, कि मतलब…”
“मतलब…कैसा मतलब?” निम्मा परी ने प्यार से आँखें नचाकर पूछा।
“वो हम भूल गए निम्मा परी…!” सत्ते बोला तो बिट्टू, टुन्नू और निम्मा परी सब एक साथ हँसे। खुद सत्ते भी।
निम्मा परी ने पूछा, “अच्छा, बताओ, अभी थोड़ी देर पहले सत्ते और बिट्टू, तुम दोनों झाँक रहे थे न?”
दोनों झेंपकर दाएँ-बाएँ देखने लगे। फिर बच निकलने की गरज से कहा, “अच्छा, हम चलें निम्मा परी?”
“अरे आओ तो सही, तुम लोग पास तो आओ। बैठो तनिक।” निम्मा परी हँसकर बोली, “आए हो तो थोड़ी देर बात ही कर लें।”
और फिर निम्मा परी ने सत्ते और बिट्टू से उनके घर-परिवार, स्कूल, खेल-कूद और दोस्तों के बारे में इतने प्यार से पूछा कि दोनों खूब चहक-चहककर बताने लगे। भूल ही गए कि अभी-अभी तो वे निम्मा परी से डर और झेंप के मारे जरा दूर-दूर से उझक रहे थे।
निम्मा परी बोली, “अच्छा बच्चो, अब तो जरा खाना बनाने का टाइम हो गया।…हाँ, अगर तुम लोगों को कहानी सुनना अच्छा लगता हो, तो कल रात को खाने के बाद आ जाना। वह जरा फुरसत का समय है। सो खूब बढ़िया-बढ़िया कहानियाँ सुनाऊँगी मैं।”
“अच्छा, तो तुमें कहानियाँ सुनाना भी आता है निम्मा परी?” बिट्टू को यकीन नहीं हो रहा था। उसे अकसर दादी माँ कहानियाँ सुनाया करती थी। पर निम्मा परी भला दादी माँ कैसे हो सकती है?
“क्यों नहीं? आता है और खूब बढ़िया आता है। सुनना हो तो आ जाओ कल से।” कहकर निम्मा परी ने हौले से चपत लगाकर सत्ते, बिट्टू और टुन्नू को प्यार किया। तीनों ने एक साथ रेस लगा दी।
ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Bachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)
