नानाजान ये साहब शायद आपको तलाश रहे हैं, साजिद यानि सज्जाद अली साहब के पोते ने उनसे कहा, तो उन्होंने सवालिया नजरों से साजिद के साथ आए अजनबी को देखा। उनसे उम्र में लगभग आठ-दस बरस कम, खिचड़ी बालों वाला एक शख्स, सादा पहनावा, हाथ में एक छोटा बैग, अपनी ओर से उन्हें पहचान की कोई सूरत नजर नहीं आई। सलाम के साथ उस अजनबी ने पूछा, ‘जी वो तीस-पैंचीस साल पहले बस स्टैंड पर एक चाय-नाश्ते का होटल हुआ करता था। हूं… सज्जाद अली ने अजनबी की बात को बीच में रोक कर कहा।

अजनबी के चेहरे पर तलाश पूरी होने की तसल्ली दिखी तो सज्जाद अली ने बात आगे बढ़ाई, ‘आप… माफ कीजिएगा, मैंने आपको पहचाना नहीं। ‘आप मुझे पहचान नहीं सकते क्योंकि हम पहले कभी मिले ही नहीं हैं। मुझे आपसे तफसील से बात करनी है, अगर हम कहीं अलग बैठ सकते तो… दुकान की भीड़भाड़ पर नजर फिराते हुए उस अजनबी ने बात अधूरी छोड़ दी।

‘जी हां, बेशक उन्होंने साजिद को आवाज दी, साजिद ने ऊपर बनी लॉज का खाली कमरा खुलवाया, चाय भिजवाई और जब बातरतीब मुलाकात की शुरुआत हुई तो अजनबी ने बताया, ‘मेरा नाम अल्ताफ हुसैन है और मैं यहां आपको खोजते हुए इसलिए आया हूं क्योंकि मुझे आपका शुक्रिया अदा करना था। सज्जाद अली के चेहरे पर हैरानी के भाव देखकर अल्ताफ नाम के उस अजनबी ने बात आगे बढ़ाई, ‘पैंतीस बरस पहले आपने मेरे साथ एक नेकी की थी और उसकी बदौलत मुझे जिंदगी में बहुत सी खुशियां नसीब हुईं, मेरी शरीके-हयात ने हमेशा हर खुशी के मौके पर अल्लाह का शुक्रिया अदा करने के साथ-साथ आपके लिए दुआ की क्योंकि आपकी मदद के बगैर वो सब ना हो पाता।

सज्जाद अली उसी तरह सवालिया नजरों से उसे देखते रहे, वो बिल्कुल नहीं समझ पा रहे थे कि वो शख्स क्या कह रहा है? क्यों कह रहा है? कुछ पल रुककर अल्ताफ हुसैन ने कहा, ‘मेरी बीबी का नाम आमना था और पैंतीस साल पहले उसका आपसे रिश्ता होने वाला था। इस एक जुमले के साथ सज्जाद अली के दिमाग पर से जैसे पिछले पैंतीस सालों की यादों की गर्द साफ हो गई और उन्हें सब कुछ समझ आ गया। महज दो दिन की बीमारी और बुखार के बाद जब अचानक उनकी बीबी ने दम तोड़ दिया था तो उनका छोटा सा कुनबा जैसे भूचाल के हवाले हो गया था। तीन छोटे-छोटे बच्चे, बूढ़ी अम्मी, शादी के लायक छोटी बहन सबको संभालने की जिम्मेदारी और सारे रिश्तेदारों की सलाह कि दोबारा शादी के अलावा और कोई रास्ता ही नहीं है। कभी बच्चों के बचपन, तो कभी अम्मी के बुढ़ापे का हवाला देते हुए सबका यही कहना था। गरीब घर की लड़की ले आओ तो निभा लेगी जैसी ढेरों बातें।

किसी तरह तीन-चार महीने बीते होंगे कि उन्हें पता चला कि पास के कस्बे की किसी लड़की के लिए उनके रिश्ते का पैगाम भेज दिया गया है। गरीब घर है, लड़की के बाप नहीं है, चाचा कुछ छोटा-मोटा धंधा करते हैं, घर की औरतें घर में ही कुछ सिलाई-कढ़ाई करती हैं, बस गुजारा चल रहा है। अम्मी, बहन और कुछ रिश्तेदार औरतें लड़की को देख आई हैं, उन्हें बात जैसी बताई गई थी वैसी ही कबूल कर ली थी। अपनी ओर से कुछ न पूछा।

तारीख निकालने की बात चल रही थी कि डाक से एक लिफाफा मिला, बैरंग उस पर उनका नाम चाय का होटल और बस स्टैंड ही लिखा था। लिफाफे में एक छोटा सा खत था, चंद सतरें जो उन्हें अब तक याद थी, ‘मैं किसी के इंतजार में हंू उसे चाहती हूं, ये रिश्ता मुझे बेवफाई और दगाबाजी पर मजबूर कर देगा, मैं मजबूर हूं, खुदा के वास्ते अपनी ओर से ये रिश्ता तोड़ दीजिए। -आमना। वो बहुत देर तक उस खत को घूरते रहे। कई बार पढ़ा, फिर दुकान जल्दी बढ़ाकर घर लौट आए। रातभर करवटें बदलते रहे, फिर सुबह अम्मी से पूछा था, ‘आपने जहां बात तय की है उस लड़की का नाम क्या है?

