असंकिय जातक में तथागत ने अहिभय न्याय को समझाया है।- सांप एक दुष्ट जीव है। अपनी दुष्टता के कारण वह सभी को अपना शत्रु बना बैठा है, किसी को भी अपना नहीं मानता है। वह अपने निकट आनेवाले प्रत्येक प्राणी के बारे में मान लेता है कि वह उसे मार डालने के लिए ही आ रहा है। इसी आशंका के चलते वह पहले ही चोट कर बैठता है, अपने इसी स्वभाव के कारण सांप देखते ही लोग उसे मार डालते हैं, भले ही उसने उनका कोई भी अनिष्ट न किया हो। इसलिए बुद्ध भगवान कहते हैं-
असंकियोम्हि गामम्हि अरंत्रे नत्थिमे भयं। उजुमग्गं समारूढ़ो मेत्ताय करुणाय ज।।
सच तो यह है कि हमारे बुरे काम ही हमारे भीतर भय और आशंका पैदा करते हैं। और हम अहिभय न्याय से सभी को अपना शत्रु मान बैठ हैं, फिर उनके साथ हमारा व्यवहार भी बुरा होने लगता है। इसकी प्रतिक्रिया कुछ ऐसी होती है कि क्या घर और क्या बाहर, हम तमाम शत्रु पैदा कर लेते हैं, जो हमारे विनाश का कारण बनते हैं। तथागत का तात्पर्य यह है कि जो हृदय में मैत्री और दयाभाव रखता है, वह घर में रहे या वन में उसका कोई विरोधी नहीं है- वह किसी को अपना बैरी नहीं मानता। उसका रास्ता सीधा है, वह टेढ़ी-मेढ़ी चाल से नहीं चलता और न गलत रास्ता ही पकड़ता है।
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