‘आमना! अम्मी उन्हें दिलचस्पी लेता देख खुश हो गईं। ‘उम्र कितनी है? ‘बीस-बाईस साल की होगी, क्यों? उन्होंने अम्मी के सवाल का जवाब नहीं दिया। उस दिन भी रोज की मसरूफियत के बीच उनके दिमाग में वो चिट्ठी घूमती रही। कभी ख्याल आता, क्या पता चिट्ठी झूठी हो, किसी ने शरारत की हो, तो रिश्ता तोडऩे से लड़की वालों पर गरीबमार हो जाएगी, फिर लगता अगर चिट्ठी सच्ची हो तो भी हश्र बुरा होगा। उस रात वो जल्दी घर पहुंचे। बहुत दिनों बाद तीनों बच्चों को जागते हुए देखा, उनसे बातें कीं, साथ खाना खाया और एक-दूसरे की शिकायतें सुनाते बच्चों को अपने साथ सुलाया। सुबह वह अपने नतीजे पर पहुंच चुके थे।

अम्मी को जब उन्होंने शादी न करने का अपना फैसला सुनाया तो वे पहले तो बेहद नाराज हुईं, बात रोने और जान दे देने की धमकी तक पहुंची, मगर वो अड़े रहे। लड़की वालों की तरफ से भी काफी शिकवा-शिकायतें हुईं, उन्होंने चुह्रश्वपी साधे रखी। बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान दिया, बहन की शादी की, बढ़े हुए खर्चों से निपटने के लिए दिन-रात मेहनत की और फिर सब ठीक हो गया। बच्चे जिंदगी में सही मुकाम पर पहुंच गए। घर में उनकी इज्जत और रुतबे में इजाफा ही हुआ था और उम्र के इस आखिरी पड़ाव पर उनके दिल से ये भी बोझ हट गया था कि कहीं वो चिट्ठी झूठी तो नहीं थी।

अचानक अल्ताफ की आवाज से सज्जाद अली की सोच की लड़ी टूटी, ‘मैं आमना को बचपन से जानता था, मगर उसके अब्बा के इंतकाल के बाद उनकी माली हालत खराब होती गई और मेरे घर वाले इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं थे। उन्हें तैयार करने के लिए मैंने रोजगार ढूंढ़ा और नौकरी पर गया ही था, जब आपके और आमना के रिश्ते वाला वाकया हुआ था।
‘फिर…?
‘एक महीने की नौकरी के बाद छुट्टी लेकर घर पहुंचा, घरवालों की रजामंदी हासिल करने की कोशिश की। उनके इंकार पर ताव खाकर सीधा आमना के घर पहुंचा, उसके चाचा और अम्मी से दो टूक बात की, फिर निकाह कर आमना को रुखसत करवाकर अपनी नौकरी की जगह पर ले गया। अल्ताफ ने बताया।

‘घरवालों से सुलह नहीं हुई? सज्जाद अली ने पूछा, ‘हुई साहब, सात साल और दो बच्चों के बाद हुई, अल्ताफ ने हंसते हुए बताया। ‘चलिए यानी फिर सब कुछ ठीक हो गया। ‘जी हां, एक तरह से सब ठीक है। बच्चे अपने घरबार और काम-धंधे में ठीक हैं। मैं यहां ठीक हूं और आमना भी कब्र में सुकून से ही होगी। अल्ताफ हुसैन ने संजीदगी से कहा।

सज्जाद अली चौंक पड़े, ‘तो क्या…?

‘जी हां, पिछले महीने वो अचानक ही आखिरी सफर पर चल पड़ी, दिल का दौरा पड़ा और बस… फिर अधूरी छोड़ी बात का सिरा पकड़ते हुए अल्ताफ ने कहा, ‘जैसा मैंने बताया हमें जिंदगी में जब भी खुशी मिली, उसने हमेशा आपका शुक्रिया अदा किया, आपको दुआ दी कि अगर आपने उस चिट्ठी पर ध्यान नहीं दिया होता तो पता नहीं क्या होता। ऐसे मौकों पर कभी-कभी… अल्ताफ की आवाज भारी हो गई, थोड़ा रुककर उसने कहा, ‘यकीन कीजिए, न चाहते हुए भी मुझे आपसे जलन सी होती थी, पर उसे सुपुर्दे खाक करने के बाद मैं रात-दिन इन सारी बातों को याद करता रहा और इसी नतीजे पर पहुंचा कि आपका शुक्रिया अदा करना उसकी दिली ख्वाहिश थी और उसकी अधूरी ख्वाहिश पूरी करना मेरा फर्ज है।

बस आपको ढूंढ़ते हुए यहां तक पहुंच ही गया। बात पूरी करने के बाद अल्ताफ ने धीरे से चश्मा उतारकर अपनी नम आंखें पोंछी, कमरे में खामोशी छा गई थी, दोनों अपने-अपने ख्यालों में गुम थे। सज्जाद अली सोच रहे थे कि उनके इतने बरस जो चैन-सुकून से कटे, उसमें किसी की दुआओं का असर शामिल था। तभी अल्ताफ हुसैन ने उठते हुए कहा, ‘अच्छा अब इजाजत दीजिए।

सज्जाद अली जैसे नींद से जागे, ‘अरे नहीं, अभी कैसे चले जाएंगे आप? और साजिद को बुलाकर उन्होंने कहा, ‘अपनी अम्मी से कहो हमारे बहुत पुराने दोस्त बहुत दूर से आए हैं, कुछ दिन यहीं रहेंगे।